पीलिया भाग दो amrutam patrika ग्वालियर
पीलिया की बीमारी में आंखों पर पीलापन छा जाता है! पेशाब पीली आने लगती है! भूख मिट जाती है! KEYLIV MALT भूख बढ़ाता है!

- मूत्र, त्वचा, नख और तालू का रंग भी पीला हो जाता है। इसी कारण इसे पीलिया नाम दिया गया है। सर्वसाधारण रूप में होनेवाले पीलिया का मूल कारण है 'हैपेटायटिस-ए' नामक वायरस!
- यह वायरस दूषित खाद्यान्न, जल, दुग्ध एवं अन्य पदार्थों द्वारा पेट में पहुंच जाता है, जहां से वह यकृत में पहुंचकर रोग का कारण बन जाता है। इसीलिए यह बीमारी भारतवर्ष में बरसात के बाद अधिक होती है।
- वर्तमान पीलियाकारंक वायरस खान-पान के साथ मुंह द्वारा आंतों में चला जाता है, जहां से वह यकृत में पहुंचकर तत्संबंधी विकार उत्पन्न कर देता है। इसी कारण पीलिया में यकृतीय शोथ उत्पन्न हो जाता है और बायलीरुबिन नामक रंजक पदार्थ का चयापचय बिगड़ जाता है।
- अतः उसकी मात्रा रक्त में बढ़ने लगती है। अर्थात, रोगकारक विषाणुओं द्वारा जितना यकृत प्रभावित होगा, रक्त में बायलीरुबिन की मात्रा उतनी ही अधिक पायी जाएगी ।
- आयुर्वेदिक ग्रंथों में पीलिया के दो प्रकार बताये गये हैं। एक में यकृत को कोष्ठों की श्रेणी में गिना गया है।
- दूसरे में 'शाखा-शब्द' का प्रयोग पित्त नलिका अथवा 'बाइल डक्ट' के लिए किया गया है। वैसे विज्ञान के अनुसार पीलिया के यही दो रूप होते हैं!
- यकृतीय पीलिया को 'मेडीकल जौंडिस अथवा हेपेटायटिस' कहा जाता है और तथाकथित शाखाश्रय अथवा बाइल-डक्ट संबंधी रोग को 'सरजीकल' अथवा 'औब्स्ट्रक्टिव जौडिस' नाम दिया गया है।
- यदि कामला या पीलिया रोगी (श्वेत) तिल की खली के समान मल त्यागे, तो समझना चाहिए कि 'कफ-विकार' अथवा 'गालस्टोन' के कारण उसका पित्त मार्ग (बायल डक्ट) अवरुद्ध हो गया है!
पीलिया का आयुर्वेद में इलाज keyliv

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