नर या नारी की हर बीमारी दूर करने का उपाय

शरीर को दे अपार ऊर्जा-

अमृतम गोल्ड माल्ट

यह एक शक्तिदाता हर्बल ओषधि है! इसे नियमित 2 से 3 तक लिया जावे, तो तन-मन प्रसन्न रहता है ।

1. जीवनीय शक्ति से लबालब हो जाता है ।

2. ऊर्जा-उमंग, उत्साह की वृद्धि होती है।

3. बार-बार होने वाले रोगों को

आने से रोकता है ।

4. सभी विकार-हाहाकार कर तन

 से निकल जाते हैं

5. कभी भी कोई रोग नहीं सताता।

6. शरीर की टूटन, जकड़न-अकड़न

 मिटाता है ।

7. त्रिदोष नाशक होने से वात-पित्त-कफ

को समकर शरीर रोगरहित करता है ।

8. बीमारी के पश्चात की कमजोरी दूर

 करने में सहायक है ।

9. अमृतम गोल्ड माल्ट का सेवन मौसमी (सीजन) बदलते समय होने वाले रोगों से रक्षा करता है ।

10. मेदरोग, मोटापा को नियंत्रित करने में सहायक है ।

11. दिमाग में अंदर से आवाज सुनाई देना,

12. चिड़चिड़ापन, बात-बात पर क्रोध आना एवम गुस्सा होना।

13. हमेशा कब्ज रहना, पूरी तरह एक बार

में पेट साफ न होना आदि उदर रोग ठीक कर पखाना समय पर लाता है । इसके सेवन से तन-मन प्रसन्न तथा शक्ति, स्फूर्ति आती है,  काम में मन लगने लगता है ।

14. थकावट, आलस्य, बहुत ज्यादा नींद आना, हांफना जैसे सामान्य रोग मिटाता है ।

15. सेक्स की इच्छा बढ़ाता है ।

16. महिलाओं का मासिक धर्म समय पर लाकर, श्वेत प्रदर, सफेद पानी एवम व्हाइट डिस्चार्ज आदि विकारों को दूरकर सुंदरता दायक है ।

17. दुबले-पतले शरीर वालों को ताकतवर है ।

18. भूख व खून बढ़ाता है ।

19. बच्चों की लंबाई बढ़ाता है बल-बुद्धि वृद्धि दायक है ।

20. लंबे समय से बीमार या बार-बार रोगों से पीड़ित रोगियों में जीवनीय शक्ति वृद्धिकारक है ।

21. किसी अज्ञात रोगों के कारण बालों का झड़ना, रूसी (डेंड्रफ), खुजली, रूखापन मिटाने में सहायक है ।

22. आँतो की खराबी, रूखापन, चिकनाहट दूर करे ।

23. यकृत (लिवर) एवम गुर्दों की रक्षा करता है ।

24. कमजोर शरीर व हड्डियों को ताकत देकर मजबूत बनाता है ।

25. पेट की कड़क नाडियों को मुलायम बनाकर उदर के सभी रोगों का नाश करता है ।

अमृतम गोल्ड माल्ट असरकारक ओषधि के साथ-साथ एक ऐसा अदभुत हर्बल सप्लीमेंट है, जो रोगों के रास्ते रोककर सभी नाड़ी-तंतुओं को क्रियाशील कर देता है ।

जैसा वेदों ने सुझाया,अमृतम ने बनाया–

  1. भारतीय वेद का एक भाग आयुर्वेद को समर्पित है, इसमें आयु के रहस्मयी भेद होने के कारण इसे आयुर्वेद कहते हैं ।

अमृतम आयुर्वेद का मन्त्र है कि-

ॐ असतो मा सदगमय
 
तमसो मा ज्योतिर्गमय
 
मृत्योर्मा ‘अमृतम’ गमय 
ॐ शाँति:शान्ति:शान्ति ।।

अर्थात – हे ईश्वर, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर , और मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो । हम सदा स्वस्थ्य, प्रसन्न व रोगरहित रहते, जीते हुए 120 वर्ष की पूर्णायु व्यतीत कर सकें ।

