क्यों जरूरी पितरों की पूजा सेवा और पानी देना जाने विज्ञान

आज पितृ पक्ष का दूसरा दिन है

ये पूर्णिमा से अमावस्या तक १६ दिन रहता है

अमृतम कालसर्प विशेषांक से साभार ये पितृ ब्लॉग

काफ़ी कष्ट, दुख- दर्द, दोष, रोग से राहत देगा!

कृपया पढ़ें और आज़माएँ

पितृ पक्ष का प्राचीन विज्ञान

सभी संप्रदाय के शास्त्र, धर्म ग्रंथ मानते हैं कि

पितरों के आशीर्वाद के बिना संपत्ति और सन्तति

की वृद्धि नहीं होती!

पितृ-मात्र ऋण चुकाने और पितरों की शांति के लिए

नंदी श्राध्य, नर-नारायण

बलि आदि अनेक आध्यात्मिक उपक्रम हैं !

कालसर्प दोष भी पितरों की आत्मा भटकने के

कारण ही निर्मित होता है! ये पितृ आत्माएं राहु केतु

की शरण में होने बुरी तरह पीड़ित होती है और केतु

इन्हें भूत-प्रेत योनि से मुक्त नहीं होने देते!

इसीलिए प्रत्येक माह की चतुर्दशी यानी

मास चतुर्दशी को रुद्राभिषेक करने का विधान है,

ताकि हमारे पितृ पूर्वज तृप्त प्रसन्न तथा मुक्त

होकर आगे की यात्रा पूर्ण कर सकें।

पितरों को प्रसन्न करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है

कि पंचमहाभूत प्रतीक

रोज राहुकाल में

amrutam RAAHUKEY OIL

के ५ दीपक घर में ही जलायें!

पितरों की तस्वीर और मूर्तियां पर

अमृतम चंदन का त्रिपुंड लगायें!

मात्र श्राध्य पक्ष में सोलह दिन का ये उपाय

आपका भविष्य बदल सकता है!

क्योंकि मेरे सम्पूर्ण जीवन में सफलता का

कारण केवल रोज़ राहुकाल में दीपदान रहा है!

राहु ने ही मुझे जीरो से हीरो बनाया और

और

केतु ने शून्य से शिखर पर पहुँचाने का मन बना लिया है!

पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) केवल धार्मिक या परंपरागत दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है!

🌿 पितृ पक्ष का वैज्ञानिक कारण

. ऋतु परिवर्तन और पाचन शक्ति

• पितृ पक्ष भाद्रपद और आश्विन माह

यानी कुँवार (सितंबर–अक्टूबर) में आता है।

• इस समय वर्षा ऋतु समाप्त होती है

और शरद ऋतु का आगमन होता है।

• जठराग्नि शीतल होने से शरीर

की पाचन शक्ति कमजोर होती है,

इसलिए हल्के व सात्त्विक भोजन (खिचड़ी,

दाल, फल आदि) की परंपरा रखी गई है।

2. कृतज्ञता और मनोविज्ञान

• विज्ञान मानता है कि स्मृतियाँ और

भावनाएँ हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।

• पितृ पक्ष का उद्देश्य है कि हम अपने

पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें और

मानसिक रूप से शांति प्राप्त करें।

3. सामाजिक और पारिवारिक एकता

• श्राद्ध में परिवार के सभी सदस्य साथ

बैठकर भोजन करते हैं, जिससे पारिवारिक

बंधन मजबूत होते हैं।

• वैज्ञानिक रूप से, सामाजिक

जुड़ाव तनाव कम करता है और जीवन को दीर्घायु बनाता है।

4. दान और पर्यावरणीय दृष्टि

• इस समय दान और अन्न वितरण की परंपरा है।

• इससे न केवल पोषण की कमी वाले लोगों को लाभ मिलता है, बल्कि सामूहिक रूप से अन्न का पुनर्वितरण भी होता है।

• धार्मिक दृष्टि से किया गया “अन्न दान

वास्तव में पोषण सुरक्षा का वैज्ञानिक साधन है।

5. खगोल और ऊर्जा संतुलन

• इस अवधि में सूर्य दक्षिणायन में

होता है (पितरों का मार्ग – पितृयान)।

• प्राचीन ज्योतिष कहता है कि

इस समय पितरों की स्मृति और ऊर्जा तरंगें

पृथ्वी तक आसानी से पहुँचती हैं।

• आधुनिक विज्ञान इसे सूर्य की

स्थिति और मौसमी बदलाव से जोड़कर समझ सकता है।

पितृ पक्ष का वैज्ञानिक उद्देश्य है:

• शरीर को मौसम के अनुसार ढालना।

• कृतज्ञता और मानसिक शांति पाना।

• परिवार और समाज में एकता लाना।

• अन्न वितरण और पर्यावरण संतुलन करना।

• सूर्य/खगोल स्थिति से सामंजस्य बैठाना।

भविष्य पुराण के अनुसार

इस संत ड्यूटी कन्या राशि में होने से संक्रमित हो जाते हैं!

सूर्य को आत्मा का कारक बताया है इसीलिए भी आत्मा

की शुद्धि के लिए पितरों को पानी अर्पित करने की परंपरा है

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