दमोह
दमयंती का शहर दमोह-
- म.प्र. के सागर सम्भाग में दमोह जिला मुख्यालय है। "दमोह का नाम नरवर की रानी दमयंती जो राजा नल की पत्नी थी के नाम पर पड़ा।
- सन् 1903 के गजेटियर के अनुसार "दमोह के लोगों की मान्यता थी कि राजा नल की धर्मपत्नी दमयंती के नाम पर इस शहर का नाम दमोह पड़ा। सन् 1917 में दमोह के डिप्टी कमिश्नर राय बहादुर हीरालाल की पुस्तक "दमोह-दीपक" में भी इस मान्यता की पुष्टि की गई है।
- महाभारत के अनुसार विदर्भ के राजा भीम के गुरु का नाम दमन ऋषि था। उनके आशीर्वाद से ही भीम के यहाँ संतानों का जन्म हुआ।
- अतः उसने अपनी संतानों का नाम दम, दांत और दमन तथा पुत्री का नाम दमयंती रखा। दमन एक वैदिक ऋषि थे, जिन्होंने ऋग्वेद के दसवें मण्डल के दसवें सूक्त की 16वीं ऋचा का सृजन किया था। दमन ऋषि का आश्रम दमोह की व्यारमा नदी के पास वर्तमान में अमाना के पास स्वमखेड़ा के जंगलों में था।
- म.प्र. संस्कृति विभाग द्वारा दमयंती गढ़ी दमोह को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। वर्तमान में इसमें "रानी दमयंती पुरातत्व संग्रहालय संचालित है।
- ताप्ती नदी का उद्गम स्थल (मूलतापी) "मासोद का तालाब"
- म.प्र. के बैतूल जिले के मुलताई नगर से ताप्ती नदी का उद्गम होता है। इस नदी का कहानी में कई बार उल्लेख आता है। ताप्ती को तापी, भद्रा, आदिगंगा, तप्ती, पयोष्णी आदि नाम से भी जाना जाता है। इसी मुलताई नगर के पास मासोद नामक ग्राम है। इस ग्राम में एक बड़ा तालाब है।
- इस आदिवासी बहुल ग्राम में इस तालाब से बही किंदवती जुड़ी है। अनेक स्थानों से जुड़ी है। इस किंवदंती के अनुसार जगलों में भटकने के बाद भूख लगने पर नल ने इस तालाब से मछली पकड़कर भूनने का प्रयास किया था, किन्तु हाथों से छिटककर वापिस उसी तालाब में जा गिरी। इस क्षेत्र में प्रचलित कथाओं में नल-दमयंती के सन्दर्भ में यह कहावत प्रसिद्ध है।
ऊँचा खेड़ा पर पट्टन गाँव,
मंगल राजा मोती - दमोती (दमयंती) रानी।
बरूबा वामन कहै कहानी हमसे कहती उनसे सुनती सोलह बोल की एक कहानी, सुनो महालक्ष्मी रानी
आमोती-दामोती (दमयंती), बम्मन बरूआ। पुलपाटन गाँव मगर से राजा। हम कहते - तुम सुनते - सुनो महारानी सोलह बोल की एक कहानी।
- इस कहानी को बुन्देलखण्ड के ग्रामीण अंचलों में हाथी पूजनी (व्रत) को कहा जाता है। इस दिन महिलाएँ मिट्टी का हाथी बनाकर उसकी पूजा करती है तथा 16 बार उपरोक्त कहावत कहती हैं। वे एक कलावें में 16 गठानें भी लगाती हैं तथा वर्ष भर उसको पहने रहती हैं।
कहा जाता है कि यह व्रत शिव-पार्वती के प्रेम को समर्पित है ओर ऐसा करने से दाम्पत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। नल-दमयंती
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