शिवजी के डमरू बाद से जो १४ सूत्र निकले वह तीर्थ नरवर में १४ महादेव के नाम से गुप्त है!

  1. भारत के बहुत कम लोग जानते हैं कि जयपुर घराने के पितृ-पूर्वज राजा नल की प्रथम राजधानी एमपी के शिवपुरी जिले के अंतर्गत नरवर तहसील में थी! नरवर का प्राचीन नाम नीलगिरी, नीलगिरी था!

राजा नल परम शिव भक्त थे

  1. नरवर से ५/७ किलोमीटर दूर एक एकांत पहाड़ी पर टपकेश्वर शिवलिंग के समक्ष राजा नल ने घोर तप किया था!
  2. ग्वालियर में भी टाइट्स बांध के समीप मल्लेश्वरी झरने के नीचे एक गुफा रूपी कमरे में नीलकेश्वर शिवलिंग स्थापित है और पास में ही टपकेश्वर शिवलिंग भी है!
  3. यहाँ अनेकों अर्जुन के प्राचीन वृक्ष हैं! नरवर के राजा नल ने एकांतवास कर शिवजी को रिझाया था!
  4. करेरा पिछोर एमपी के पास ढला नामक ग्राम के पीछे पहाड़ियों पर भी एक झरने के पास टपकेश्वर नाम का स्वयंभू प्राचीन शिवलिंग स्थित है!

चौदह महादेव मंदिर

  1. नरवर की पूर्व दिशा में एक प्रसिद्ध शिव मन्दिर चौदहमहादेव स्थित है। इस मन्दिर में 10-11वीं शताब्दी के 14 शिव मन्दिर समूह, बावड़ी एवं तालाब मौजूद हैं। इस मन्दिर के समीप एक मठ भी मौजूद था, जो आज से 70-80 वर्ष पूर्व नष्ट हो गया था। इस मन्दिर के भीतर बावड़ी में एक महत्वपूर्ण शिलालेख उत्कीर्ण था, जिसको सर्वप्रथम मेजर जनरल ए. कनिंघम ने खोजा था।

  1. यह अभिलेख अत्यन्त विशाल है तथा यज्वपाल वंश के महत्वपूर्ण शिलालेखों में एक है। यह अभिलेख वि.सं. 1355 (ई.सन् 1298) का है।
  2. इस अभिलेख में 21 पंक्तियाँ हैं । प्रथम पंक्ति में भगवान शिव एवं सूर्य की स्तुति उत्कीर्ण है। दूसरी पंक्ति में नलपुर (नगर) जहाँ यह मन्दिर तालाब, बावड़ी, मठ इत्यादि निर्मित हुए की प्रशंसा की है। -
  1. इसके पश्चात् नलपुर राज्य के तत्कालीन राजवंश यज्वपाल वंश की सम्पूर्ण वंशावली अनेक धार्मिक कार्य एवं अन्य सामाजिक विवरण उत्कीर्ण हैं। इस शिलालेख के अनुसार गणपतिदेव ने कीर्तिदुर्ग (चन्देरी) जैसे महत्वपूर्ण दुर्ग को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था । इस शिलालेख की अन्तिम पंक्तियों में इस मन्दिर, तालाब, मठ के निर्माणकर्ता माथुर कायस्थ परिवार की वंशावली एवं कीर्ति का उल्लेख किया है।

  1. यह अभिलेख इतिहास की कई प्राचीन पुस्तकों में उद्धृत है, जिसके अनुसार इसमें नलपुर (नरवर) नगर की प्रशंसा की गई है।

मोटे महादेव, काली मंदिर, हनुमान मंदिर, क़िला मंदिर, खजाना मंदिर आदि अनेक शिवालय राजा नल द्वारा बसाए थे!


  1. नरवर में लोढ़ी माता का एक तांत्रिक मंदिर भी है! कहते हैं कि जो भी एक बार भूल से लोढ़ी माता का प्रसाद खा लेता है उसे दर्शन करने जरूर जाना पड़ता है अन्यथा भारी कष्ट आते हैं!

राजा नल की रक्षा करने वाली माँ लोढ़ी माता मंदिर, नरवर की लोककथा 🌸



अमृतम पत्रिका, ग्वालियर के संपादक अशोक गुप्ता के अनुसार नरवर नगर का इतिहास राजा नल से जुड़ा होने के कारण बहुत प्राचीन है। यहाँ के किले, नल-दमयंती की कथाएँ, और महादेव के प्राचीन मंदिरों के साथ-साथ लोढ़ी माता मंदिर भी गहरी आस्था और लोकविश्वास से जुड़ा हुआ है।


🪔 लोककथा का प्रारंभ


मान्यता है कि सदियों पहले नरवर किले के आसपास एक देवी शक्ति का प्रकट स्थान था। वहाँ पास के गाँवों और वन क्षेत्र में चरवाहे, किसान और स्त्रियाँ जब भी संकट में फँसते, माता उन्हें सहारा देतीं। धीरे-धीरे वहाँ एक छोटा मंदिर स्थापित हुआ।