सब संभव है-

रुद्री में यह मन्त्र बार-बार आता है-

    ।।”शिवः संकल्पमस्तु”।।

  1. हम संकल्प करले कि, स्वस्थ रहने के लिये केवल प्राकृतिक चिकित्सा ही लेना है ।
  2. अमृतम आयुर्वेद ओषधियों का ही सेवन करना है! दृढ़ संकल्प के सहारे हम सदा स्वस्थ व मस्त रह सकते हैं ।

पृथ्वी ने हमें बहुत कुछ दिया है! सम्पूर्ण जीव-जगत को स्वस्थ-तंदरुस्त बनाये रखने एवम प्रसन्नता हेतु प्रकृति ने अमृतम ओषधियाँ जड़ी-बूटियाँ, मेवा-मसाले, अनाज, अन्न, पके फल आदि प्रभावकारी फूल-पत्ती प्रदत्त की!

 धरती माँ का यह परोपकार

  1. अमृतम जड़ी-बूटियों के बिना हम रोगों से पीछा नहीं छुड़ा सकते! लाइलाज, असाध्य व्याधियों को केवल आयुर्वेद दवाओं से ही ठीक किया जा सकता है! यदि कम उम्र या बचपन से ही इसका उपयोग करें, तो पचपन में भी जवान बने रहोगे एवम ताउम्र कभी रोग होंगे नहीं।

क्या करें

वर्तमान समय में प्रकृति द्वारा प्रदान

की गई जड़ी-बूटियों आदि की जानकारी

 बहुत ही कम लोगों को है ।

 बाजार में महंगी मिलती हैं ।

विश्वास भी नहीं हो पाता,

 फिर साफ करने, कूटने, उबालने

 तथा काढ़ा आदि चूर्ण बनाने

का झंझट अलग । इन सबके लिए समय चाहिये ।

 फिर परिणाम मिले या नहीं ।क्या भरोसा ।

इसलिये ही इन सब

 परेशानियों से बचाने हेतु

करीब 40 से 45 मुरब्बे, मसाले,

जड़ी-बूटियों के योग (मिश्रण)

 से एक ऐसा असरकारक योग

 निर्मित किया, जो 100 से अधिक साध्य-असाध्य, अज्ञात रोगों को

जड़ से दूर करने में सहायक है ।

शरीर का पोषण करने में यह चमत्कारी है । सभी विटामिन्सकेल्शियम सहित आवश्यक पोषक तत्वों की

 पूर्ति कर शरीर को पूरी तरह हष्ट-पुष्ट

बनाता है ।

एक योग-अनेक रोग नाशक –

अमृतम गोल्ड माल्ट

 का उपयोग कई

तरीके से किया जा सकता है।

 उपभोग कैसे करें

1- सुबह नाश्ते (ब्रेक फ़ास्ट) के समय

 ब्राउन ब्रेड के साथ चाय से

2- दिन में पराठा, रोटी में लगाकर पानी या दूध के साथ रोल बनाकर जीवन भर लिया जा सकता है ।

3- जिनको हमेेशा सर्दी,

खाँसी, जुकाम रहता हो, प्रदूषण या प्रदूषित

खानपान के कारण बार-बार होने वाली

एलर्जी, निमोनिया, नाक से लगातार पानी

बहना, गले की खराश, सर्दी या अन्य

कारण से कण्ठ, गले या छाती में दर्द

रहता हो, तो 2 चम्मच

 ‘अमृतम गोल्ड माल्ट’ 

एक कप गर्म पानी में अच्छी तरह मिलाकर ‘ग्रीन टी’

