दशहरा या दसराह? असली सच! दसराह अर्थात् दसों दिशाओं का शुद्धिकरण! इसलिए 👉प्राचीन काल में दशहरा नहीं, दसराह कहा जाता था 👉 यह पर्व केवल रावण-दहन नहीं, बल्कि प्रकृति की 10 दिशाओं का सम्मान है

दसराह पर्व –

दसों दिशाओं का उत्सव, न कि रावण दहन

  1. कथा वाचकों द्वारा फैलाये गए भ्रम के कारण आज भरवाएगी जिस पर्व को “दशहरा” कहते हैं, वह वास्तव में दसराह कहलाता था।

प्राचीन काल में इसका उद्देश्य केवल रावण-दहन नहीं था, बल्कि प्रकृति की दसों दिशाओं का शुद्धिकरण और सम्मान करना था।

  1. यह दिन है आश्विन मास की शुक्ल दशमी, जिसे हम दशहरा कहते हैं।
  2. करीब 200 वर्ष पहले तक यह पर्व “दसराह” नाम से ही मनाया जाता था, लेकिन समय के साथ इसका रूपांतर “दशहरा” में हो गया।


दसराह पर्व का वैदिक रहस्य

  1. वर्ष में केवल एक ही दिन ऐसा आता है जब दसों दिशाएँ (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, नैऋत्य, आग्नेय, वायव्य, ऊर्ध्व, अधो) पूरी तरह शुद्ध और जागृत होती हैं।
  2. प्राचीन ऋषि-मुनि इसे दसराह नाम से पुकारते थे क्योंकि यह दस दिशाओं का उद्घाटन और शुद्धिकरण है।
  3. ज्यादातर हिंदू रावण का पुतला जलाकर राहु दोष से पीड़ित होकर राहु का प्रकोप झेल रहे हैं! किसी भी प्राचीन ग्रंथ में रावण दहन का उल्लेख नहीं मिलता!


क्यों गलत है केवल रावण-दहन तक सीमित करना?

  1. रावण-दहन की परंपरा पिछली कुछ सदियों में जोड़ी गई। असल में, दसराह का अर्थ है:
  1. दस दिशाओं का सम्मान
  2. नकारात्मक ऊर्जा का नाश
  3. प्रकृति और जीवन का संतुलन
  4. यदि हम इसे केवल रावण-दहन तक सीमित कर देते हैं, तो असली वैदिक उद्देश्य खो जाता है।

दसराह पर किए जाने वाले वैदिक उपाय


दीपदान

दसों दिशाओं की शांति के लिए

  1. देशी घी की जगह Raahukey तेल से दीपदान करना अधिक फलदायी है।
  2. यह दीपक नकारात्मक शक्तियों को दूर कर वातावरण को शुद्ध करता है।

श्रीफल खंडन –

  1. एक श्रीफल (नारियल) को भूमि पर तोड़कर खंडित करें।
  2. यह कर्म जीवन से अशांति, तनाव और विघ्नों को दूर करता है।

दिशा ध्यान साधना –

  1. दसराह के दिन उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा में बैठकर ध्यान करें।
  2. इससे चित्त निर्मल होता है और सफलता के द्वार खुलते हैं।

आधुनिक समय में दसराह क्यों ज़रूरी है?

  1. आज की भागदौड़ और प्रदूषण भरी दुनिया में, दसों दिशाओं का संतुलन बिगड़ गया है।
  2. दिशा-दोष जीवन को असफलता, रोग और अशांति की ओर ले जाता है।
  3. दसराह पर किए गए उपायों से यह दोष मिटता है और जीवन में सौभाग्य, शांति और समृद्धि आती है।


निष्कर्ष

  1. दशहरा को केवल रावण-दहन तक सीमित न करें।इस वर्ष से इसे दसराह पर्व कहें और दसों दिशाओं के सम्मान में दीपदान व श्रीफल खंडन अवश्य करें।
  2. यही असली वैदिक परंपरा है, जो हमारे जीवन को संतुलित और शक्तिशाली बनाती है।

  3. ✨ इस दसराह पर Raahukey तेल से दीपदान करिए और जीवन में शुभता का स्वागत कीजिए।

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