श्री दशानन रावण रहस्य विशेषांक ४० सालों का संघर्ष और सतत परिश्रम का परिणाम amrutam
- जानिए रावण संहिता के वे 7 रहस्यमय प्रयोग, जिनसे लंकेश रावण ने अमरता, तंत्र और विज्ञान को एक सूत्र में बाँधा।
- विज्ञान, आयुर्वेद और अध्यात्म की सीमाएँ जहाँ मिट जाती हैं, वहीं जन्म लेता है रावण।
रावण संहिता के 7 निषिद्ध प्रयोग – आयुर्वेद, तंत्र और विज्ञान का संगम

- रावण राक्षस नहीं! महान महर्षि वैज्ञानिक और त्रिकालदर्शी था! रावण को समझना अपने भीतर के वैज्ञानिक और साधक को पहचानना है।
- वह न केवल लंका का सम्राट था, बल्कि चेतना का वह दीपक भी था जो आज भी तंत्र, वेद और विज्ञान के बीच जलता है —अमिट, अमर और अद्भुत।
- जानिए रावण संहिता के वे 7 रहस्यमय प्रयोग, जिनसे लंकेश रावण ने अमरता, तंत्र और विज्ञान को एक सूत्र में बाँधा।
- विज्ञान, आयुर्वेद और अध्यात्म की सीमाएँ जहाँ मिट जाती हैं, वहीं जन्म लेता है रावण।
रावण संहिता के 7 निषिद्ध प्रयोग – जब विज्ञान और तंत्र एक हो गए! (Ravana Samhita Secrets | Ravana Tantra Science in Ayurveda)
यत्र विज्ञानं तत्र रावणः। यत्र तंत्रं तत्र शिव:!!
- जिस युग में धरती पर रावण चला, वहाँ विज्ञान और तंत्र एक ही सिक्के के दो पहलू थे।
- रावण केवल राजा नहीं था — वह ब्रह्मज्ञान का साधक, रसायनशास्त्र का जनक और मानव चेतना का खोजी था। रावण संहिता’, आज भी भारतीय आयुर्वेद और तंत्र विज्ञान की सबसे रहस्यमय पुस्तकों में गिनी जाती है।

🔮 1. अमरत्व प्रयोग – घृत और धान्य ऊर्जा का रहस्य
- त्रिफला चूर्ण और ताजी धान्य तिल तेल में डालकर मुंह बंद बर्तन में 90 दिन धान्य के कोठे में रखने से सेवन करने वाला दिव्यरूप धारण करता है।
- यह कोई जादू नहीं था — यह बायो-एनर्जेटिक अल्केमी (Bio-Energy Process) थी।
- धान्य (अनाज) ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संवाहक है।जब तेल और औषधि 90 दिनों तक उसके संपर्क में रहती है, तो उनमें सौर-चंद्र ऊर्जा का संचय होता है —जो शरीर को पुनर्जीवित (Rejuvenate) कर सकती है।
- 🌿 Modern Correlation: आज “Fermentation Therapy” और “Solarized Oils” इसी सिद्धांत पर आधारित हैं।
⚡ 2. निर्गुंडी मूल प्रयोग – आकाशगमन की विद्या
- निर्गुंडी के मूल को घृत के साथ एक माह तक प्रयोग करने से मनुष्य आकाशगामी हो जाता है।
- निर्गुंडी (Vitex negundo) में न्यूरो-एक्टिव तत्व होते हैं, जो मस्तिष्क के Pineal Gland (आज्ञाचक्र) को सक्रिय करते हैं।
- रावण के इस प्रयोग का अर्थ ‘शरीर का उड़ना’ नहीं था, बल्कि चेतना का उठना — जिससे साधक “अंतरिक्ष चेतना” (Astral Projection) की अवस्था में पहुँच जाता है।
अभ्यसेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।
- — यह वही योगिक नियंत्रण है, जिसे रावण ने विज्ञान में उतारा।
🔥 3. अग्नि-अभेद प्रयोग – अग्नि से अप्रभावित होने की क्रिया
- सफेद गुंजा रस में शरीर लिप्त करने से और ‘ऊं बज्रकारिणे अमृतं कुरु कुरु स्वाहा’ मंत्र सिद्ध होने पर मनुष्य अग्नि से प्रभावित नहीं होता। गुंजा (Abrus precatorius) एक विषैली जड़ी है, लेकिन रावण ने इसका उपयोग आयुर्वेदिक प्रोटेक्शन लेयर के रूप में किया। यह शरीर की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड को सुदृढ़ करती है, जिससे बाहरी ताप का प्रभाव न्यून हो जाता है।
⚗️ Scientific Note: यह सिद्धांत आज “Heat Resistance Bio-Coating” के रूप में प्रयोग हो रहा है।
💧 4. जल स्तम्भन प्रयोग – तत्व नियंत्रण की विद्या
सफेद चिरमिती के रस से वस्त्र रंगकर
!!ऊं नमो भगवते रुद्राय जलं स्तंभय ठः!!
- मंत्र से जल प्रवाह रुक जाता है। यह प्रयोग Hydrophobic Energy की दिशा में था। रावण ने मंत्र कंपन (Vibrational Frequency) को जल के अणुओं पर प्रभावी करने का अभ्यास किया। यह आधुनिक Resonance Science का आद्य रूप था —जहाँ शब्द (Sound) से द्रव्य की गति को नियंत्रित किया गया।
🌊 “शब्दो हि ब्रह्म स्वरूपं” – (ध्वनि ही सृजन है।)
🌞 5. पालेय कंद प्रयोग – भूख-प्यास निवारण तंत्र
- पालेय के कंद को भैंस के दूध में पकाकर, छाया में सुखाकर दस मासे भक्षण करने से भूख-प्यास समाप्त हो जाती है।
- यह प्रयोग Cellular Metabolism Control से जुड़ा था। रावण ने शरीर की चयापचय क्रिया को इतना संतुलित किया कि वह केवल वायु और सूर्य-प्रकाश से ऊर्जा ग्रहण कर सके।
- 🧘♂️ यह वही प्राणभक्षण योग है जिसे आज Breatharianism कहा जाता है।
🕯️ 6. उड्डीस तंत्र – मरण और पुनर्जन्म का विज्ञान
- जब रावण ने अपने परम गुरु भगवान शिव से कहा —मुझे अमर बना दीजिए, अन्यथा मैं अपना शीश काट दूंगा, तब शिव ने कहा —वत्स, अमरता नहीं, अमरभाव संभव है।
- यहीं से रावण को “उड्डीस तंत्र” का ज्ञान मिला —जो शरीर त्याग के बाद चेतना-प्रक्षेपण (Conscious Energy Transfer) की प्रक्रिया बताता है।
- यह वही विज्ञान है जिससे वह कपालभाति और सुषुम्ना जागरण की विधियाँ विकसित कर पाया।
7. रावण का ब्रह्मदर्शन – विज्ञान में अध्यात्म
- वेद में मोक्ष का शब्द नहीं, विजय और दीर्घायु की वाणी है। रावण मानता था कि ज्ञान ही अमरता है, क्योंकि जो जानता है, वह कभी नष्ट नहीं होता। उसके लिए तंत्र, योग और विज्ञान – एक ही साधना थे।
नास्ति ज्ञानसमं शक्तिं, नास्ति विज्ञानसमं बलम्।
यो रावणः तत्त्ववित्तु, सः शिवं स्वयं व्रजेत्॥
- अर्थात् जो ज्ञान और विज्ञान दोनों जानता है, वही शिवत्व को प्राप्त होता है।
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