करीब २०० साल पहले तक लोग दशहरा नहीं, दसराह क्यों कहते थे? दशहरा का असली अर्थ: दसराह और दस दिशाओं की शुद्धि!
- दशहरा का असली रहस्य – दस दिशाएँ, न कि रावण (अमृतम पत्रिका ग्वालियर, द्वारा खोजा गया सत्य) ये जानना जरूरी है!

- रावण-दहन का भ्रम और समाज पर असर
- दशहरा पर राहु काल दीपदान का महत्व – Raahukey Oil से दस दीपक
- आधुनिक रावण – हमारे भीतर छिपे दस सिर
दशहरा को अक्सर रावण-दहन से जोड़ा जाता है। किंतु ब्रह्मवैवर्त पुराण, लंकेश्वर, तांडव रहस्य, छांदोग्य उपनिषद, मंत्रमहोद्धि जैसे वैदिक ग्रंथ बताते हैं कि दशहरा का संबंध रावण से नहीं बल्कि दस दिशाओं से है।
👉 दसराह के दिन दसों दिशाएँ शुद्ध और पवित्र होती हैं, जिससे जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है।
आज से मात्र २०० वर्ष पहले तक गाँवों में इसे “दसराह” कहा जाता था, न कि दशहरा इस भ्रम को तोड़ना आवश्यक है, ताकि त्योहार का असली महत्व पुनः स्थापित हो सके।
श्री दशानन रावण – विद्वान और शिवभक्त
- इतिहास में वर्णित श्री दशानन रावण केवल असुर या राक्षस नहीं थे।वे –अद्वितीय वेदज्ञानी, महान शास्त्रकार और परम शिवभक्त थे।
- 👉 ऐसे विद्वान का अपमान मन को अशांत करता है। रावण का प्रतीक बाहरी नहीं, बल्कि भीतरी दोषों का प्रतीक है।
दसराह का असली विधान
- दसों दिशाओं की शुद्धि हेतु राहु काल में 10 दीपक Raahukey Oil के जलाने का विशेष विधान है।
- दीपक जलाकर गुरु और पितरों का नमन करने से पितृदोष और कालसर्प दोष शांत होते हैं। यह दीपदान आत्मा और परिवार दोनों के लिए कल्याणकारी है।
आधुनिक रावण – भीतर और बाहर
- त्रेता का रावण सोने की लंका में था, पर आज का रावण हमारे भीतर और समाज में छिपा है। आज उसके दस सिर अलग रूपों में खड़े हैं –
1. मोबाइल का मोह –
युवाओं का समय निगल रहा है।
2. फेक न्यूज और डीपफेक –
सत्य को विकृत कर रहे हैं।
3. निजता पर वार –
अदृश्य एल्गोरिद्म अधिकार छीन रहे हैं।
4. उपभोक्तावाद –
प्रकृति को खोखला कर रहा है।
5. साइबर अपराध –
समाज की सुरक्षा को चुनौती।
6. जलवायु संकट –
भविष्य की पीढ़ी खतरे में।
7. नशाखोरी –
सामाजिक पूंजी का क्षरण।
8. अहंकार और सोशल मीडिया का आडंबर – आत्मबोध को निगल रहा है।
9. भ्रष्टाचार और धनबल –
लोकतंत्र को बंधक बना रहा है।
10. कृत्रिम बुद्धिमत्ता का दुरुपयोग –
मानव अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न।
- 👉 ये वही दस सिर हैं, जिनसे हमें कलयुग में लड़ना है।
असली विजयादशमी क्या है?
- • असली विजय तब होगी जब हम बाहरी पुतले नहीं, बल्कि भीतरी दोषों का दहन करें।
- • जब हम मोबाइल मोह से अनुशासन, फेक न्यूज से सत्य, उपभोग से संयम, नशे से जागरूकता, भ्रष्टाचार से पारदर्शिता और तकनीक से नैतिकता की ओर बढ़ें।
- • तभी विजयादशमी “दसराह” – दसों दिशाओं की शुद्धि का पर्व बनेगा।
👉 दशहरा का अर्थ रावण का दहन नहीं, बल्कि भीतर के अवगुणों का दमन है।
👉 रावण को विद्वान और शिवभक्त मानकर उसका सम्मान करें, और असली युद्ध अपने भीतर के रावण से करें।
👉 दस दीपक Raahukey Oil
- के जलाकर दसों दिशाओं और पितरों का नमन करें – यही दसराह का वास्तविक रहस्य है।


- दशहरा का असली रहस्य – दस दिशाओं का पर्व, न कि रावण-दहन!
