दक्षिण भारत के तिरुनल्लार स्वयंभू शनि मंदिर में पन्ना रत्न का शिवलिंग होने से प्रमाणित होता है शनि का रत्न नीलम नहीं, पन्ना है!

जानिये शनि के अद्भुत रहस्य पहली बार

  1. नरवर जिला शिवपुरी मध्यप्रदेश के राजा नल से जुड़ा है ये शनि मंदिर! वैसे मूल रूप से ये शिवा मंदिर है लेकिन दक्षिण में शनि मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है!
  2. तिरुनल्लर शनि मंदिर, जिसका असली नाम नामधारबरण्येश्वर मंदिर है, पुडुचेरी के कराईकल जिले में स्थित है और यह शनि देव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जिसे "कष्ट हरने वाला मंदिर" भी कहा जाता है. यहां भक्त शनि दशा, साढ़ेसाती, और ढैय्या के अशुभ प्रभावों से मुक्ति पाने के लिए नल तीर्थ कुंड में तेल स्नान करते हैं.  


  1. तिरुनल्लार शनि मंदिर का रहस्य: क्यों पन्ना शिवलिंग साबित करता है शनि का असली रत्न
  2. शनि का रत्न नीलम नहीं, पन्ना है! तिरुनल्लार मंदिर से जुड़ा अद्भुत प्रमाण
  3. दक्षिण भारत का तिरुनल्लार शनि मंदिर: जहाँ पन्ना शिवलिंग बदल देता है मान्यता
  4. शनि देव और पन्ना रत्न का गहरा संबंध – तिरुनल्लार मंदिर की अनसुनी सच्चाई
  5. क्या वाकई शनि का रत्न नीलम है? तिरुनल्लार पन्ना शिवलिंग खोलता है रहस्य
  6. शनि उपासना और रत्न का विज्ञान: क्यों तिरुनल्लार मंदिर में पूजित है पन्ना शिवलिंग
  7. नीलम या पन्ना? तिरुनल्लार स्वयंभू शिवलिंग से मिलता है शनि के रत्न का असली उत्तर


तिरुनल्लार शनि मंदिर: पन्ना शिवलिंग से खुला शनि का रहस्य – नीलम नहीं पन्ना है असली रत्न!

दक्षिण भारत के तिरुनल्लार स्वयंभू शनि मंदिर में पूजित शिवलिंग न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसके अद्भुत रत्न ज्ञान से जुड़ी जानकारी भी है। परंपराओं के अनुसार, शनि ग्रह के लिए अक्सर नीलम रत्न की सलाह दी जाती है। लेकिन तिरुनल्लार मंदिर में स्थित पन्ना रत्न वाला शिवलिंग इस विश्वास को पूरी तरह बदल देता है।



🔹 पन्ना शिवलिंग और शनि ग्रह

  1. तिरुनल्लार मंदिर में स्थित शिवलिंग सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्भुत उदाहरण है।
  2. यह स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात् प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हुआ।
  3. विशेष आकर्षण: शिवलिंग में पन्ना रत्न निहित है, जो शनि ग्रह की शक्ति का वास्तविक प्रतीक माना जाता है।

ध्यान देने योग्य बात: शास्त्रों में शनि ग्रह का रत्न नीलम नहीं, बल्कि पन्ना होना चाहिए।

🔹 शनि का रत्न: पन्ना बनाम नीलम

क्यों है यह मंदिर विशेष


  1. दक्षिण भारत में तिरुनल्लार मंदिर एकमात्र स्थान है जहाँ शनि के रत्न को सीधे शिवलिंग में देखा जा सकता है।
  2. शनि की प्रतिकूल दशा और दुष्प्रभाव को शांत करने हेतु यहां विशेष पूजा की जाती है।
  3. ग्रहण, राहुकाल और शनिवार के दिन विशेष पूजा-अर्चना से शनि दोष निवारण होता है।


🔹 शनि के रत्न और जीवन में लाभ

  1. सौभाग्य और समृद्धि: पन्ना रत्न शनि की शक्ति को संतुलित करता है।
  2. सकारात्मक ऊर्जा: नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
  3. आध्यात्मिक शक्ति: शिवलिंग की ऊर्जा के साथ संयोजन से मानसिक शांति और ध्यान में सुधार।

शनिदेव की पूजा विधि:


  1. शनिवार या राहुकाल में पूजा
  2. पन्ना रत्न को ऊँ नमः शिवाय मंत्र के साथ धारण करना लाभकारी
  3. नियमित रूप से शिवलिंग पर जल-अभिषेक और राहुकाल में Raahukey oil से दीपदान


🔹 निष्कर्ष

  1. तिरुनल्लार शनि मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि शनि ग्रह की ऊर्जा और उसके सही रत्न का प्रमाण है।
  2. पौराणिक मान्यता: शनि का वास्तविक रत्न पन्ना है।
  3. यह ज्ञान और अनुभव धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि दोनों से महत्वपूर्ण है।

🌟 यदि आप शनि ग्रह की अनुकूलता, शुभता और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा चाहते हैं, तो तिरुनल्लार मंदिर की यात्रा और पन्ना शिवलिंग की पूजा अवश्य करें। 🌟

🕉️ तिरुनल्लार शनि मंदिर: नल की विपत्ति हरने वाला देवता और 2 लाख वर्ष पुराना मंदिर

  1. दक्षिण भारत में तिरुनल्लार (Tirunallar) शनि मंदिर, जिसे सनीस्वर मन्दिर भी कहा जाता है, न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और ज्योतिषीय मान्यता इसे विशेष बनाती है।


🔹 तिरुनल्लार का अर्थ

  1. तिरुनल्लार” का अर्थ है – नरवर के राजा और जयपुर घराने के पूर्वज राजा नल की विपत्ति हरने वाला देवता”।
  2. इसे शनि ग्रह के प्रभाव और दोषों को शांत करने वाला स्थान माना जाता है।
  3. यहाँ आने वाले भक्त मानते हैं कि शनि ग्रह के प्रतिकूल प्रभाव और कालसर्प दोष का शमन होता है।


🔹 भौगोलिक स्थिति

  1. स्थान: भारत के पांडिचेरी प्रदेश, कराईकल जिला मुख्यालय
  2. दूरी: पुडूच्चेरी से 135 किमी, चेन्नई के दक्षिण में 300 किमी
  3. विशेष: शहर प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है और तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है।


🔹 मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

  1. तिरुनल्लार का शनि मंदिर 2 लाख वर्ष पुराना माना जाता है।
  2. यह विश्व का एकमात्र शनि मंदिर है, जो अपनी प्राचीनता और ज्योतिषीय महत्व के कारण अनूठा है।
  3. मंदिर में शनि देव की विशेष पूजा और अभिषेक विधियाँ की जाती हैं।


🔹 ज्योतिषीय महत्व

  1. शनि ग्रह को हिन्दू ज्योतिष में न्यायप्रिय और कर्मफल देने वाला ग्रह माना जाता है।
  2. यहाँ की पूजा से शनि दोष, कालसर्प दोष और राहु-केतु के प्रतिकूल प्रभाव कम होते हैं।
  3. विशेष रूप से शनिवार और राहुकाल में होने वाली पूजा अत्यंत प्रभावकारी मानी जाती है।


🔹 तिरुनल्लार शनि मंदिर की विशेषताएँ

  1. स्वयंभू शनि मूर्ति – प्राकृतिक रूप से प्रकट हुई मूर्ति।
  2. दूसरे मंदिरों से अद्वितीय – विश्व का अकेला शनि मंदिर।
  3. दीर्घायु और प्राचीनता – लगभग 2 लाख वर्ष पुराना।
  4. भक्तों की आस्था का केंद्र – शनि दोष निवारण और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा।


🔹 शनि पूजा और उपाय

  1. शनि दोष और राहु-केतु के प्रभाव से मुक्ति के लिए यहाँ विशेष पूजा की जाती है।
  2. राहुकी तेल और दीपदान विधि से शनि और राहु दोषों का निवारण किया जाता है।
  3. नियमित पूजा से जीवन में सौभाग्य, सफलता और मानसिक शांति आती है।


🔹 निष्कर्ष

तिरुनल्लार शनि मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि ऐतिहासिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी अद्वितीय है।

  1. यहाँ आने वाले भक्त शनि ग्रह के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होते हैं।
  2. प्राचीनता, पौराणिक महत्व और पूजा पद्धति इसे विश्वभर के शनि उपासकों के लिए अनोखा तीर्थस्थल बनाती है।

🌟 यदि आप शनि दोष से मुक्ति, सफलता और सकारात्मक ऊर्जा चाहते हैं, तो तिरुनल्लार शनि मंदिर की यात्रा अवश्य करें। 🌟

