ग़रीबी, दुख, दर्द, कालसर्प, पितृदोष और रोग-विकार को जड़ से मिटा देता है राहु
क्या कालसर्प अमीर नहीं बनने देता।कालसर्प क्या है इसके बारे में दुर्लभ जानकारी
अमृतम कालसर्प विशेषांक से साभार

जय आप जानते हैं?
- हमारे पापों पर राहु की और हमारे पुण्य पर केतु की नजर है
- राहु और केतु दोनों छाया ग्रह है। राहु के रहस्य को आज तक कोई समझ नही पाया। परम् शिव उपासक राहु दैत्य होकर भी देवताओं जैसा सम्मान प्राप्त है। इस कारण इन्हें राहुदेव कहकर सम्बोधन किया जाता है। इनके साथ देवताओं द्वारा छल करने के परिणाम स्वरूप राहु को सिर कटवाना पड़ा । इस कपट पूर्ण प्रक्रिया के कारण राहु के दो धड़ हुए।
तत्पश्चात ऊपर का धड़ राहु ओर नीचे का धड़ केतु ग्रह के नाम से ब्रह्मांड में जाना जाता है।
जन्मकुंडली/जन्मपत्रिका या पत्रा में राहु-केतु हमेशा एक दूसरे से सप्तम भाव में विराजमान रहते हैं। राहु से केतु के बीच सात में से सात सभी ग्रह स्थित हों, तो कुंडली भयंकर कालसर्प दोष या योगसे प्रभावित होती है।
- रावण रचित मन्त्रमहोदधि एवं रावण संहिता के अनुसार यह स्थिति उस समय और भी विकराल हो जाती है, जब कुंडली में कालसर्प के साथ-साथ यदि केमद्रुम दोष भी हो, यह तब बनता है,जब चंद्रमा एवं सूर्य के आगे-पीछे कोई भी ग्रह न हो और यदि केतु के साथ सूर्य या चंद्रमा भी हों, तो ये खतरनाक पितृदोष कहलाता है। ऐसा जातक घोर दरिद्रता में जीता है।
क्या कहते हैं-गुरुजन
- विशेष- वेदगुरु महामंडलेश्वर श्री श्रीस्वामी विद्यानंद जी सरस्वती के अनुसार कालसर्प, पितृदोष आदि दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के उपाय स्कन्दःपुराण में विस्तार से बताया गया है। ऐसे पीड़ित लोगों को प्रत्येक माह की शिवरात्रि को अष्टधातु के शिवलिंग का रुद्राभिषेक प्रतिदिन शिव पूजा, दर्शन और सूर्य की अधिक से अधिक उपासना करना चाहिए।
अष्टधातु में होता है राहु का वास
- राहु पाताल का मालिक है और पाताल से ही सभी धातुओं की प्राप्ति होती है।
परमादर्श महामंडलेश्वर स्वामी श्रीविद्यानंद जी सरस्वती के मुताबिक अष्टधातु में राहु का वास होता है। इसलिए जीवन में एक बार गुजरात में वरुमाल ( तालुका-धरमपुर) जिला बलसाड़ में स्थित श्री भावभावेश्वर महादेव मन्दिर धाम त्रयोदश ज्योतिर्लिंग तीर्थ में स्थापित शिंवलिंग पूर्णतः अष्टधातु से निर्मित है। इस श्री भावभावेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवालय में चन्दन इत्र अथवा अमृतम तेल द्वारा एकदशनी रुद्राभिषेक करने से जीवन में चमत्कारी परिणाम मिलते हैं।
राहु से होने वाले पांच अनिष्ट –
【1】राहु से पीड़ित कभी कभी व्यक्ति आत्महत्या करने तक की सोचने लगता है।
【2】दुनिया के जितने भी कष्ट, क्लेश, दुख, द्रारिद्रय तथा गरीबी सब राहु की देन है।
【3】राहु जब किसी को सताते है, तो ईश्वर भी मदद नही करता।
【4】पूजा-पाठ इत्यादि करने से हानि होती है। भय-भ्रम उत्पन्न कर व्यक्ति को मतिहीन बना देता है
【5】राहु हमेशा सूर्य को ग्रहण लगाते है।
सूर्य हमारी आत्मा है। इसका दुष्प्रभाव यह होता है कि हमारा मन अशांत रहता है।
दुःख दारिद्र नाशक उपाय –
राहु के प्रकोप से बचने का सबसे सरल उपाय यह है कि प्रतिदिन किसी भी एकांत शिवमंदिर में राहुकाल में 54 दिन तक लगातार राहुकी तेल के पांच दीपक पीपल के पत्ते पर रखकर जलाएं और
!!”नमः शिवाय च नमः शिवाय“!! मन्त्र की पांच माला करें तथा अपने पिछले पापों का प्रायश्चित करें।
🐍 कालसर्प दोष और राहु का रहस्य – क्यों नहीं मिलता सुख और धन?
भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु दो रहस्यमयी छाया ग्रह माने जाते हैं। ये ग्रह व्यक्ति के जीवन, भाग्य और मनःस्थिति पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
कहा जाता है कि अगर जन्मकुंडली में कालसर्प दोष बन जाए, तो जातक को जीवनभर कठिनाइयों और दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता है।