• दशहरा का असली रहस्य
• दसराह का महत्व
• रावण का असली स्वरूप
• आधुनिक रावण और समाज
• राहु काल दीपदान दशहरा
✍️ यह खोज अशोक जी अमृतम, ग्वालियर द्वारा की गई और अमृतम कालसर्प विशेषांक में विस्तार से प्रकाशित की गई थी।

दशहरा का भ्रम
दसराह अब अपभ्रंश होकर दशहरा हो गया!
- आज हम दशहरा को केवल रावण-दहन से जोड़कर देखते हैं। लेकिन क्या सचमुच यह पर्व केवल अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है? बुराई किसमें है ये आज तक किसी ने नहीं खोजा
रावण और आयुर्वेद – भारत की औषधियों का छुपा आधार

- जब भी रावण का नाम लिया जाता है, तो अधिकतर लोग उसे रामायण का खलनायक मानते हैं।
- लेकिन इतिहास और आयुर्वेदिक शास्त्र बताते हैं कि रावण केवल दशानन नहीं, बल्कि महान आयुर्वेदाचार्य भी थे।
- आज भारत में प्रचलित कई आयुर्वेदिक औषधियों के मूल सिद्धांत रावण रचित ग्रंथों पर आधारित हैं।
रावण का आयुर्वेद में योगदान
- रावण संहिता – इसमें आयुर्वेद, तंत्र, ज्योतिष और चिकित्सा से जुड़े दुर्लभ रहस्य संकलित हैं।
- अर्क प्रकरण – औषधियों को शुद्ध करने और अर्क (एक्सट्रैक्ट) बनाने की तकनीक रावण ने दी।
- नाड़ी विज्ञान – रावण नाड़ी-परीक्षण में अद्वितीय थे। आज भी आयुर्वेदिक वैद्य नाड़ी देखकर रोग पहचानते हैं, इसकी नींव रावण ने डाली।
- औषध निर्माण सूत्र – रोग विशेष के लिए जड़ी-बूटियों के संयोजन की प्रणाली रावण के शास्त्रों में मिलती है।
- शिव भक्ति और औषध ज्ञान – रावण ने हिमालय की कठिन गुफाओं में तप कर औषधियों और धातुओं का गहरा अध्ययन किया।
आधुनिक आयुर्वेद पर रावण का प्रभाव
- 👉 आज भी कई आयुर्वेदिक दवाएँ – चाहे वह च्यवनप्राश हों, अश्वगंधा योग हो या शंखपुष्पी सूत्र – इनके मूल सिद्धांत कहीं न कहीं रावण की चिकित्सा पद्धति से जुड़े हुए हैं।
- भारतीय आयुर्वेद का “फार्मूला बेस” रावण के योगदान पर टिका है।
- आयुर्वेदिक विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में रावण संहिता का संदर्भ लिया जाता है।
- यह प्रमाण है कि रावण का ज्ञान केवल त्रेता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आज भी जीवित है।
क्यों नहीं भूल सकते रावण का योगदान?
