आत्मा और परमात्मा क्या है?

आत्मा सो परमात्मा

  1. वैदिक ग्रंथो के मुताबिक हमारे शरीर में ईश्वर का वास है, क्योंकि इस काया को पंचतत्व से निर्मित माना है।

यह बहुत ही गूढ़ और गहन आध्यात्मिक विचार है – “आत्मा सो परमात्मा” – वही वास्तव में वेद, उपनिषद और गीता का सार है।

  1. आत्मा सो परमात्मा का मतलब यही है कि हमारी आत्मा, परमात्मा स्वरूप या अंश है। कुकर्मों या पाप के कारण
  2. आत्मा में मलिनता आने लगती है, जिससे पंचतत्व क्षीण होकर मनोबल गिरने लगता है। प्राणी अवसादग्रस्त होकर अनेक विकारों से घिर जाता है। सुख-दुःख दोनों का भोक्ता स्थान शरीर है। 

एक अंगूंठा, पाँच अंगुलियां,

सब झूठ सत्य नाम है शंकर

आत्मा सो परमात्मा – वेदांत का रहस्य और जीवन का सत्य



वेदों में आत्मा और परमात्मा का संबंध


  1. वैदिक ग्रंथों में स्पष्ट कहा गया है कि हमारे शरीर में ईश्वर का वास है।
  2. यह शरीर पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना है।

इसीलिए कहा गया है कि –

👉 आत्मा परमात्मा का अंश है।

👉 जब आत्मा शुद्ध होती है, तो वही दिव्य शक्ति से जुड़ जाती है।


आत्मा में मलिनता क्यों आती है?

मानव जीवन में जब हम –

  1. कुकर्म
  2. पाप
  3. अज्ञान और मोह
  4. करते हैं, तब आत्मा मलिन हो जाती है।
  5. इसके परिणामस्वरूप –
  6. ⚡ पंचतत्व क्षीण होने लगते हैं
  7. ⚡ मनोबल गिर जाता है
  8. ⚡ प्राणी अवसाद (Depression) और अनेक विकारों से घिर जाता है



सुख-दुःख का भोक्ता कौन है?

वेदांत कहता है कि –

सुख और दुःख दोनों का अनुभव शरीर ही करता है।

आत्मा तो शुद्ध और अजर-अमर है।

लेकिन जब आत्मा शरीर और मन के साथ बंध जाती है, तो वह हर प्रकार के भावनात्मक उतार-चढ़ाव का अनुभव करती है।


आत्मा सो परमात्मा का संदेश

👉 आत्मा जब शुद्ध रहती है, तो परमात्मा स्वरूप प्रकट होता है।

👉 साधना, ध्यान और सत्कर्म आत्मा को पवित्र बनाते हैं।

👉 जीवन का उद्देश्य है – आत्मा को परमात्मा से मिलाना।


वेदांत का सरल उपदेश

“एक अंगूठा, पाँच अंगुलियां, सब झूठ

सत्य नाम है शंकर”

इस पंक्ति का गूढ़ अर्थ है कि –

संसार के सभी दृश्य, भौतिक वस्तुएँ और शरीर नश्वर हैं।

सत्य केवल शिव है, जो परमात्मा स्वरूप है।


निष्कर्ष

“आत्मा सो परमात्मा” का तात्पर्य है कि हमारी आत्मा परमात्मा का अंश है।

  1. जब हम पाप, कुकर्म और अज्ञान से मुक्त होकर सत्य, ज्ञान और भक्ति का मार्ग अपनाते हैं, तभी आत्मा शुद्ध होती है और परमात्मा से एकरूप हो जाती है।

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