श्री दशानन रावण रचित 🕉️ शिव तांडव स्तोत्र – पूर्ण पाठ, अर्थ और व्याख्या

  1. रावण को कथा वाचकों ने बदनाम कर ख़ुद भी बर्बाद हो गए! रावण रचित ग्रंथों की आज तक कोई व्याख्या भी नहीं कर पाया!

  1. रावण के बारे में सारे किससे मनगढ़ंत हैं और जिसने भी आलोचना की उनके यहाँ से महालक्ष्मी का निर्वासन हो गया!
  2. रावण के बाबा महर्षि पुलत्स्य की ब्रह्मचारिणी बहिन ने शिवजी की कठोर तपस्या कर वरदान मांगा था कि जो भी मेरे कुल, गोत्र और वंश की बुराई, आलोचना करे, उसके यहाँ से आपकी शक्ति यानी पत्नी श्री महालक्ष्मी कभी स्थायी रूप से न रुके!
विष्णु पत्नी लक्ष्मी तो चंचल स्वभाव की है वो वैसे भी किसी के पास ज़्यादा समय तक नहीं टिकती!
  1. भारत में विष्णु पत्नी लक्ष्मी की अधिक पूजा होने से हर आदमी परेशान हैं क्योंकि इन्हें आठ तरह के ऐश्वर्य देने का अधिकार नहीं है! इस बारे में अमृतम पत्रिका के किसी एनी ब्लॉग में विस्तार से समझायेंगे! फ़िलहाल शिव तांडव के रहस्य को समझें

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥


अर्थ:

  1. शिव के जटाओं में गंगा का पवित्र जल बह रहा है। उनके गले में नाग-माला लटक रही है। उनके डमरू की ध्वनि से सम्पूर्ण ब्रह्मांड गूँज रहा है। उनका चण्ड तांडव हम सभी पर मंगल करे।

2️⃣ श्लोक

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिरझरी

विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके

किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥

अर्थ:

  1. शिव के जटाओं में झरनों की तरह पानी का भ्रमण है। उनके ललाट पर उज्जवल किशोर चंद्रमा है। उनकी भक्ति से मेरा हृदय हर क्षण आनंदित और सुरक्षित रहे।

3️⃣ श्लोक

धराधराधराधराधरारूढमुण्डः

सिंहविक्रमं वन्दे महामूर्धनम्।

जटासुन्दरीं च गले नागमालिं च

सिंहासनस्थं च शाश्वतं तं वन्दे शिवम्॥

अर्थ:

  1. मैं उस शिव को प्रणाम करता हूँ, जो सिंह के समान वीर हैं, जिनकी जटाओं में सुन्दर गंगा और नाग-माला है और जो सिंहासन पर स्थिर हैं।

4️⃣ श्लोक

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर

प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये।

शिवं शंकरं चतुर्भुजं त्रिनेत्रं गिरीशं

सदा वन्दे वन्द्यं महादेवम्॥

अर्थ:

  1. शिव जिनकी हजारों आंखें और त्रिनेत्र हैं, उनका ध्यान सभी बाधाओं को दूर करता है। मैं हमेशा उन्हें प्रणाम करता हूँ।

5️⃣ श्लोक

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभ

कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रसृत्याद्रिशिखरम्।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धद्रुतमूल

अञ्जलिनिःश्रेयसं विन्यस्तं नमामि हि॥

अर्थ:

  1. शिव की जटाओं में नाग और मणियों की चमक है। उनकी कृपा दृष्टि हमें शांति और उद्धार दे। मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ।

6️⃣ श्लोक

जटामण्डलमण्डितधराधराधरारूढम्

निलिंपनिरझरी प्रवाहपावनं भजे।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥

अर्थ:

  1. शिव के जटामंडल में जल का पवित्र प्रवाह है। उनके डमरू की आवाज़ से संपूर्ण ब्रह्मांड थरथराता है। उनका तांडव हम सभी पर शुभफल प्रदान करे।


7️⃣ श्लोक


  1. सिंहिकायुध्वनिप्रतिपन्नं कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रभ।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके।


अर्थ:

  1. शिव का स्वरूप सिंह की तरह वीरतापूर्ण है। उनके ललाट पर उगते सूर्य और चंद्र की तरह तेजस्विता है। उनके क्रोध और तांडव से संसार में संतुलन बना रहता है।

🔹 संक्षिप्त भावार्थ

  1. शिव तांडव स्तोत्र शिव के शक्तिशाली नृत्य और विराट स्वरूप का वर्णन करता है।
  2. इसमें उनके त्रिनेत्र, जटाओं में गंगा, नाग-माला, डमरू का प्रतीकात्मक महत्व बताया गया है।
  3. इसका नियमित पाठ शांति, भक्ति, शक्ति और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है।
  4. रावण ने इसे लिखा, जो शिव के प्रति उनकी असीम भक्ति का प्रतीक है।


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