दुनिया का एक मात्र केतु मंदिर का रहस्य

  1. नवग्रह में केतु एक ऐसा गृह है, जो सार्वभौमिक, आद्यप्ररुपील ऊर्जा के संचारक है। अश्वनी, मघा, मूल नक्षत्रों के अधिपति है। इन नक्षत्रों में जन्मे जातकों पर मूल पड़ते हैं। अतः इन्हें मूल की शांति निश्चित रूप से कराना चाहिए।

  1. अश्वनी नक्षत्र में जन्म हो, तो दवा दान एवं मरीज़ों कि सेवा करें। हरेक रविवार को ताजी औषधि का रस शिवलिंग पर राहुकाल एक चम्मच अर्पित करने से निश्चित ही भाग्योदय होने लगता है।

मघा में जन्म हो, तो प्रतिदिन पितृ-पूर्वजों का स्मरण, सेवा करें। राहुकाल में अमृतम् Raahukey oil के पाँच दीपक जलाकर सुख- समृद्धि की प्रार्थना करें!

  1. मूल नक्षत्र जो कि धनु राशि में आता है! इसमें जन्म होने पर परम शिवा भक्त दैत्य-राक्षसों रावण, हिरणकश्यप आदि का स्मरण करें। मूल नक्षत्र के अधिदेवता दैत्य हैं।
  2. प्रत्येक ग्रह के गुण स्थूल जगत और सुक्ष्म जगत वाले ब्रह्मांड की ध्रुवाभिसारिता के समग्र संतुलन के बनाए रखने में मदद करते हैं।

केतु का करें दान, तो पाएंगे धन और सम्मान…

केतु कुंडली में खराब अवस्था में हो, तो ऐसे जातक को प्रत्येक मंगलवार किसी गुरुद्वारे में 5 लोगों के लिए कढ़ी का सामान बेसन, दही, सभी मसाले, कढ़ीपत्ता आदि 17 मङ्गल तक दान करना चाहिए।

यह उपाय सन्तति की कमी या बच्चे नहीं होना,बच्चों की उन्नति में बाधा हो, गृहकलेश हो, पत्नी से तालमेल बिगड़ा हो, काम में मन न लगता हो, उच्चाटन की समस्या हो तो यह मंगलदान विशेष चमत्कारी रूप फलप्रद है।

  1. सूर्य केंद्र में, चन्द्र सूर्य के दक्षिण पूर्व में (आग्नेय), मंगल सूर्य केदक्षिण में, बुध सूर्य केउत्तर पूर्व (इर्शान कोण), बृहस्पति सूर्य केउत्तर में, शुक्र सूर्य केपूर्व में, शनि सूर्य केपश्चिम में, राहु सूर्य के दक्षिण-पश्चिम में (नैऋत्य) और केतु सूर्य के उत्तर-पश्चिम में (वायव्य) में स्थित होते हैं। इनमें किसी भी देवता का मुख एक दूसरे की तरफ नहीं होता।

केतु ओर सूर्य दोनों की महादशाएं बहुत ही कष्टकाल दायक होती हैं। सूर्य आत्मा का कारक होने आत्मा को दुःख पहुँचाचाते हैं और केतु पितरों के रक्षक होने से केतु की महादशा में पीड़ित पितृ महान परेशानी दायक हैं।

किसी मन्दिर में ध्वजा लगाएं।

नारियल का पानी शिवलिंग पर चढ़ाएं।

  1. तमिलनाडू के कुम्भकोणम के पास केतुग्रह मंदिर शेष नागनाथस्वामि (केतु)

यह पांडिचेरी से 43 किलोमीटर तथा 6 किमी तिरकवेन्डू से Keezpherumpallam ग्राम में स्थित है। यहां शिव को शेष नागनाथ स्वामी तथा माता पार्वती को सुंदरनायकी देवी कहते हैं।

  1. मान्यता है कि केतु ने पाप से मुक्ति के लिए यहां शिव की पूजा की थी। यहां की विशेषता यह है कि यहां केतु का सिर पांच नागों यानि शेषनाग तथा शरीर असुर का है और वे हाथ जोड़े भगवान शिव की पूजा करते दिखते हैं।


  1. आंध्र प्रदेश – “केतु पर्वतेश्वर स्वामी देवस्थानम”।
  2. यहां विशेष रूप से जातक भावुक होकर रोते हैं और पापमुक्ति का अनुभव करते हैं।
  3. यहां रुद्राभिषेक, Raahukey oil से दीपदान और शिवलिंग पूजन विशेष फलदायी है।

  1. केतु के मन्दिर के बगल में हदेव प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है। यहां के दर्शन करते ही जातक फुट-फुट कर रोने लगता है। यह मेरा अनुभव है।

पीड़ितों को इस शिवालयों में अपनी उम्र के बराबर दीपदान करना चाहिए।

मन्दिर कार्यालय में रसीद कटवाकर आप रुद्राभिषेक भी करवा सकते हैं। आप जब तक यहां नहीं जा सकें, तो गणेशजी को रोज कुशा एवं श्रीफल जल अर्पित करें।

वृहद ज्योतिष सहिंता के मुताबिक मानव जीवन व पूरी सृष्टि पर केतु का जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह किसी को भी प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचाने में मदद करता है।

