• महालक्ष्मी (शिव शक्ति) स्थिर हैं। • विष्णु पत्नी लक्ष्मी चंचल हैं और कहीं भी स्थायी रूप से नहीं ठहरतीं। • दशहरा असल में दश-दिशाओं का मार्ग (दसराह) है, न कि केवल रावण दहन।

  1. 🔱 दशहरा का असली रहस्य : रावण, देवी महानंदा का वरदान और लक्ष्मी का स्थिर-चंचल स्वरूप

  2. दशहरा रहस्य | रावण, देवी महानंदा और स्थिर-चंचल लक्ष्मी का अद्भुत रहस्य
  3. दशहरा केवल रावण दहन नहीं है, बल्कि दसों दिशाओं के द्वार खुलने का पर्व है।

जानिए रावण की बुआ देवी महानंदा का शिव से प्राप्त वरदान, महालक्ष्मी का स्थिर स्वरूप और विष्णुपत्नी लक्ष्मी की चंचलता का रहस्य।

  1. आज हम दशहरा को केवल रावण दहन से जोड़कर देखते हैं, जबकि इसका वास्तविक अर्थ कहीं गहरा है।

क्या है दशहरा और दसराह में फर्क?

  1. दशहरा = दसराह = दस राहें, यानी दसों दिशाओं के मार्ग खुलना। इसी दिन आकाशीय ऊर्जाएँ धरती पर आती हैं और मनुष्य के जीवन में नए अवसर, आवागमन और समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
  2. दशहरा या दसराह पर्व को समझने के लिए हमें रावण के कुल और देवी महानंदा की कथा तथा लक्ष्मी के स्थिर-चंचल स्वरूप को भी जानना होगा।

🔮 रावण का कुल और देवी महानंदा का वरदान

रावण के बाबा सप्तऋषियों में से एक महर्षि पुलत्स्य थे। उनकी बहन, अविवाहित ब्रह्मचारिणी देवी महानंदा ने कठोर तप करके शिव को प्रसन्न किया।

  1. उन्होंने शिवजी से वरदान माँगा –
  2. “जो भी हमारे कुल, गोत्र और वंश की बुराई करेगा, उसके घर महालक्ष्मी (शिवशक्ति) स्थायी रूप से निवास न करें।”

इसका संकेत है कि निंदक और अपमान करने वालों के घर स्थायी सुख-समृद्धि नहीं ठहर सकती।

💰 स्थिर महालक्ष्मी और चंचल विष्णुपत्नी लक्ष्मी

  1. भारतीय शास्त्रों में दो प्रकार की लक्ष्मी का वर्णन मिलता है –

  1. महालक्ष्मी (शिवशक्ति) –
  2. यह स्थिर हैं।
  3. जहाँ इनका वास होता है वहाँ स्थायी ऐश्वर्य, सुख और समृद्धि बनी रहती है।
  4. इन्हें पाने के लिए आदर, सत्य और सकारात्मकता आवश्यक है।
  5. विष्णुपत्नी लक्ष्मी –
  6. यह चंचल कही गई हैं।
  7. वे किसी भी घर में अधिक समय तक टिकती नहीं।
  8. इसलिए केवल इन्हीं पर आश्रित लोग क्षणिक धन तो पा सकते हैं, पर स्थायी सुख नहीं।

⚡ दशहरा, रावण और समृद्धि का रहस्य

  1. दशहरा का संबंध केवल रावण दहन से नहीं, बल्कि दसों दिशाओं के खुलने से है।
  2. इस दिन देवी लक्ष्मी और महालक्ष्मी की ऊर्जा पूरे ब्रह्मांड में फैलती है।
  3. यदि हम इस दिन निंदा, अपमान और नकारात्मक कार्य करें तो देवी महानंदा के वरदान के अनुसार स्थायी लक्ष्मी (महालक्ष्मी) हमारे घर से चली जाती हैं।
  4. इसलिए दशहरा हमें सिखाता है –
  5. “दूसरों की बुराई छोड़ो, सकारात्मक मार्ग अपनाओ और दसों दिशाओं से आने वाली समृद्धि का स्वागत करो।

हमें क्या सीख मिलती है?

  1. बुराई और निंदा से बचें – यह लक्ष्मी को अस्थिर कर देती है।
  2. दशहरा पर शुभ कार्य करें – यह दसों दिशाओं से नए अवसर लाता है।
  3. स्थिर महालक्ष्मी को आमंत्रित करें – सत्य, सेवा और सद्गुणों से।
  4. चंचल विष्णुपत्नी लक्ष्मी पर निर्भर न रहें – क्योंकि वे अस्थायी सुख देती हैं।

अगर सुख सम्पन्नता चाहते हो तो?

  1. दशहरा का असली रहस्य यह है कि यह पर्व केवल रावण दहन नहीं बल्कि दसराह – दस राहों का उद्घाटन है।
  2. रावण की बुआ देवी महानंदा के वरदान से यह भी स्पष्ट होता है कि

👉 नकारात्मक और निंदक लोगों के घर महालक्ष्मी स्थायी रूप से नहीं टिकतीं।

  1. इसलिए दशहरा हमें प्रेरणा देता है कि हम दसों दिशाओं से आने वाले शुभ मार्गों का स्वागत करें और स्थिर महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करें।

Q1. दशहरा को दसराह क्यों कहा जाता है?

  1. 👉 क्योंकि इस दिन दसों दिशाओं के मार्ग खुलते हैं और आकाशीय ऊर्जा का आवागमन आरंभ होता है।

Q2. स्थिर और चंचल लक्ष्मी में क्या अंतर है?

  1. 👉 स्थिर लक्ष्मी (महालक्ष्मी) शिवशक्ति हैं और स्थायी समृद्धि देती हैं, जबकि विष्णुपत्नी लक्ष्मी चंचल हैं और कहीं टिकती नहीं।

Q3. देवी महानंदा ने क्या वरदान माँगा था?

  1. 👉 कि जो भी उनके कुल और वंश की निंदा करेगा, उसके घर महालक्ष्मी स्थायी रूप से निवास न करें।


Q4. दशहरा से हमें क्या सीख मिलती है?

  1. 👉 निंदा और नकारात्मकता छोड़कर सकारात्मकता अपनाएँ ताकि स्थायी लक्ष्मी घर में वास करें।

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