- क्योंकि रावण ने ज्ञान को धर्म या राजनीति से अलग रखकर केवल मानवता के कल्याण के लिए प्रस्तुत किया।
- उनके ग्रंथ हमें बताते हैं कि आयुर्वेद केवल दवा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।
- यदि हम रावण को केवल नकारात्मक दृष्टि से देखेंगे, तो चिकित्सा और संस्कृति का आधा सत्य खो देंगे।
निष्कर्ष
- रावण केवल “लंकेश” नहीं थे, बल्कि वैद्येश्वर थे। आज भारत की लगभग हर आयुर्वेदिक औषधि का आधार कहीं न कहीं उनके द्वारा रचित सूत्रों में छिपा है।
- 👉 रावण का यह योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी विद्वत्ता और औषध ज्ञान हमें यह सिखाता है कि –सच्चा ज्ञान अमर होता है, चाहे उसे कोई भी क्यों न दे।
👉 वैदिक और प्राचीन ग्रंथ जैसे –
• ब्रह्मवैवर्त पुराण
• छांदोग्य उपनिषद
• मंत्रमहोद्धि आदि ग्रंथ स्पष्ट बताते हैं कि दशहरा का संबंध रावण से नहीं बल्कि दस दिशाओं से है।
यही कारण है कि २०० वर्ष पहले तक भारत के गाँवों में लोग इसे “दसराह” कहा करते थे।
दस दिशाओं का शुद्धिकरण
- दशहरा के दिन दसों दिशाएँ पवित्र मानी जाती हैं।इस दिन वातावरण शुद्ध होता है, गाँव-गाँव से लोग मेल-जोल के लिए निकलते हैं और नये कार्यों का आरंभ करते हैं।
👉 वास्तव में यह पर्व ऊर्जा, स्वच्छता और सामूहिकता का प्रतीक है।
- रावण का असली स्वरूप – शिवभक्त और विद्वान! इतिहास और पुराण बताते हैं कि श्री दशानन रावण –
• दशों वेदों का विद्वान, शिव तांडव स्तोत्र का रचयिता और परम शिवभक्त था। उसे केवल “असुर” या “राक्षस” कहना सत्य से भटकना है।
- 👉 उसका अपमान हमारी चेतना को अशांत करता है। रावण वस्तुतः भीतर के दोषों का प्रतीक है।
दशहरा का असली विधान –
राहु काल में दीपदान
• प्राचीन मान्यता के अनुसार, दशहरा या दसराह पर राहु काल में दस दीपक जलाना विशेष फलदायी है। यह दीपक Raahukey Oil से जलाना चाहिए।
दीपदान का क्रम:

1. दीपक को पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण — सभी दस दिशाओं में रखें।
2. प्रत्येक दीपक जलाते समय अपने गुरु और पितरों को प्रणाम करें।
3. राहु मंत्र का जप करें –
“ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः”
• इस विधान से –
✅ दसों दिशाओं की ऊर्जा संतुलित होती है।
✅ कालसर्प और पितृ दोष शांति पाते हैं।
✅ जीवन में समृद्धि, स्थिरता और आंतरिक शांति आती है।
- आधुनिक रावण – हमारे भीतर, समाज में और त्रेता का रावण सोने की लंका में था! रावण के दस सिर अब अलग-अलग रूपों में खड़े हैं –
1. मोबाइल और स्क्रीन का मोह – युवाओं का ध्यान और समय चुरा रहा है।
2. फेक न्यूज और डीपफेक – सत्य और विवेक को नष्ट कर रहे हैं।
3. निजता पर अदृश्य हमला – एल्गोरिद्म हमारे अधिकार छीन रहे हैं।
4. उपभोक्तावाद का सिर – जल, जंगल, जमीन का विनाश कर रहा है।
5. साइबर अपराधों का रावण – समाज को असुरक्षित बना रहा है।
6. जलवायु संकट – अगली पीढ़ी को विनाश की ओर धकेल रहा है।
7. नशाखोरी और व्यसन – सामाजिक-सांस्कृतिक पूंजी का ह्रास।
8. अहंकार और सोशल मीडिया का आडंबर – आत्मबोध को निगल रहा है।
9. भ्रष्टाचार और धनबल – लोकतंत्र को बंधक बना रहा है।
10. कृत्रिम बुद्धिमत्ता का दुरुपयोग – मानव अस्तित्व पर खतरा।
- 👉 ये वही दस सिर हैं जिनसे आज मानवता को लड़ना है।
असली विजयादशमी क्या है?