लोग कहते हैं कि माता ने स्वयं अपने स्थान को चुना था — रातों-रात वहाँ एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई और एक शिला में देवी का स्वरूप दिखा। गाँव की औरतों ने इसे चमत्कार मानकर वहाँ पूजा-अर्चना शुरू की।


👶 संपत्ति- संतति सूनी गोद भरने वाली माता

लोढ़ी माता का सबसे प्रसिद्ध लोकविश्वास है कि वे संतानहीन दंपतियों की गोद भर देती हैं।

  1. जब किसी घर में वर्षों तक संतान सुख नहीं होता, तो पति-पत्नी लोढ़ी माता के दरबार में आकर झूला चढ़ाते हैं।
  2. माता की मन्नत पूरी होने पर, संतान जन्म के बाद वही झूला दुबारा भेंट चढ़ाया जाता है।
  3. इसी वजह से मंदिर में हमेशा लकड़ी के झूले और कपड़े के पालने देखे जा सकते हैं।


🧵 चुनरी यात्रा की कथा

नरवर क्षेत्र में “चुनरी यात्रा” एक बड़ा धार्मिक आयोजन है।

  1. भक्त लंबी-लंबी चुनरी लेकर माता के दरबार में आते हैं।
  2. मान्यता है कि चुनरी माता को अर्पित करने से संकट और रोग-व्याधियाँ दूर होती हैं।
  3. यह परंपरा खासकर आषाढ़ और चैत्र मास में देखने को मिलती है।

कथाओं के अनुसार, किसी समय नरवर नगर महामारी और अकाल से त्रस्त हुआ। लोग चारों ओर मृत्यु और भय से घिरे थे। तब स्त्रियों ने मिलकर देवी से रक्षा की प्रार्थना की और लाल चुनरी लेकर लंबी यात्रा निकाली। कहते हैं कि उसी के बाद नगर की विपत्ति दूर हुई। तब से हर साल चुनरी यात्रा परंपरा के रूप में होती है।


🙏 लोढ़ी माता का चमत्कार

स्थानीय बुज़ुर्ग कहते हैं कि

  1. जब भी नगर में कोई बड़ा संकट आता है, माता की मूर्ति पर स्वेद (पसीने) की बूंदें दिखाई देती हैं।
  2. कई बार माता के दरबार से घंटी या शंख की ध्वनि अपने आप सुनाई देने की लोककथा सुनाई जाती है।
  3. पशु-पक्षी भी यहाँ आकर शांत हो जाते हैं — मान्यता है कि माता का स्थान सभी प्राणियों को आश्रय देता है।


🎭 सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

  1. लोढ़ी माता नरवर क्षेत्र की “कुल देवी” मानी जाती हैं।
  2. नवरात्र में यहाँ भव्य मेले लगते हैं।
  3. विवाह, संतान जन्म और पारिवारिक मंगल कार्यों से पहले लोग माता का आशीर्वाद लेना अनिवार्य मानते हैं।
  4. आसपास के गाँवों में यह भी मान्यता है कि माता की पूजा किए बिना कोई भी नया कार्य सफल नहीं होता।


🏞️ प्रतीकात्मक अर्थ

लोककथा यह भी बताती है कि “लोढ़ी माता” वास्तव में स्त्री-शक्ति का प्रतीक हैं। वे संतान, सुख-समृद्धि और संकट निवारण की देवी हैं। नरवर नगर की पहचान और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा यही मंदिर और इसकी कथाएँ हैं।


👉 क्या आप चाहेंगे कि मैं लोढ़ी माता मंदिर की चुनरी यात्रा और झूला चढ़ाने की प्रथा को और विस्तार से, एक भावनात्मक कथा शैली में लिख दूँ ताकि इसे ब्लॉग या लेख की तरह प्रकाशित किया जा सके?

राहुकाल में और सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण के समय अनेक साधक तथा तांत्रिक लोढ़ी माता परिसर में जाप कर Raahuley oil के दीपक जलाकर सिद्धि पाते हैं!

शनिवार को न जाएँ लोढ़ी माता

  1. कुछ अघोरी साधक लोढ़ी माता को राहु की बहिन भी बताते हैं! शुक्रवार की रात्रि में लोधी माता दतिया में पीतांबरा मंदिर में स्थित घुमेश्वरी मंदिर में पहुंच जाती हैं और शनिवार रात्रि बारह बजे तक दतिया ही रुकती हैं!
  2. पुराने जानकार शनिवार को लोधी माता के दर्शन न करने की सलाह देते हैं! शनिवार को माँ की मूर्ति या प्रतिमा के मुख पर नीरसता रहती है!
  3. Raahuley तेल के पाँच दीपक माँ के परिसर में जलाने से प्रेत, भूत बढ़ा, पितृदोष शांत होता है!

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