वसंत का असली अर्थ – ऋतु नहीं, जीवन दर्शन है वसंत! तुम हो, तो बसंत अन्यथा सब अंत! सन्त, पन्थ, ग्रन्थ बसंत के किस्सों से भरे पड़े हैं! पढ़ने से तन-मन जीवंत हो उठता है!

  1. जानिए वसंत का गहरा अर्थ। वसंत सिर्फ ऋतु नहीं, बल्कि परिश्रम, आत्मबल और जीवन दर्शन का प्रतीक है। पढ़ें अमृतम का यह प्रेरणादायी ब्लॉग।
  2. वसंत केवल एक ऋतु परिवर्तन नहीं, बल्कि जीवन परिवर्तन का संदेश है। यह हमें सिखाता है—


आया वसंत

  1. परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों,
  2. मौसम चाहे कैसा भी हो,
  3. अगर मन प्रसन्न है और कर्म श्रेष्ठ हैं, तो जीवन में हमेशा वसंत रहेगा।

वसंत—यह केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि जीवन की नई शुरुआत का प्रतीक है। जब हम कहते हैं “आया वसंत”, तो उसका अर्थ सिर्फ खेत-खलिहानों में उपजे सरसों के पीले फूल या वृक्ष पर कोयल की मधुर कुहुक तक सीमित नहीं है।

असली वसंत वह है, जो हमारे मन और आत्मा में खिलता है।


🌱 वसंत का असली अर्थ

  1. वसंत मौसम पर निर्भर नहीं है।
  2. यह मनुष्य की आत्मपरिदृष्टि और हृदय की अवधारणा है।
  3. श्रम और परिश्रम का फल ही असली वसंत है—जब मेहनत रंग लाती है, तो हर मौसम वसंत जैसा लगता है।

🌼 मौसम बनाम वसंत

  1. मौसम बदलते रहते हैं—कभी अनुकूल, कभी प्रतिकूल।
  2. लेकिन वसंत स्थायी है।
  3. वसंत अब केवल प्रकृति के रंगों में नहीं, बल्कि हमारे विचारों और कर्मों में बसता है।

🔥 नया वसंत – नई सभ्यता

  1. वसंत अब सिर्फ मृगछौना, हास-परिहास या टेसू के फूलों तक सीमित नहीं।
  2. यह जीवन का वह उत्साह है, जो अधजले कोयले को भी राख कर नई ऊर्जा पैदा कर देता है।
  3. आज की नई सभ्यता वसंत को एक नए आयाम में ढाल रही है—जहाँ परिश्रम, सकारात्मक सोच और कर्म ही असली वसंत हैं।



🌺 प्रेरणा


  1. 👉 यदि आप मेहनती हैं, ईमानदारी से काम कर रहे हैं और अपने मन में उत्साह को जीवित रखते हैं, तो हर दिन आपके जीवन में वसंत का आगमन होगा।
  2. 👉 वसंत का मतलब है—संघर्ष से ऊपर उठकर नई शुरुआत करना। दुर्भाग्य बदलना! जीवन में परिवर्तन करना!

- वसंत आ गया, हमने कहा न, आया या नहीं सभी कुछ परख और अर्थ पर होता है।

  1. - वसंत किसी अवसर विशेष पर आये, किसने कहा है ? मनुष्य की आत्मपरिदृष्टि और हृदय की अवधारणा वसंत की संज्ञा है-समय हो या न हो !

- वसंत श्रमजीवी है।

- श्रम फल देगा तो वसंत आ ही जाएगा। इसलिए वसंत का संबंध मौसम से संबद्ध नहीं है।

- मौसम निकृष्टतम, अनिष्ठावान, अश्रद्धेय और अविश्वासी होता है।

-अविश्वासी के साथ विश्वास की शाश्वतता का संपर्क कैसा?

- इसके विपरीत वसंत है; आदिकाल से निरापद श्रंगार बांटता रहा है। समय ने उसे भी बदल दिया है।

- वसंत अब न मृगछौना है

- वसंत न अब युवतियों का हास-परिहास है

- वसंत न अब सरसों के फूलों का सुहाग है

- वसंत न ही टेसुओं का अधजला अंगारा है और न वसंत कोयले से अधजले अंगारे के बीच सुरक्षा-कवच है।

- वसंत अब अधजले कोयले को पल-भर में खाक कर देगा।

- मौसम अंगड़ाइयां लेता रहेगा, वसंत उसका समीकरण अब नहीं बनेगा।

- अब क्या वसंत, क्या शरद और क्या पावस ?

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