अमृतम रावण रहस्य से साभार दशहरा केवल रावण दहन का पर्व नहीं है, बल्कि ये प्राचीन दसराह है जो दसों दिशाओं के मार्ग खुलने का प्रतीक है। जानिए रावण की बुआ देवी महानंदा का शिव से वरदान, महालक्ष्मी के स्थिर स्वरूप और विष्णुपत्नी लक्ष्मी की चंचलता का रहस्य।

  1. 🔱 दशहरा का असली रहस्य : रावण, देवी महानंदा का वरदान और स्थिर-चंचल लक्ष्मी का गूढ़ विज्ञान!

🔮 रावण का कुल और महर्षि पुलत्स्य

  1. रावण कोई साधारण राक्षस या असुर नहीं था। वैसे संस्कृत शब्दकोश में राक्षस का अर्थ रक्षा करने वाला बताया है!
  2. असुर का आशय है विचारों की भिन्नता! मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सब कम जल्दी सध जाते है! ये सामंजस्य का प्रतीक है!

कहा गया है कि

जहाँ सुमध वहाँ संपन्न नाना!

  1. श्री रावण दशानन महर्षि पुलत्स्य ऋषि का वंशज था, जो सप्तऋषियों में से एक थे।
  2. शिवभक्त पुलत्स्य के वंश में अद्भुत ज्ञान, तप और शक्ति का प्रवाह था! इसी वंश की एक पावन स्त्री थीं – महानंदा देवी।

🙏 देवी महानंदा का तप और वरदान

  1. महानंदा, महर्षि पुलत्स्य की अविवाहित ब्रह्मचारिणी बहन थीं। उन्होंने हिमालय पर जाकर भोलेनाथ शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया।

वरदान स्वरूप देवी महानंदा ने क्या माँगा?

  1. जो कोई भी हमारे कुल, गोत्र और वंश की बुराई करेगा, उसके घर महालक्ष्मी (शिवशक्ति) कभी स्थायी रूप से निवास न करें। इसका तात्पर्य था कि –
  2. निंदा, अपमान और नकारात्मकता करने वाले लोगों के घर स्थायी सुख-समृद्धि नहीं टिक सकती।
  3. केवल सद्भाव और सम्मान करने वालों पर ही महालक्ष्मी का स्थायी वास होता है।

💰 स्थिर महालक्ष्मी और चंचल विष्णुपत्नी लक्ष्मी का रहस्य

भारतीय धर्मग्रंथों में लक्ष्मी के दो स्वरूपों का उल्लेख मिलता है –

1. महालक्ष्मी (शिवशक्ति) – स्थिर स्वरूप

  1. यह शिव की शक्ति मानी जाती हैं।
  2. जहाँ महालक्ष्मी का वास होता है वहाँ स्थायी सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य मिलता है।
  3. महालक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए सत्य, सेवा, तप और श्रद्धा आवश्यक है।

2. विष्णुपत्नी लक्ष्मी – चंचल स्वरूप

  1. ये भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और चंचल कही जाती हैं।
  2. ये किसी भी घर या स्थान पर अधिक समय तक नहीं टिकतीं।
  3. इनसे मिलने वाला सुख और ऐश्वर्य क्षणिक होता है। 📖 शास्त्रों में कहा गया है –

चंचला लक्ष्मी अनित्यं सुखं”

  1. अर्थात् विष्णुपत्नी लक्ष्मी स्थायी सुख नहीं देतीं।

⚡ दशहरा और देवी महानंदा का वरदान

  1. दशहरा का गहरा संबंध समृद्धि और लक्ष्मी से है।
  2. दशहरा केवल रावण दहन नहीं, बल्कि दसराह – दस राहों का उद्घाटन है।
  3. इस दिन आकाश में दसों दिशाओं के द्वार खुलते हैं और शुभ ऊर्जा का प्रवाह होता है।
  4. यदि इस दिन हम निंदा, अपमान या नकारात्मक कार्य करते हैं, तो देवी महानंदा के वरदान के अनुसार महालक्ष्मी हमारे घर से स्थायी रूप से चली जाती हैं।
  5. इसलिए दसराह (दशहरा) का सही पालन है – सकारात्मक कार्य, दान-पुण्य और सद्भावना से भरा हुआ है!

भारत का सबसे प्राचीन और रहस्यमयी पर्व है दशहरा।

आज अधिकांश लोग इसे केवल “रावण दहन” के रूप में मानते हैं, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ बहुत गहरा और दिव्य है।

👉 दशहरा नहीं! दसराह = दस राहें १० दिशायें

  1. अर्थात् इस दिन दसों दिशाओं के द्वार खुलते हैं और आकाशीय ऊर्जा का प्रवाह होता है।
  2. यह दिन केवल बुराई पर अच्छाई की विजय का नहीं बल्कि समृद्धि, ऊर्जा और स्थिर लक्ष्मी के आगमन का पर्व है।

🔮 रावण का कुल और महर्षि पुलत्स्य

  1. रावण कोई साधारण राक्षस नहीं था।
  2. वह महर्षि पुलत्स्य ऋषि का वंशज था, जो सप्तऋषियों में से एक थे।
  3. पुलत्स्य के वंश में अद्भुत ज्ञान, तप और शक्ति का प्रवाह था।
  4. इसी वंश की एक पावन स्त्री थीं – महानंदा देवी।


🔱 रावण और दशहरा का संबंध

  1. रावण को केवल अहंकारी राक्षस के रूप में देखना अधूरा दृष्टिकोण है।
  2. वह एक महान विद्वान, आयुर्वेदाचार्य, संगीतज्ञ और शिवभक्त था।
  3. उसने शिव तांडव स्तोत्र जैसा अमर ग्रंथ रचा।
  4. उसके वंश की परंपराओं और देवी महानंदा के वरदान को समझे बिना दशहरा अधूरा है।

👉 असली दशहरा रावण दहन नहीं, बल्कि दसों दिशाओं में शुभ ऊर्जाओं का स्वागत और स्थिर महालक्ष्मी को घर में आमंत्रित करना है।

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