जगन्नाथ पूरी की रसोई! जानना चाहे हर कोई
- दुनिया के लोग जानकार आश्चर्य चकित हो जाएँगे कि जगन्नाथ पूरी की रसोई में निर्मित होने वाले ५६ भोग जैसे नित्य प्रसाद की खोज नरवर के राजा नल ने ही की थी!

नल-पाक विधि और पुरी जगन्नाथ का महाप्रसाद
1. मसालों और सामग्री का प्रयोग
राजा नल की पाकदर्पणम् में उल्लेखित पाकशैली की विशेषताएँ—
- सैंधव नमक (सेंधा नमक): समुद्री नमक का कहीं भी प्रयोग नहीं मिलता।
- मसाले: अदरक, लहसुन, काली मिर्च, जीरा और धनिया का खूब प्रयोग किया गया है।
- प्याज: केवल एक स्थान पर इसका उल्लेख है।
- सुगंधित वस्तुएँ: कर्पूर (कपूर) का भरपूर उपयोग, जबकि बाद में यह भारतीय रसोई से लगभग लुप्त हो गया।
- केसर और कस्तूरी: 56 भोग की मुख्य सामग्री होते हुए भी इसका उल्लेख इस ग्रंथ में नहीं है।
- चिकनाई: केवल गाय-भैंस के दूध से बने घी का उपयोग, तेल का बिल्कुल भी उल्लेख नहीं।
👉 यह सब दर्शाता है कि नल-पाक में भोजन को केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि आयुर्वेद और स्वास्थ्य रक्षण से जोड़ा गया।

2. जगन्नाथ पुरी के महाप्रसाद से संबंध
- नल-पाक परंपरा का ही विस्तार आज पुरी के जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद में दिखाई देता है।
- यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यहाँ की पाक परंपरा भी अनूठी है।
- जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद विशेष है क्योंकि—
- मंदिर परिसर में सभी जातियों और वर्गों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
- यह व्यवस्था जातिप्रथा और छुआछूत की कुरीतियों को तोड़ने का माध्यम बनी।
- भोजन मिट्टी के बर्तनों में परोसा जाता है, जिससे सब एक समान माने जाते हैं।
3. शास्त्रीय प्रमाण
विष्णु पुराण में स्पष्ट लिखा है—
“नैविधं जगदीशस्य अन्नपानादिकं चयत् ।
भक्ष्याभक्ष विचारस्तु नास्ति तद्भक्षणे द्विज ।।”
अर्थ: भगवान जगन्नाथ को अर्पित अन्न-पान में भक्ष्य और अभक्ष्य का कोई भेद नहीं है। इसे सभी लोग ग्रहण कर सकते हैं।
4. विश्व का सबसे बड़ा रसोईघर
- पुरी मंदिर का रसोईघर आज भी विश्व का सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है।
- यहाँ पर 352 चूल्हों पर प्रतिदिन प्रसाद पकाया जाता है।
- लाखों श्रद्धालु और स्थानीय लोग प्रतिदिन इस महाप्रसाद को ग्रहण करते हैं।
- स्थानीय अर्थव्यवस्था का भी यह प्रमुख आधार है।

निष्कर्ष
राजा नल द्वारा प्रतिपादित नल-पाक विधि ने न केवल प्राचीन काल में आयुर्वेदिक दृष्टि से भोजन को नई पहचान दी, बल्कि यही परंपरा सदियों से पुरी के जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद में जीवित है।
यह एक ऐसा अद्वितीय उदाहरण है, जहाँ पाकशास्त्र, धर्म, संस्कृति और सामाजिक समानता एक सूत्र में बंध जाते हैं।
नल-पाक विधि और जगन्नाथ मंदिर की रसोई परंपरा
1. जगन्नाथ मंदिर का रसोईघर – विश्व का अद्वितीय चमत्कार
- पुरी का जगन्नाथ मंदिर रसोईघर विश्व का सबसे बड़ा माना जाता है।
- यहाँ प्रतिदिन इतना भोजन पकता है कि एक साथ लाख श्रद्धालु भोजन कर सकें।
- मान्यता है कि स्वयं माता लक्ष्मीजी भोजन बनाती हैं और उनकी सहायता देवी विमला एवं दक्षिण काली करती हैं।
- भोजन मिट्टी के बड़े-बड़े पात्रों में पकाया जाता है, जिससे उसका स्वाद और पवित्रता दोनों बढ़ते हैं।
2. चार प्रकार की पाक विधियाँ
पुरी मंदिर की रसोई में प्रतिदिन चार प्रकार की पाक विधियों से व्यंजन तैयार होते हैं—
- गौरी पाक – महादेवी गौरी की परंपरा पर आधारित।
- सौरी पाक – देवी सौरी की विधि पर आधारित।
- भीम पाक – महाभारत के भीम की पाक शैली पर आधारित।
- नल पाक – राजा नल की पाककला पर आधारित।
👉 यह अत्यंत रोचक है कि पौराणिक काल में सीता, द्रौपदी, भीम और राजा नल को पाकशास्त्र में निपुण माना गया और आज भी उनकी पाक विधियाँ जीवित परंपरा का हिस्सा हैं।
3. नल-पाक से निर्मित व्यंजन
नल-पाक विधि से बनाए जाने वाले प्रमुख व्यंजन:
- कुष्माण्ड शाक – खट्टा-मीठा स्वाद वाला कद्दू का व्यंजन।
- प्रपानक व्यंजन – शीतल पेय और मिश्रित स्वाद वाले पेय पदार्थ।
- खीर – मंदिर के मुख्य विग्रह (जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा) को अर्पित प्रमुख व्यंजन।
- बनाने की विधि: गाय के दूध में चावल डालकर पकाया जाता है।
- इसमें घी, सेंधव नमक, मिश्री, गोल मिर्च, कर्पूर आदि सुगंधित द्रव्य डाले जाते हैं।
- ठंडा होने पर उसमें इलायची और लवंग (लौंग) डालकर भगवान को अर्पित किया जाता है।
- दही-भात – नल-पाक की विशेष विधि से बना भोग:
- इसमें गाय के दूध से बने दही में अदरक और तले हुए जीरे का प्रयोग होता है।
- इसे “महाप्रसाद” के रूप में विशेष महत्व प्राप्त है।
👉 चाहे वह सखुंडी (कच्ची रसोई) हो या निसखुंडी (पक्की रसोई) – दोनों ही प्रकार के व्यंजनों में नल-पाक विधि से कई पकवान तैयार किए जाते हैं।
4. परंपरा और स्वीकार्यता
- पुरी जगन्नाथ मंदिर की परंपरा लगभग 3000 वर्ष प्राचीन मानी जाती है।
- यहाँ महाप्रसाद के लिए राजा नल की पाक विधि का प्रयोग होना इस बात का प्रमाण है कि—
- नल की पाककला को केवल एक व्यक्ति या एक राज्य तक ही नहीं,
- बल्कि पूरे भारत और समस्त हिन्दू जनमानस ने स्वीकार किया।
निष्कर्ष
पुरी जगन्नाथ मंदिर की रसोई केवल धर्म और आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि यह पाकशास्त्र, आयुर्वेद, सामाजिक समानता और भारतीय संस्कृति का जीवंत संगम है।
राजा नल की नल-पाक विधि का आज भी महाप्रसाद में प्रयोग होना दर्शाता है कि—
पाकशास्त्री राजा नल का योगदान कालातीत और शाश्वत है।
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