अमृतम पत्रिका ग्वालियर से साभार कॉमेडी
घड़ी सुधारने वाले
बहुत मिल जाएंगे
पर समय स्वयं को
सुधारना पड़ता है ।

घड़ी की टिक टिक को
मामूली न समझों...'अशोक'
बस यूँ समझ लीजिये कि ”
ज़िन्दगी ”
के पेड़ पर कुल्हाड़ी के वार
दुख की बात ये है कि,
वक़्त बहुत कम है...!!
ख़ुशी की बात ये है कि,
अभी भी वक़्त है...!
जो मुझसे अनजान हैं
उसे पूरा हक है मुझे
बुरा कहने का क्यो कि
जो मुझे 'जान' लेता है
वह मुझ पर "जान" देता है
अशोक को जान जाओगे
तो जान भी दे जाओगे
सम्मान ओर सारा
सामान दे जाओगे
तन,जिगर, जमीन
आसमान दे जाओगे
जहर भरा तम्बाकू
वाला पान दे जाओगे
तुम्हारी इज्जत,मनोबल
इतना बढ़ा देंगे,एक दिन
कि अपना तन-मन
सब दान दे जाओगे
तुमसे बहुत प्यार किया
ये भी पहली बार किया
साफ सुथरा व्यवहार किया
तुम कहाँ माने,लेकिन अब
सारा ध्यान दे जाओगे ।

तेरे केशों के वीराने में
हम आँखों के दीवाने थे,
इसमें 2 काले मखाने थे
यही प्यार के पैमाने थे ।
बहुत मनाया था तुमको
लेकिन तुम नहीं माने थे
माना कि तुम खूबसूरत हो
हमारे भी कभी जमाने थे
क्यों लगी हो बेर के फेर में
हम पर कभी ट्रकों इलायची दाने थे
आज का खराब दौर
निकल जाए बस
वो दिन भी थे जब लोग
चित्त,चारो खाने थे ।
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