मौज करो, रोज़ करो, नहीं मिले तो खोज करो ब्रेन की खोलने वाली चाबी
आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र में एक श्लोक बताया है। जो इस तरह है -

अत्यासन्ना विनाशाय दूरस्था न फलप्रदा:।
सेवितव्यं मध्याभागेन राजा बहिर्गुरू: स्त्रियं:।।
इस श्लोक में चाणक्य ने कहा है कि राजा या जो व्यक्ति आर्थिक रुप से बलवान हो, आग और स्त्री, ये तीन ऐसी चीजें हैं न ही तो इनके ज्यादा करीब जाना चाहिए न ही इनसे ज्यादा दूर जाना चाहिए। यानि संतुलन बनाकर एक निश्चित दूरी रखनी चाहिए। लेकिन चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा है यह जानना भी आवश्यक है आइए जानते हैं।
चाणक्य कहना है कि स्त्री को कमजोर नहीं समझना चाहिए क्योंकि इस सृष्टि के निर्माण में जितना योगदान पुरुष का है, उतना ही स्त्री का भी है। किसी स्त्री के अत्यधिक करीब जाने से व्यक्ति को ईर्ष्या का और ज्यादा दूरी बनाने से घृणा तथा निरपेक्षता मिलती है।
प्रेम में आजकल लड़कों का काम निपटने के बाद दिल में बस इतनी याद रह जाती है जैसे अगरबत्ती
जलने के बाद स्टैंड पर बची लकडी या सीख
पति चाहे कितना ही त्याग कर ले पत्नी सदैव भारी रहती है ओर पति आभारी यही नारी की महिमा है।
साली पाली पास हुई तो बोली जीजाजी
मिठाई खिलाओ, हमने कहा, ओर पास हो जाओ
आदमी का पूरा जीवन मशीनों ओर हसीनों की देखरेख में निकल जाता है।
अल्पमत सरकार हो
या अल्पआय पति,
दोनो की अपनी जगह
होती है भारी दुर्गति।
विश्व हास्य दिवस मनाने की तिथि मई माह का प्रथम रविवार
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