दक्षिण भारत में पाण्डुचेरी के पास भारत का प्रमुख धार्मिक स्थल - तिरुनललार स्थित है। सम्पूर्ण दक्षिण भारत में यह जबरदस्त मान्यता है कि निषध देश के राजा नल ने शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए यहाँ स्थित कुण्ड में स्नान करके शिव एवं शनि की पूजा की थी।

प्रचलित लोक कथा के अनुसार जब शनि के प्रकोप से राजा नल ने अपना राजपाट एवं पत्नी दमयंती को खो दिया था एवं जंगलों में भटक रहे थे तब भारद्वाज मुनि' ने उन्हें तिरुनललार जाकर पूजा करने का सुझाव दिया था। उनका सुझाव मानकर नल ने यहाँ पवित्र कुण्ड में स्नान किया तथा इस स्थल पर भगवान शिव और उनके द्वारपाल शनि की पूजा की।

ऐसा करने से नल को शनि के प्रकोप से मुक्ति मिल गई और कालान्तर में दमयंती से मिलन हुआ तथा खोया हुआ राजपाट मिल गया ।

तिरुनल्ल का शाब्दिक अर्थ है - तिरु (देवता); नल (निषध का राजा); अरु - विपत्ति हरना अर्थात् नल की विपत्ति को हरने वाला देवता!

दक्षिण भारत के तीर्थों में नलतीर्थ (तिरुनललार) का विशेष स्थान है। कहा जाता है कि जो यहाँ मन्दिर के कुण्ड में स्नान कर लेता है उसके समस्त बुरे कर्मों का क्षय हो जाता है। वस्तुतः यह विशाल मन्दिर भगवान शिव का मन्दिर है, जिसके द्वारपाल के रूप में शनि प्रथम पूज्यित है। यह माना जाता है कि इस स्थान पर प्रथमतः शनि आप पर कृपा करेंगे। उसके उपरान्त ही भगवान शिव की कृपा होगी।

शनि का यह मन्दिर लाखों वर्ष पुराना है । मन्दिर में स्थापित शनि का विग्रह अत्यन्त सुन्दर है। मन्दिर परिसर में कई आकर्षक गोपुरम तथा मण्डप है। इसमें नल सरोवर सर्वाधिक प्रमुख हैं। कथा है कि भगवान शिव ने अपने भक्त राजा नल की विपत्ति दूर करने हेतु त्रिशूल से गंगा को यहाँ पहुँचाया था।

शनि शिवा मंदिर में मन्दिर में रोज छः बार पूजा होती है तथा शनिवार को विशेष पूजा का आयोजन होता है।

३० माह में एक बार शनि के राशि परिवर्तन पर भी विशेष पूजा की जाती हैं मन्दिर में मुख्य शिवलिंग पन्ना रत्न का है। शनि के प्रसन्न होने पर राजा नल ने उनसे वरदान मांगा था कि जो कोई इस मन्दिर में आकर राजा नल की कहानी सुनेगा एवं शनि की पूजा करेगा शनि उसे कभी कष्ट नहीं पहुँचाएँगे। तिरुनललूर का वास्तविक नाम दुर्भारण्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ कुशा घाँस का वन !

तिरुनल्लार का अर्थ और ऐतिहासिक महत्व

  1. तिरुनल्लार का अर्थ है – “नल की विपत्ति हरने वाला देवता”।
  2. यह मंदिर 2 लाख वर्ष पुराना है और विश्व का एकमात्र शनि मंदिर है।
  3. भक्त मानते हैं कि यहाँ शनि दोष, कालसर्प दोष और राहु-केतु के अशुभ प्रभावों का निवारण होता है।

पूजा विधि और लाभ

  1. राहुकी तेल और दीपदान से शनि और राहु दोष का शमन किया जाता है।

  1. शनिवार और राहुकाल में पूजा करने से जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और मानसिक शांति आती है।
  2. नियमित अभिषेक और मंत्र जाप से शनि ग्रह का अशुभ प्रभाव कम होता है।
  3. यह मंदिर शनि और राहु दोषों से मुक्ति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने का सर्वोत्तम स्थल है।

🌟 यदि आप शनि दोष और राहु-केतु के अशुभ प्रभाव से मुक्त होना चाहते हैं, तो तिरुनल्लार मंदिर की यात्रा अवश्य करें। 

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