ज्योतिष रत्नाकर के अनुसार केतु और राहु, आकशीय परिधि में चलने वाले चंद्रमा और सूर्य के मार्ग के प्रतिच्छेदन बिंदु को निरूपित करते हैं। इसलिए राहु और केतु को क्रमश: उत्तर और दक्षिण चंद्र आसंधि कहा जाता है।

यह तथ्य कि ग्रहण तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा इनमें से एक बिंदू पर होते हैं, चंद्रमा और सूर्य को निगले वाली कहानी को उत्पन्न करता है। केतु का रत्न-लहसुनिया, तत्व-छाया, रंग-धुम्र, धातु-शीशा होते हैं।

पृथ्वी से जुड़े प्राणियों की प्रभा (ऊर्जा पिंडों) और मन को ग्रह प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है। ग्रहों की ऊर्जा किसी व्यक्ति के भाग्य के साथ एक विशिष्ट तरीके से उस समय जुड़ जाती है जब वे अपने जन्मस्थान पर अपनी पहली सांस लेते हैं और यह ऊर्जा जुड़ाव तब तक साथ रहता है जब तक उसका वर्तमान शरीर जीवित है।

मनुष्य ग्रह या उसके स्वामी देवता के साथ संयम के माध्यम से किसी विशिष्ट ग्रह की चुनिंदा ऊर्जा केसाथ खुद की अनुकुलता बैठाने में सक्षम है।

विशिष्ठ देवताओं की पूजा का प्रभाव उनकी संबंधित ऊर्जा केमाध्यम से पूजा करने वाले व्यक्ति के लिए तदोनुसार फलता है।

विशेष रूप से संबंधित ग्रह द्वारा धारण किए गए भाव के अनुसार ब्रह्मांडीय ऊर्जा जो हम हमेशा प्राप्त करते हैं उसमें अलग-अलग खगोलीय पिंडों से आ रही ऊर्जा शामिल होती है। जब हम बार-बार किसी मंत्र का उच्चारण करते हैं तो हम किसी खास फ्रीक्वेंसी से तालमेल बैठाते हैं और यह फ्रीक्वेंसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ संपर्क कर उसे हमारे शरीर केभीतर और आसपास खींचती है।

  1. ग्रह तारे और अन्य खगोलीय पिंड ऊर्जा की ऐसी सजीव सत्ता है जो ब्रह्मांड के अन्य प्राणियों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार जीवन में नवग्रहों (देवता) का प्रभाव अति महत्वपूर्ण है। ये नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु है। सूर्य सभी ग्रहों का प्रधान है तथा बाकी ग्रह सूर्य से ही ऊर्जा पाते हैं।


तमिलनाडू के कुम्भकोणम के पास केतुग्रह मंदिर

शेष नागनाथस्वामि केतु मंदिर


यह पांडिचेरी से 43 किलोमीटर तथा 6 किमी तिरकवेन्डू से Keezpherumpallam ग्राम में स्थित है। यहां शिव को शेष नागनाथ स्वामी तथा माता पार्वती को सुंदरनायकी देवी कहते हैं।


आंध्र प्रदेश में "केतु पर्वतेश्वर स्वामी देवस्थानम" जिसे केतु के नाम से जाना जाता है,

मान्यता है कि केतु ने पाप से मुक्ति के लिए यहां शिव की पूजा की थी। यहां की विशेषता यह है कि यहां केतु का सिर पांच नागों यानि शेषनाग तथा शरीर असुर का है और वे हाथ जोड़े भगवान शिव की पूजा करते दिखते हैं। केतु के मन्दिर के बगल में हदेव प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है। यहां के दर्शन करते ही जातक फुट-फुट कर रोने लगता है। यह मेरा अनुभव है।


पीड़ितों को इस शिवालयों में अपनी उम्र के बराबर दीपदान करना चाहिए।


मन्दिर कार्यालय में रसीद कटवाकर आप रुद्राभिषेक भी करवा सकते हैं। आप जब तक यहां नहीं जा सकें, तो गणेशजी को रोज कुशा एवं श्रीफल जल अर्पित करें।


वृहद ज्योतिष सहिंता के मुताबिक मानव जीवन व पूरी सृष्टि पर केतु का जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह किसी को भी प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचाने में मदद करता है।

राहु और केतु ज्योतिषीय छाया ग्रहों के नाम हैं। स्कंध पुराण और तंत्र सहिंताओं में राहु केतु दोनों को देवताओं से अधिक बलशाली बताया है।


 यद्यपि राहु और केतु को भगवान के रूप में नहीं माना जाता है, लेकिन कुछ भक्तों द्वारा इनके मंदिर बनाए जाते हैं।


भारत में कुछ स्थानों पर राहु-केतु के मंदिर हो सकते हैं, जहां लोग उन्हें पूजा और अर्चना करते हैं। उदाहरण के रूप में, तमिलनाडु में "नागनाथस्वामी तेम्पल" जो कि राहु को समर्पित है और ऐसे ही कुछ स्थानों पर राहु-केतु के मंदिर हैं।


हालांकि, राहु और केतु के मंदिरों की विस्तृत सूची अस्तित्व में बदल सकती है, और आपके स्थान के आसपास ऐसे मंदिर हो सकते हैं जिन्हें मान्यता प्राप्त है। आपके नजदीकी क्षेत्र में स्थानीय धार्मिक आदर्शों और परंपराओं के अनुसार जानकारी प्राप्त करना उचित होगा।

Keteeswaram Temple, श्रीलंका — ऐसा माना जाता है कि यहाँ केतु ने पूजा की थी।  

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