कहीं घी घना, कहीं मुट्ठी भर चना – जीवन की असमानताओं का रहस्य

  1. भारतीय समाज में प्रचलित कहावतें केवल शब्दों का खेल नहीं होतीं, बल्कि गहरे जीवन-सत्य छिपाए रहती हैं। ऐसी ही एक कहावत है –

कहीं घी घना,

कहीं मुट्ठी भर चना

और

कहीं उनमें भी मना!!

  1. यह कहावत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें जीवन की असमानताओं और विषमताओं की ओर ध्यान दिलाती है।


1. घी घना – सुख और समृद्धि का प्रतीक

“घी घना” का अर्थ है – जहाँ संसाधन, पैसा और सुख-समृद्धि की कोई कमी नहीं।

👉 ये लोग वे हैं जिनके पास हर सुख-सुविधा उपलब्ध है।

👉 जीवन में इन्हें संघर्ष कम और आराम अधिक मिलता है।


2. मुट्ठी भर चना – सीमित संसाधन, सीमित अवसर

“मुट्ठी भर चना” उन लोगों का प्रतीक है जिनके पास साधन तो हैं, पर बहुत कम।

👉 ये लोग मेहनत और बचत के सहारे अपना जीवन चलाते हैं।

👉 इनके लिए हर छोटी चीज़ भी बड़ी मायने रखती है।


3. उनमें भी मना – पूर्ण अभाव का संकेत

“उनमें भी मना” उन परिस्थितियों को दर्शाता है जहाँ व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं है।

👉 न साधन, न अवसर, न ही सहारा।

👉 ये जीवन का सबसे कठिन स्तर है, जो हमें विषमता की चरम स्थिति बताता है।

  1. कहीं घी घना, कहीं मुट्ठी भर चना और कहीं उनमें भी मना! यह सिर्फ़ एक कहावत नहीं, बल्कि समाज का आईना है।

यह हमें सिखाती है कि –


  1. सुख मिलने पर बाँटें,
  2. कमी होने पर संतोष करें,
  3. और अभाव देखने पर मदद का हाथ बढ़ाएँ।इसी में जीवन का असली आनंद और सफलता छिपी है।



4. इस कहावत से सीख मिलती है?

  1. जीवन में समानता असंभव है – हर जगह संसाधनों का बंटवारा अलग है।
  2. संतोष ही सबसे बड़ा धन है – चाहे घी मिले या चना, खुशी का असली रहस्य संतोष में है।
  3. करुणा और सहानुभूति जरूरी है – जिनके पास बहुत है, उन्हें कम वालों की मदद करनी चाहिए।
  4. मेहनत और दृष्टिकोण – परिस्थितियाँ जैसी भी हों, मेहनत और सकारात्मक सोच से बदलाव लाया जा सकता है।



5. आज के समय में प्रासंगिकता

आज भी समाज में असमानताएँ स्पष्ट दिखती हैं।

  1. कोई महलों में रहता है, तो कोई झोपड़ी में।
  2. कोई डिजिटल दुनिया में आगे बढ़ रहा है, तो कोई बेसिक शिक्षा से वंचित है।

👉 इसीलिए यह कहावत हमें याद दिलाती है कि मानवता और समान अवसर की ज़रूरत हर युग में है।


निष्कर्ष

“कहीं घी घना, कहीं मुट्ठी भर चना और कहीं उनमें भी मना” केवल एक कहावत नहीं बल्कि जीवन का सत्य है। यह हमें संतोष, करुणा और परस्पर सहयोग का संदेश देती है। अगर हम इस सीख को अपनाएँ, तो समाज में असमानता कम की जा सकती है।

भारतीय समाज में प्रचलित कहावतें केवल शब्दों का खेल नहीं होतीं, बल्कि गहरे जीवन-सत्य छिपाए रहती हैं। ऐसी ही एक कहावत है –

“कहीं घी घना, कहीं मुट्ठी भर चना और कहीं उनमें भी मना”।

यह कहावत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें जीवन की असमानताओं और विषमताओं की ओर ध्यान दिलाती है।


1. घी घना – सुख और समृद्धि का प्रतीक

“घी घना” का अर्थ है – जहाँ संसाधन, पैसा और सुख-समृद्धि की कोई कमी नहीं।

👉 ये लोग वे हैं जिनके पास हर सुख-सुविधा उपलब्ध है।

👉 जीवन में इन्हें संघर्ष कम और आराम अधिक मिलता है।


2. मुट्ठी भर चना – सीमित संसाधन, सीमित अवसर

“मुट्ठी भर चना” उन लोगों का प्रतीक है जिनके पास साधन तो हैं, पर बहुत कम।

👉 ये लोग मेहनत और बचत के सहारे अपना जीवन चलाते हैं।

👉 इनके लिए हर छोटी चीज़ भी बड़ी मायने रखती है।


3. उनमें भी मना – पूर्ण अभाव का संकेत

“उनमें भी मना” उन परिस्थितियों को दर्शाता है जहाँ व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं है।

👉 न साधन, न अवसर, न ही सहारा।

👉 ये जीवन का सबसे कठिन स्तर है, जो हमें विषमता की चरम स्थिति बताता है।


4. इस कहावत से क्या सीख मिलती है?

  1. जीवन में समानता असंभव है – हर जगह संसाधनों का बंटवारा अलग है।
  2. संतोष ही सबसे बड़ा धन है – चाहे घी मिले या चना, खुशी का असली रहस्य संतोष में है।
  3. करुणा और सहानुभूति जरूरी है – जिनके पास बहुत है, उन्हें कम वालों की मदद करनी चाहिए।
  4. मेहनत और दृष्टिकोण – परिस्थितियाँ जैसी भी हों, मेहनत और सकारात्मक सोच से बदलाव लाया जा सकता है।


5. आज के समय में प्रासंगिकता

आज भी समाज में असमानताएँ स्पष्ट दिखती हैं।

  1. कोई महलों में रहता है, तो कोई झोपड़ी में।
  2. कोई डिजिटल दुनिया में आगे बढ़ रहा है, तो कोई बेसिक शिक्षा से वंचित है।

👉 इसीलिए यह कहावत हमें याद दिलाती है कि मानवता और समान अवसर की ज़रूरत हर युग में है।


निष्कर्ष

“कहीं घी घना, कहीं मुट्ठी भर चना और कहीं उनमें भी मना” केवल एक कहावत नहीं बल्कि जीवन का सत्य है। यह हमें संतोष, करुणा और परस्पर सहयोग का संदेश देती है। अगर हम इस सीख को अपनाएँ, तो समाज में असमानता कम की जा सकती है।



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