• असली विजय तब होगी जब हम भीतर के दोषों का दहन करें।
• जब हम –
🔹 मोबाइल मोह से अनुशासन,
🔹 फेक न्यूज से सत्य,
🔹 उपभोग से संयम,
🔹 नशे से जागरूकता,
🔹 राजनीति से पारदर्शिता,
🔹 और तकनीक से नैतिकता की ओर बढ़ेंगे। तभी विजयादशमी पर्व आत्मिक विजय का प्रतीक बनेगा।
निष्कर्ष – दशहरा का असली संदेश
👉 दशहरा केवल “पुतला दहन” नहीं है।
👉 यह दसों दिशाओं की शुद्धि और भीतर के रावण का दहन है।
👉 रावण को अपमानित करना नहीं, बल्कि उसके ज्ञान से सीख लेना आवश्यक है।
👉 दस दीपक Raahukey Oil के जलाकर हम अपने पितरों का सम्मान करें और जीवन को शुद्ध करें।
✍️ यह शोध और खोज अशोक जी अमृतम, ग्वालियर द्वारा की गई और अमृतम कालसर्प विशेषांक में विस्तार से प्रकाशित है।
- असल में, दशहरा का शाब्दिक अर्थ ही है – दश + राह यानी दस दिशाओं का मार्ग।
- यह दिन केवल रावण दहन का नहीं बल्कि आकाशीय और आध्यात्मिक ऊर्जा के द्वार खुलने का प्रतीक है।
क्यों रावण दहन से कंगाल होने का संकेत है?
- रावण कोई साधारण राक्षस नहीं, बल्कि महान विद्वान, आयुर्वेदाचार्य और शिवभक्त था।
- उसके रचित आरोग्य शास्त्र, रसायन ग्रंथ, ज्योतिष और तंत्र विद्या आज भी आधार स्तंभ माने जाते हैं।
- ऐसे ज्ञानवान प्रतीक को जलाना, वास्तव में विद्या, विज्ञान और समृद्धि को नष्ट करने जैसा है।
- मान्यता है कि जिस घर-परिवार या समाज में विद्या और विज्ञान का अपमान होता है, वहाँ धीरे-धीरे धन-धान्य, सुख और समृद्धि का क्षय होता है।
दशहरा का असली रहस्य
- इस दिन दसों दिशाओं के द्वार खुलते हैं और आकाशीय ऊर्जा पृथ्वी पर उतरती है।
- इसे आवागमन, व्यापार, यात्रा और नए कार्यों के आरम्भ का श्रेष्ठ दिन माना गया है।
- ‘दसराह’ का अर्थ है – जीवन के हर मार्ग पर विजय का द्वार खुलना।
👉 इसलिए रावण को जलाने की बजाय हमें इसे दिशाओं के विस्तार, ऊर्जा और अवसरों का पर्व मानना चाहिए।
रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र इतना गूढ़ और ऊर्जावान है कि विद्वान से विद्वान भी इसकी पूर्ण व्याख्या करने में असमर्थ रहे हैं।
शिवतांडव रहस्य की क्यों नहीं हो पाई व्याख्या?
- रावण का स्तर – वह केवल “लंकाधिपति” ही नहीं था बल्कि
- अद्वितीय संस्कृत विद्वान
- महान संगीतज्ञ
- गहन तांत्रिक और आयुर्वेदाचार्य था।
- उसकी रचना साधारण भावों से परे है।
- शब्दों में ऊर्जा – शिव तांडव स्तोत्र के प्रत्येक अक्षर में बीज मंत्र जैसी शक्ति है।
- ये शब्द ध्वनि–तरंग उत्पन्न करते हैं, जो सीधे मस्तिष्क और चेतना को स्पंदित करते हैं।
- इसलिए इसकी व्याख्या भाषाई अर्थ तक सीमित नहीं, बल्कि अनुभूति पर आधारित है।
- आनंद व भय का संगम – इसमें शिव के रुद्र रूप की महिमा है –
- जहाँ एक ओर विनाश है, वहीं दूसरी ओर सृजन का रहस्य छुपा है।
- साधारण बुद्धि इसे सिर्फ शाब्दिक अर्थों में बाँध लेती है, लेकिन
- असली भाव को केवल अनुभव और साधना से जाना जा सकता है।
- अनंत व्याख्या संभव –
- जैसे गीता के प्रत्येक श्लोक की नई-नई व्याख्या निकलती रहती है,
- वैसे ही शिव तांडव स्तोत्र की भी अनगिनत परतें हैं।
- रावण ने इसे अनंत अर्थों वाला ही रचा था, ताकि यह कभी पुराना न पड़े।

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