की तरह एक माह तक सुबह खाली पेट तथा दिन में 2 से 3 बार लेवें ।

 उपरोक्त सभी जानी-अनजानी बीमारियों

 को धीरे-धीरे दूर करने के लिए 2 माह तक

 अमृतम गोल्ड माल्ट लेवें।

 और भी अन्य बीमारियों में इसका सेवन कैसे

करना है । इसकी संक्षिप्त जानकारी नीचे दी

जा रही है ।

 सेवन विधि –

बच्चों को सदैव निरोगी बनाये रखने के लिए

 3 से 7 साल के बच्चों या बच्चियों

को आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम

 दूध में मिलाकर या ब्रेड-रोटी में

 लगाकर गुनगुने दूध से देवें ।

 7 साल से 15 साल तक के बच्चों 

को 1-1 चम्मच सुबह-शाम गुनगुने दूध से ।

 15 वर्ष से 25 वर्ष तक वालों को

2-2 चम्मच 2 बार गुनगुने दूध से ।

युवाओं के लिये

 25 वर्ष से अधिक आयु वाले स्त्री

या पुरुष दोनों 2-2 चम्मच सुबह- शाम

एवम रात में सोते समय गर्म दूध से

दिन में 3 बार तक ले सकते हैं ।

 सेक्स की संतुष्टि

के लिए 3 माह तक 2-2 चम्मच

 3 बार सुबह खाली पेट, दुपहर में एवम रात में सोते समय गर्म दूध से ।

साथ में बी. फेराल कैप्सूल लेवें ।


मोटापा मिटाये–  एक कप लगभग 200 मिलीलीटर गर्म पानी में दो चम्मच

अमृतम गोल्ड माल्ट

मिलाकर लगातार 5 सेे 6 माह तक लेवें ।

यह भूख बढ़ाने वाली क्षतिग्रस्त ग्रंथियों की मरम्मत कर ऊर्जा में वृद्धि करता है । अनावश्यक भूख या चर्बी बढ़ने

से रोकता है । इसके सेवन से कमजोरी,

चक्कर आना, बेडोल शरीर ठीक हो जाता है ।

हेल्थ बनाने में सहायक-

जिनका शरीर बहुत ही दुबला-पतला, कमजोर हो, हेल्थ नहीं बनती उन्हें

अमृतम गोल्ड माल्ट 

परांठे में लगाकर खाये । साथ ही साथ

गर्म दूध पीना चाहिये । 3 या 4 माह के नियमित सेवन से 7 से 8 किलो वजन

बढ़ जाता है ।

एनर्जी व फुर्ती के लिये –

अमृतम गोल्ड माल्ट 2 या 3 चम्मच 200 से 300 ML दूध में मिलाकर ठंडाई

बनाकर 3-4 बार पियें, तो शरीर शक्ति-स्फूर्तिदायक हो जाता है ।

जिनका काम में मन नहीं लगता ।

 

उनके लिये भी बहुत लाभकारी उपाय है ।

हर प्रकार की एनर्जी-फुर्ती के लिए यह अचूक

फार्मूला है । मात्र 7 दिन के सेवन से तुरन्त राहत महसूस होने लगती है ।

परहेज एवम सावधानी-

आयुर्वेद की भाषा में परहेज को

 “पथ्य-अपथ्य” कहा गया है ।

 @ रात में दही या दही से बने पदार्थ

 का सेवन न करें ।

@ रात में फल, जूस न लेवें ।

@ ज्यादा तला भोजन,

@ अरहर(तुअर) की दाल

सुबह उठते ही 3 या 4 गिलास करीब 1

 लीटर सदा जल ग्रहण करें ।

 अमृतम गोल्ड माल्ट 

पूर्णतः हानिरहित हर्बल

 उत्पाद है ।

रोगनाशक ओषधि के रूप में यह एक अद्भुत

हर्बल सप्लीमेंट है । यह उदर की अदृश्य

व्याधियों को मिटाकर पेट साफ कर, समय पर

दस्त लाता है । आयुर्वेद के अनुसार दुरुस्त पेट

सुस्त शरीर को ऊर्जा से भर देता है ।

स्वस्थ जीवन का यही सूत्र है ।

 

