अमृतम कालसर्प विशेषांक राहु-केतु के कष्टों से मुक्ति दिलायेगा
- पिछले जन्मों में किए गलत कार्य और कुकर्मों की सजा देना राहु का मुख्य कार्य है।

शिव को समर्पण
नाग/सर्पों के भूषणधारी
कोई न शिव सा परोपकारी
- गन्धर्वराज श्री पुष्पदन्त जी द्वारा रचित शिव महिम्न स्तोत्र के अन्त में सदाशिव नागेन्द्र नाथ की स्तुति इस प्रकार की गई है-
असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे सुरतरुवरु शाखा लेखनी पत्रमुर्वी।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ॥
- अर्थ- हे शिव! यदि आपके अलौकिक गुणों का वर्णन स्वयं शारदा (सरस्वती)- समुद्र को दवात, काले पर्वत की स्याही, सुरतरु (कल्पवृक्ष) की टहनी की लेखनी एवं पृथ्वी को कागज बनाकर सदा लिखती रहें, फिर भी वे कभी भी आपके गुणों का अन्त नहीं पा सकतीं।
- ऐसे हिरण्यगर्भ आदि योगी भोलेनाथ के बारे में बस यही कह सकते हैं कि-
लाखों सूरज की शिव ज्योती,
शब्दों में शिव उपमा न होती।
- और उनके कंठ के हार नाग/सर्प एवं राहु के विषय में भी कितना ही लिखें, वह अपूर्ण ही रहेगा। अतः उनकी लीला न समझकर समर्पण भाव से "श्री बलवीर निर्दोष" के शब्दों में
शिव चरणों से लिपटे रहिये।
मुख से शिव-शिव जय शिव कहिये ॥
सहसम्पादक
पं. श्याम मोहन मिश्र
लेखन व संकलन
अशोक गुप्ता (मरकरी एम. एजेन्सीज)
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