✨ राहु और केतु का रहस्य
- राहु और केतु वास्तविक ग्रह नहीं, बल्कि छाया ग्रह हैं।
- हमारे पापों पर राहु की दृष्टि और पुण्यों पर केतु की दृष्टि रहती है।
- राहु को देवताओं ने छल से सिरविहीन कर दिया था, परंतु भगवान शिव के उपासक होने के कारण इन्हें देवताओं जैसा सम्मान मिला और इन्हें राहुदेव कहा जाने लगा।
- राहु का ऊपरी हिस्सा और केतु का निचला हिस्सा मिलकर ये दोनों छाया ग्रह बने।

🐍 कालसर्प दोष क्या है?
- जब जन्मपत्रिका में राहु और केतु के बीच सभी सात ग्रह आ जाते हैं, तब यह योग बनता है।
- इसे “कालसर्प दोष” कहा जाता है।
- यदि इसके साथ केमद्रुम दोष (चंद्रमा के आगे-पीछे कोई ग्रह न हो) भी जुड़ जाए, तो स्थिति और विकराल हो जाती है।
- और यदि सूर्य या चंद्रमा भी केतु के साथ हों, तो इसे पितृदोष कहा जाता है।
👉 फल: ऐसा जातक धन और सुख से वंचित रहता है, जीवन में संघर्ष बढ़ता है और अमीर बनने का मार्ग रुक जाता है।

📜 रावण संहिता और मन्त्रमहोदधि में वर्णन
- रावण रचित ग्रंथों में कहा गया है कि कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को दरिद्रता, मानसिक क्लेश और पारिवारिक असंतोष का सामना करना पड़ता है।
- यदि पितृदोष भी हो, तो यह स्थिति घोर कष्टकारी होती है।
🕉️ क्या कहते हैं गुरुजन?
महामंडलेश्वर श्री श्री स्वामी विद्यानंद जी सरस्वती के अनुसार –
- कालसर्प दोष और पितृदोष केवल कठिनाई नहीं, बल्कि पिछले जन्मों के कर्मों का फल है।
- इसका समाधान स्कन्द पुराण में बताया गया है –
- शिवलिंग पर रुद्राभिषेक
- सूर्य की उपासना
- अष्टधातु के शिवलिंग की पूजा

⚡ अष्टधातु में राहु का वास
- राहु को पाताल का स्वामी कहा गया है।
- सभी धातुएं पाताल से निकलती हैं, इसलिए राहु का वास अष्टधातु में माना गया है।
- गुजरात (जिला बलसाड़, तालुका-धरमपुर) स्थित भावभावेश्वर महादेव मंदिर में अष्टधातु का ज्योतिर्लिंग है।
- यहाँ चन्दन, इत्र या अमृतम तेल से रुद्राभिषेक करने पर जीवन में चमत्कारी परिणाम मिलते हैं।
☠️ राहु से होने वाले पाँच अनिष्ट
- आत्महत्या का विचार आना।
- कष्ट, क्लेश, दुख और गरीबी।
- ईश्वर से दूरी और निराशा।
- पूजा-पाठ में मन न लगना।
- सूर्य (आत्मा) पर ग्रहण लगना → मन अशांत रहना।
🙏 कालसर्प दोष से मुक्ति के उपाय
- प्रतिदिन किसी भी एकांत शिवमंदिर में जाएं।
- राहुकाल में 54 दिनों तक लगातार राहुकी तेल के पाँच दीपक पीपल के पत्ते पर रखकर जलाएं।
- “ॐ नमः शिवाय च नमः शिवाय” मंत्र की पाँच माला करें।
- अपने पापों का प्रायश्चित करें और मन को शांत रखें।
👉 इस उपाय से धीरे-धीरे दरिद्रता, बाधा और कालसर्प दोष का प्रभाव कम होता है।
🔑 निष्कर्ष
कालसर्प योग और राहु-केतु का प्रभाव व्यक्ति को धन, सुख और सफलता से वंचित कर सकता है। परंतु शिव उपासना, अष्टधातु शिवलिंग रुद्राभिषेक और राहुकाल में दीपदान जैसे उपायों से इसे सौभाग्य में बदला जा सकता है।
याद रखें – कर्म + साधना = भाग्य परिवर्तन।
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