नरवर एमपी के राजा नल – भारत का सर्वप्रथम पाकशास्त्री था! जाने पाल कला के रहस्य भाग एक
1. राजा नल को अश्वविद्या और रथ चलाने बेहतरीन अनुभव था!
- राजा नल अश्वविद्या और रथ चलाने में निपुण थे।यह उन्हें युद्ध और शासन दोनों में उत्कृष्ट बनाता था।
लेखक अशोक गुप्ता अमृतम

- महाभारत में उनका नाम वीरता और निपुणता के प्रतीक के रूप में आता है।
2. पाकशास्त्र में महारत थी राजा नल को
- राजा नल की सबसे अनोखी विशेषता उनका खाना बनाने और आतिथ्य सत्कार का कौशल था।

- प्राचीन भारतीय समाज में खाना बनाना और रसोई का काम सामान्यतः दास या शूद्र वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता था।
- पुरुष प्रधान समाज में किसी राजा द्वारा खाना बनाना और परोसना अत्यंत असामान्य और विलक्षण था।
- तुलनात्मक दृष्टि
- भीम: महाभारत में भीम भी अच्छे पाकशास्त्री माने गए हैं, लेकिन भीम केवल अपने लिए खाना बनाते थे और दूसरों के सत्कार से दूर रहते थे।
- राजा नल: दूसरों के लिए खाना बनाना और परोसना सीखकर उन्होंने बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय का आदर्श चरितार्थ किया।
3. साहित्यिक प्रमाण
- महाभारत के विराटपर्व श्लोक 760 में उल्लेख है कि नल की आलौकिक पाकविद्या मानवों के लिए दुष्प्राप्य है।
- राजा नल ने “पाकदर्पणम्” नामक ग्रंथ रचा, जो प्राचीन भारतीय पाकशास्त्र का उदाहरण है।
- व्याख्याकार: पंडित हरिहर प्रसाद त्रिपाठी
- यह ग्रंथ आज भी प्राचीन पाकशास्त्र के अध्ययन में उद्धरण के रूप में प्रयुक्त होता है।
- बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय का आदर्श
- राजा नल ने अपने पाक कौशल के माध्यम से यह सिद्ध किया कि राजा का कर्तव्य केवल युद्ध और शासन तक सीमित नहीं होता, बल्कि अपने प्रजा के सुख और भरण-पोषण में भी योगदान देना आवश्यक है।
- अयोध्या में गुप्त बसे रहते हुए भीक (बाहुक) से राजा ऋतुपर्ण ने कहा:
- “तुम्हारे में मानवों के लिए दुष्प्राप्य यह आलौकिक उपलब्धि हुई
5. निष्कर्ष
राजा नल भारत के सर्वप्रथम ज्ञात पाकशास्त्री राजा हैं। वे वीरता, धार्मिक कर्तव्य और आतिथ्य सत्कार में अद्वितीय थे।
- राजा नल का योगदान केवल युद्ध और राजनीति तक सीमित नहीं था, बल्कि प्राचीन भारतीय पाकशास्त्र और सामाजिक सेवा में भी अमूल्य है। उसे मनुष्यों के हितार्थ आप इन सिद्धियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रदिर्शित करें। इस विद्या के प्रत्यक्षीकरण हेतु हम सभी में प्रबल लालसा है। राजा ऋतुपर्ण के ऐसा कहने पर नल ने पुनः कहा –
अस्मिनर्थे मयाऽकारि ग्रन्थो लोकहिताय च। लोकपाल प्रसादेन पाकदर्पण नामतः ।।29 ।। तस्यावलोकनेनैव दृश्यन्ते विविधाः क्रियाः। सूदस्य लक्षणं तावद् वक्ष्ये संक्षेपतः प्रभो।।22 ।।
- सभी प्राणियों के हितार्थ लोकपालों के अनुग्रह से मैंने अन्नसिद्धि के सम्बन्ध में "पाक-दर्पण" नामक ग्रन्थ की रचना की है। उस ग्रन्थावलोकन से समस्त पाक निर्माण विधियाँ सहज ही ज्ञात हो जाती हैं।
- प्रश्न यह है कि राजा नल को यह अद्भुत विद्या कहाँ से प्राप्त हुई। इसका उत्तर राजा नल अपनी लिखी पुस्तक में स्वयं देते हैं-
