तन -मन- जीवन हर दिन परिवर्तन ही नारी की मजबूरी है! महिलायें अपने शरीर के हर बदलाव पर ध्यान दें!
- श्रीकृष्ण का यह उपदेश कि “परिवर्तन संसार का नियम है” वास्तव में जीवन का सबसे गहरा सत्य है।
- यदि इसे महिलाओं पर देखें तो यह सूत्र और भी स्पष्ट हो जाता है—

- बचपन से युवावस्था तक – नन्ही बच्ची एक समय माँ–पिता की लाड़ली होती है, खेल में मग्न रहती है।
- युवावस्था से विवाह तक – वही लड़की एक दिन अपने घर-परिवार को छोड़कर नए घर में प्रवेश करती है।
- माँ बनने तक – वह अपने को पूरी तरह बच्चों और परिवार के लिए समर्पित कर देती है।
- समाज में भूमिका – हर परिस्थिति में वह अपने स्वभाव, व्यवहार और रूप में बदलाव लाती है—कभी बेटी, कभी बहन, कभी पत्नी, कभी माँ, कभी दादी-नानी।

- महिलाएँ ही परिवर्तन की सबसे सुंदर और सहज प्रतिमूर्ति हैं।
स्त्री अपने जीवन के हर पड़ाव को स्वीकार कर, नए रंग में ढलकर संसार को आगे बढ़ाती हैं।
- यही कारण है कि श्रीकृष्ण का यह सूत्र – “परिवर्तन ही संसार का नियम है” – नारी के जीवन से सबसे अधिक सजीव होकर प्रकट होता है।
- श्रीकृष्ण का उपदेश – “परिवर्तन ही संसार का नियम है! यह सूत्र सबसे अधिक नारी जीवन पर खरा उतरता है।
बचपन में वह पिता की लाड़ली बेटी,
युवावस्था में घर-आँगन की रौनक बहन,
- विवाह के बाद पति का संबल और परिवार की धुरी, और फिर ममता से भरी माँ बन जाती है।हर परिस्थिति में वह सहज ही स्वयं को बदल लेती है।
कभी कोमल तो कभी कठोर,
कभी निस्वार्थ सेवा तो कभी दृढ़ संकल्प—
नारी का हर रूप परिवर्तन का अद्भुत उदाहरण है।
सच ही तो है,
नारी ही है, जो परिवर्तन को जीवन का सौंदर्य बना देती है।
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