परम शिव भक्त राजा नल ने ही राजिम के राजीव लोचन मंदिर का निर्माण कराया था

राजा नल का वंश ( नलवंश)


  1. यद्यपि महाभारत में नल-दमयंती के इन्द्रसेन नामक पुत्र तथा इन्द्रसेना नामक पुत्री होने का उल्लेख है । किन्तु इन्द्रसेन के वंशज या आगे की पीढ़ी का कोई विवरण किसी भी साहित्य में प्राप्त नहीं होता है, किन्तु 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई खोजों में राजा नल के वंश के ऐतिहासिक प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
  2. ईस्वी सन् चौथी सदी से आठवीं सदी तक निषध के राजा नल के वंश "नलवंश" एवं इनके शिलालेख तथा मन्दिर निर्माण के बारे में ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं।
  1. छत्तीसगढ़ को राजधानी रायपुर जिले में राजिम नामक स्थान पर एक प्रागैतिहासिक कालीन धार्मिक स्थल ‘राजिम' है । यह सौढू, पैरी तथा महानदी तीन नदियों के संगम पर स्थित है।
  2. इस संगम स्थल पर कई मन्दिर बने हैं किन्तु इनमें सबसे प्राचीन एवं सबसे विशाल मन्दिर भगवान 'राजीव लोचन' का है।
  3. ज्ञातव्य हो कि 'राजीव लोचन' भगवान विष्णु का ही रूप है तथा इस मन्दिर में उनकी ही आदमकद मनोहारी मूर्ति स्थापित है।
  1. राजिम के इस मन्दिर की दीवाल पर एक अत्यन्त विशाल शिलालेख (लगभग 8 फीट ऊँचा एवं 6 फीट चौड़ा) उत्कीर्ण है। इस शिलालेख के अनुसार भगवान राजीवलोचन के इस विशाल मन्दिर को राजा नल के वंशज 'विलासतुंग' ने 8वीं शताब्दी में बनवाया था!
  1. इस शिलालेख की 6 एवं 7वीं पंक्ति में महाभारत कालीन प्रतापी राजा नल की प्रशंसा की है। इसके अनुसार सौद्धिलामिनी जरूपजित।
  2. प्ररोपि शान्तामनाधुवि सदा स्पृहणीयवृतः! ख्यातो नृपो नल इति प्रणातारिचक्र चूड़ामणि भ्रमरण चुम्बित पाद पद्यः ।।7।।


1. राजिम दर्शन - लेखक - लक्ष्मीचन्द देवांगन, प्रकाशक - राजीव लोचन मन्दिर समिति, वर्ष 2012, पृ. 15 एवं 44!

  1. अर्थात् "राजा नल जिन्होंने अपने उत्कृष्ट व्यवहार के कारण प्यार के देवता (कामदेव) को भी पीछे छोड़ दिया था! नल के कमल रूपी पदचरणों में धुमक्खी के झुण्ड जैसे ( अनेक) बन्दी राजाओं के मुकुटमणि पैर चूमते हैं!
  2. "प्यार में कामदेव को पीछा छोड़ने के वर्णन के कारण यह स्पष्ट है कि यह दमयंती वाले राजा नल हैं।
  1. विलासतुंग ने भगवान राजीव लोचन का यह मन्दिर अपने पुत्र की मृत्यु उपरान्त उसकी याद को अक्षुण्ण रखने हेतु बनवाया था। आज भी यह मन्दिर छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक स्थल में माना जाता है तथा इसकी पूजा करने लाखों लोग आते हैं।

नल वंश के चार अभिलेख महाराष्ट्र', बस्तर की सीमा, उड़ीसा स्थितसारिबेढ़ा तथा राजिम में मिले हैं। इन शिलालेखों में उस वंश का उद्गम राजा नल से होना वर्णित है। इस वंश का राज्य विस्तार बस्तर, दक्षिण कौशल, नागपुर एवं विदर्भा तक विस्तृत था । इस वंश की दो राजधानी बस्तर एवं पुष्करी (भोपालपट्टनम् ) थी।

  1. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नलवंशी शासक दक्षिण के वाकाटक राजाओं के समकालीन थे। वर्तमान उड़ीसा राज्य को प्राचीन काल कलिंग / उत्कल / दक्षिण कौशल / मत्स्य इत्यादि नाम से जाना जाता था।
  2. "माठर" वंश के बाद कलिंग में नल वंश का शासन प्रारम्भ हो गया था । कालान्तर में वाकटकों द्वारा विदर्भ छीन लेने के कारण बस्तर एवं दक्षिण कौशल पर 'नलवंश' राज्य करता रहा। नलवंश के पतन के बाद कलिंग पर विग्रहवंश, मुदगल वंश, शैलोम्दब वंश और भोमकर वंश ने राज्य किया ।
  1. नलवंश के शासक विष्णु पूजक थे। राजिम के 'राजीव लोचन मन्दिर के अतिरिक्त इस वंश के राजा स्कन्दवर्मन ने उड़ीसा में पौड़ा गौड़ा

2. Eppigraphyia India भाग- 26 पृष्ठ 51-52 (पृष्ठ 51 से 58 तक में सम्पूर्ण शिलालेख प्रकाशित है)

3. प्रायः सभी इतिहासकार इसे निषध के राजा नल के वंशज द्वारा बनवाने की पुष्टि करते हैं।

4. म.प्र. पुरातत्व सन्दर्भ ग्रन्थ - 5. म.प्र. पुरातत्व सन्दर्भ ग्रन्थ 6. म. प्र. पुरातत्व सन्दर्भ ग्रन्थ • रामकुमार शर्मा, पृ. 46, इ.इ. भाग 19 पृष्ठ 102 पृष्ठ 46 इपिग्राफिया इण्डिका भाग 21, पृष्ठ 153-158 पृष्ठ 46, इपिग्राफिया इण्डिका भाग 28, पृष्ठ 12

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