स्वयम्वरार्थ वैदर्थ्याः समायाताः सुरेश्वराः । अहमत्यागतस्तत्र दृष्ट्या दृष्टश्च तैः पथि ।।13 ।। दूतरूपं समाभृत्य मामकार्यो यथार्थतः ।। ते नेषधं समालोक्य वरान् ददुरनुत्तमान् । ।15 ||
- अर्थात् - विदर्भ देश के राजा की पुत्री (दमयंती) के स्वयंवर में इन्द्रादि देवगण उपस्थित हुए। मैं उनका दूत बना अतः सभी देवों ने मुझे उत्तम वर दिए।
- नल को अग्नि, यम एवं वरुण देवता ने दो-दो वर दिए। इसमें यमराज ने नल को वर दिया कि तुम्हारी बनाई रसोई बहुत मीठी होगी तथा तुम अपने धर्म में दृढ़ रहोगे।
- महाभारत में नल के उत्तम पाकशास्त्री का विवरण राजा ऋतुपर्ण के यहाँ मिलता है जब नल छद्म वेश में (बाहुक के रूप में) अयोध्या गए थे तब उन्होंने स्वयं को अश्वविद्या का जानकार तथा रसोई बनाने में अत्यंत निपुण होने का परिचय दिया था।
- तीसरा विवरण तब मिलता है जब दमयंती के पिता भीम द्वारा नल की खोज में भेजे गए ब्राह्मणों में पर्णाद नामक ब्राह्मण वापिस आकर बतलाता है कि अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के यहाँ एक सारथी अश्वविद्या एवं स्वादिष्ट भोजन बनाने में माहिर है।' इन्हीं गुणों के कारण दमयंती पहचान लेती है कि वह सारथी राजा नल है।
- राजा नल के पाक्शास्त्री होने तथा उसके द्वारा ईजाद व्यंजनों का विवरण स्वयं राजा नल द्वारा लिखित पाकदर्पणम् नामक पुस्तक में दिया है। यह पुस्तक संस्कृत भाषा में है। यह पुस्तक सदियों तक अंधकार के गर्त में रही। सन् 1905 में वाराणसी के महापण्डित श्री विंध्येश्वरी प्रसाद द्विवेदी ने इसकी मूल पाण्डुलिपि की खोज की।
- सन् 1912 में पण्डित वामाचरण शर्मा ने इसका सम्पादन एवं व्याख्या सहित हिन्दी भाषानुवाद प्रकाशित कराया।
- महाराष्ट्र की प्रसिद्ध विद्वान अन्वेषक दुर्गाबाई सामंत ने इस पुस्तक का मराठी अनुवाद करने का उपक्रम किया। कालान्तर में उनके संकलन की सामग्री का उपयोग कर प्रतिभा रानाडे ने इसका मराठी अनुवाद एवं व्याख्या प्रकाशित की। हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक की उत्कृष्ट व्याख्या सहित पुनर्प्रकाशन पं. हरिहर प्रसाद त्रिपाठी द्वारा किया गया। इस पुस्तक में सर्वप्रथम रसोइये के गुण ही बताए हैं-
(a) महाभारत - वनपर्व (कल्याण अंक) – गीताप्रेस – पृ. 220
( b) स्वदेशं हि परित्यज्य बाहुकाख्योऽहमागतः ।
अश्वानां बाहने राजन पृथिव्यां नास्ति मत्समः!!2!!
अर्थ ज्ञानस्य चैवाहं द्रष्टव्यो नैपुणेन च।
अन्न संस्कापि च जानामि पिशितस्य च!!3!!
महाराज नल प्रणीत "पाकदर्पणम्" व्याख्याकार पं. हरिहर प्रसाद त्रिपाठी, पृ. 4
4. वही, पृ. 3
महाभारत - वनपर्व (कल्याण अंक) - गीताप्रेस – पृ. 211
महाराजा नल प्रणीत - पाकदर्पण - संपा- पं. हरिहर प्रसाद द्विवेदी, पृ. 1
7. वही पृ. 220
8. महाराज नल कृत पाक्दर्पण - इन्द्रदेव त्रिपाठी - चौखम्भा संस्कृत संस्थान, वाराणसी
9. नल पाक दर्पण - सम्पादक प्रतिभा रानडे परममित्र पब्लिकेशन्स
10. महाराज नल प्रणीत पाकदर्पण- सम्पा. पं. हरिहर प्रसाद त्रिपाठी - चौखम्भा कृष्णदास अकादमी, वाराणसी
राजा नल - भारत का सर्वप्रथम पाकशास्त्री / 141
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