रोग का संयोग –

रंज-राग के रंग में रमा तथा भोग- रोग

से घिरा व्यक्ति, संसार का कोई भी

भोग,-भोग नहीं पाता । हर भोग के लिये स्वस्थ व सुन्दर शरीर आवश्यक है । कभी-कभी,

 तो योग्य लोग (चिकित्सा क्षेत्र के जानकार)

 या योग भी, रोग नहीं मिटा पाते ।

संसार में जीने के लिये रोग-रहित जीवन, भोग और सम-भोग जरूरी है ।

हमारी लापरवाही और लगातार बार-बार होने

वाली बीमारियों के कारण कोई होशियारी काम नहीं आती।

 

लोगों को होने वाले रोगों के नाम-

पुरुष हो या नारी, बीमारी से

 कोई नही बच सकता ।

जीवन छोटे-छोटे रोगों से प्रारंभ होकर

अंत में मन अशान्त हो, आखिर में

तन शांत हो जाता है ।

जब सब कुछ खाक हुआ, तो

 केवल राख बचती है ।

रोगों का रायता जब फैलता है, तो

1. आलस्य, 2. बेचैनी,

3. घबराहट, 4. भय-भ्रम,

5. चिन्ता 6. कमजोरी

7. रक्तचाप कम या ज्यादा,

8. कपकपाहट, 9. कम्पन्न,

10. धड़कन बढ़ना, 11. दुर्बलता,

12. हेल्थ नहीं बनना,

 13. सिर, सीना व तलवों में जलन,

14. आँखों के सामने अंधेरा छाना,

15. अवसाद, 16. हीन भावना आना,

 17. हकलाना, 18. आत्मविश्वास की कमी,

19. बोलने में हिचकिचाहट होना,

20.सुंदरता, 21. खूबसूरती घटते जाना,

 22. झुर्रियां, दाग,

 23. शरीर का शिथिल होना

 और इन सबके कारण

24. ह्रदय रोग,

 25.मधुमेह-प्रमेह आदि विकार

प्राकृतिक नियम विरुद्ध

 जीवन-शैली के कारण होते हैं ।

 रोग कभी 2 या 4 दिन में नही पनपते ।

 इनके प्रति बेरूखी ठीक नहीं रहती ।

 अन्यथा फिर कहना पड़ेगा कि-

 “बेरुखी में सनम, हो गए हम खत्म”

 रोगों का कारण:

हमारा उदर महासागर है । इसमें असंख्य

रहस्य भरे पड़े हैं । इससे हरेक का

बहुत वास्ता है रोगों का रास्ता

यहीं से खुलता है ।

 पेट की पीड़ा से परेशानी का प्रारंभ होता है ।

 ज्यादा अटपटा खाने या समय पर न खाने

 से पेट रोगों का पिटारा बन जाता है । पेट को भोजन लेट मिला, या अधिक मिला कि खिला चेहरा मुरझा जाता है ।

इसीलिए ही कहते थे-

“कम खाओ-गम खाओ”

कुछ का कहना ये भी है कि –

पहले पेट पूजा”- 

फिर काम दूजा”

पेट पूजा के साथ-साथ योगा, ध्यान, प्रार्थना

व पूजा करना भी लाभदायक होता है –

 हम “पापी पेट” लिए ही इतनी भागदौड़

 कर रहे हैं । अमृतम आयुर्वेद का नियम है –

  समय पर खाना जरूरी है,

  कि,  तुरन्त पच जाए

 खाना पचा कि तन-मन

 रचा-रचा खूबसूरत और

 शरीर हल्का हो जाता है ।

 पर  बीमारी पुरानी औऱ लाइलाज हुई,

 कि पल का भी भरोसा नहीं रहता ।

यूनानी कहावत है-
विकारों से तन तबाह,
विचारों से मन। 
 

रोग से सिर्फ जाता हैं,

 मिलता कुछ नहीं ।

 दुनिया में कुछ लोग,

समय पर रोग के रहस्य को

न पकड़ पाने के कारण कम

 उम्र में ही चल बसते हैं ।

 फिर….

