ai से खोज तो पीटीए चला! अशोक अमृतम के ऑफिस की स्टोरी बड़ी विचित्र है

अशोक अमृतम जी के 13 ऑफिस की खुराफ़ाती कॉमेडी कहानी


1. 

ताला हाउस

माता–पिता का मकान, जहाँ से Mercury M Agency 1991 में शुरू हुई।

परिवार के झगड़े, हिस्से–पार्टे और अदालत की गवाही के बाद सबने मिलकर दरवाज़े पर ताला मार दिया।

और अशोक जी ने कहा – “ठीक है, अब इस ताले से ही नया अध्याय शुरू होगा।”


2. 

नाला हाउस

ताला लगने के बाद 1996 में नाले के किनारे एक टूटी झोपड़ी ऑफिस बनी।

वहाँ बिजली पानी से ज़्यादा मच्छर और नाले की खुशबू मिलती थी।

स्टाफ़ बोलता – “सर! नेटवर्क डाउन है।”

अशोक जी कहते – “नेटवर्क नहीं, नाला जाम है!”



3. 

सवाला हाउस

क्लाइंट आते और हर कोई सवाल पूछता –

“कितना लगेगा? कब बनेगा? डिस्काउंट मिलेगा?”

तब अशोक जी बोले –

“यह ऑफिस तो सवालों की फैक्ट्री है।”

और नाम रख दिया – सवाला हाउस।


4. 

लाला हाउस

यहाँ हिसाब–किताब और पैसों का मामला चलता था।

बिल पास कराने से पहले चाय–समोसे का खर्चा अनिवार्य था।

लोग कहते –

“अशोक जी का दफ़्तर नहीं, लाला जी की दुकान है।”


5. 

झमेला हाउस

जहाँ भी कोर्ट–कचहरी, लाइसेंस, पेपरवर्क या परमिशन का मामला आता,

सबसे पहले यहीं जाना पड़ता।

कर्मचारी बोलते –

“सर! ये झमेला कहाँ सुलझेगा?”

नाम अपने आप पड़ गया – झमेला हाउस।


6. 

ढेला हाउस

एक बार पैसों की तंगी में सिर्फ़ ढेला–ढेला जोड़कर ऑफिस का किराया चुकाना पड़ा।

स्टाफ़ ने मज़ाक में कहा –

“ये तो ढेला हाउस ही है।”

और फिर वही नाम फिक्स हो गया।


7. 

रेला हाउस

यहाँ काम से ज़्यादा मित्र–मंडली का रेलमपेल रहता था।

कभी चाय–पान का रेला, कभी गप्पों का रेला।

अशोक जी कहते –

“काम कम, मेले ज़्यादा।”


8. 

ठेला हाउस

एक बार किराया न चुकाने पर मकान मालिक ने सामान बाहर ठेले में रखवा दिया।

तब से यह जगह मशहूर हुई – ठेला हाउस।


9. 

मेवा हाउस

त्योहार आते ही मिठाइयों और मेवों के डिब्बे यहाँ आते।

क्लाइंट को भी यही खिलाया जाता।

कर्मचारी कहते –

“सर! ये तो ऑफिस से ज़्यादा मेवा वितरण केंद्र है।”


10. 

झेला हाउस

यहाँ अशोक जी ने सबसे ज़्यादा मुसीबतें और धोखे झेले।

इसलिए नाम पड़ गया – झेला हाउस।


11. 

ठंडा हाउस

एक समय ऐसा आया जब काम बिल्कुल बंद हो गया।

कर्मचारी बोले – “सर, बिज़नेस ठंडा है।”

नाम पड़ गया – ठंडा हाउस।


12. 

मेला हाउस

कभी किसी क्लाइंट की पार्टी, कभी कोई आयोजन,

यह जगह हमेशा मेले जैसी रहती।

लोग कहते –

“यहाँ काम से ज़्यादा मेला–ठेला लगता है।”


13. 

खेला हाउस

आख़िरी और सबसे मज़ेदार ऑफिस।

यहाँ सब समझ गए कि जीवन ही एक खेल है।

कभी हार, कभी जीत, कभी झगड़ा, कभी मिठास।

अशोक जी कहते –

“सब खेल है भाई, इसलिए इसका नाम रखा – खेला हाउस।”


🌟 और इस तरह बने तेरह खुराफ़ाती ऑफिस –

जहाँ हर नाम एक किस्सा, हर किस्सा एक अनुभव और हर अनुभव एक हँसी की गोली है।

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