 “किशोर कुमार”का यह गीत याद आता है-

 मैं शायर बदनाम,

 मैं चला, मैं चला ।

 संसार चला-चली का मेला है,

जिनका उदर (पेट)

 मैला (मल), कब्ज-रोगरहित है । वही

 पूर्ण-प्रसन्न जीवन जी पाते हैं  !!

 

क्यों होती है बार – बार बीमारी:

1- पेट का बहुत लंबे समय तक या

 बार-बार खराब रहना,

रोगों के रमने का कारण है ।

2. लगातार कब्ज बने रहना ।

3. उदर कब्ज के कब्जे में रहना ।

4. एक बार में पेट साफ नहीं होना ।

5. भोजन न पचना ।

6. भूख न लगना

7. अम्लपित्त (एसिडिटी)

8. गैस का न निकलना (वायु-विकार)

9. मानसिक व्यग्रता

10. बार-बार ज्वर , मलेरिया ।

11. जीवनीय शक्ति में कमी ।

आदि के कारण रोग जड़ें जमाना शुरू कर देते हैं । धीरे-धीरे इसका असर हमारे

लिवर (यकृत) तथा गुर्दे (किडनी)

 पर होने लगता है ।

 बदहजमी, अम्लपित्त (एसिडिटी),

 उबकाई सी आना,

गैस बनने की शिकायत शुरू हो जाती है ।

इसके बाद ही

 “तन का तना” कमजोर होने लगता है ।

 आंते भोजन पचाना कम कर देती हैं ।

 पेट में सूक्ष्म कृमि (कीड़े)

 उत्पन्न होने लगते हैं ।

 इस कारण तेजी से त्वचारोग तन

 पर पकड़ बनाकर सारी शक्ति-ऊर्जा

 क्षीण कर नाडियों में सही तरीके से

रक्त का संचार न होकर

अवरुद्ध हो जाता है ।

 फिर…और.. फिर ..: डर-डर कर, दर-दर,  डॉक्टर के दर पर भटकते -भटकते

सब कुछ बर्बाद कर बैठते हैं ।

कोरे कागज की तरह जीवन

 व्यर्थ में ही व्यतीत हो जाता है ।

 और .. अंत में

यही गुनगुनाते ‘जाने चले जाते हैं कहाँ,

कि-

 मेरा जीवन कोरा कागज,

कोरा ही रह गया ।

 

क्यों असरकारक है:

अमृतम गोल्ड माल्ट

 में विशेष रूप से हरड़ का

मुरब्बा मिलाया गया है ।

 तन के हरेक रोग हरने, हटाने के कारण

 इसे हरड़ या हरीतकी कहते हैं ।

हरड़ के विषय पर हम पिछले कई लेख

(ब्लॉग) दे चुके हैं ।

अमृतम हरड़ (हरीतकी) मुरब्बा के बारे में भावप्रकाश नामक

 ग्रंथ में श्लोक है कि-

हरति/मलानइतिहरितकी ।
अर्थात-हरड़ -पेट की गंदगी और रोगों
का हरण करती है ।
हरस्य भवने जाता
 हरिता च स्वभावत:।
 ‎हरते सर्वरोगानश्च 
ततः प्रोक्ता हरीतकी ।।म.नि.

 हरड़ (हरीतकी) के अन्य नाम-

 ‎हर, हर्रे, हरीतकी, अमृतम, अमृत, हरड़, बालहरितकी, हरीतकी गाछ, नर्रा,

हरड़े, हिमज, आदि कई नामों से जाने

वाली हरड़ रत्न रूपी तन का पतन

रोककर, बिना जतन के ठीक करने

की क्षमता रखती है ।

महर्षि चरक की चरक संहिता के अनुसार

अमृतम हरड़ के बारे में बताया कि –

 “विजयासर्वरोगेषुहरीतकी

अर्थात हरीतकी (हरड़) मुरब्बा एक

अमृतम ओषधि है, 

जो सभी रोगों पर विजयी है।

  हरड़- हारे का सहारा है

 

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