केशर प्रेशर से जीवन का स्ट्रक्चर बदल देती है!

  1. केशर इत्र प्रेशर से गुरु ग्रह के कष्टों को दूर करता है! गुरु ग्रह तथा सद्‌गुरु (शिव) की कृपा धारक है!

  1. आयुर्वेद रस तंत्र सार नामक ग्रंथ के अनुसार चन्दनादि तेल मन की चंचलता मिटाता है।
  2. उन्माद रोग नाशक है। सूर्य-चन्द्र ये दोनों सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह है। सृष्टि के आदि से अन्त तक सत्य (शिव) शिवम् (सूर्य) और सुन्दरम् (चन्द्रमा) ये तीनों कभी नष्ट नहीं होते।
  3. शेष का समय-समय जन्म पतन होता रहता है। ये तीनों ऊपरवाले सदैव उन्नति उपकार करने वाले महा उदारवादी, उद्देश्य, उन्मुख उत्थान कारक ऊर्जा या शक्ति है। उपनयन (जनेऊ) संस्कार इन्हें प्रसन्न करने की प्राचीन परम्परा है।

नक्षत्रों के नियम

  1. अमृतम् मासिक पत्रिका के मुताबिक सत्ताइस नक्षत्रों में तीसरा कृतिका, उत्तराफाल्गुनी एवं हस्त नक्षत्र जो बारहवा-तेरहवा है तथा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र जो नक्षत्रक्रम में इक्कीसवा है इन नक्षत्रों के स्वामी अधिपति सूर्य ही है।
  2. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र जो कि छब्बीसवा है इसके अधिपति स्वामी शनि (शिव) है। कृतिका नक्षत्र की मेष-वृषभ राशि है!

  1. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र सिंह एवं कन्याराशि में, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र धनु और मकर राशि तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मीन राशि में आते हैं। इन नक्षत्रों में जन्मे जातक जीवन में अथाह सम्पत्ति के स्वामी बनकर मनचाही उन्नति कर सकते हैं बशर्ते ये अधिक से अधिक शिव उपासना करें।

प्रत्येक उत्सव के दौरान असंख्य दीप अमृतम् Raahukey तेल के जलावे। सद्‌गुरु और योग्य ब्राह्मणों तथा बड़े बुजुर्गो की सेवा कर आशीर्वाद लेवें।

गाय को गंगाजल या सादे जल से स्नान कराकर गाय के कान में नमः शिवाय च नमः शिवाय मन्त्र बारह बार सुनाये। रोटी में घी हल्दी लगाकर गुढ़ सहित 27 दिन तक नियमित खिलावें। गाय के माथे पर लगाकर हल्दी का तिलक लगावें।


दीप ज्योति का जलजला

  1. महाभारत काल में अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा, विराट की कन्या तथा पारीक्षित की माता थी। उत्तरा का जन्म उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में हुआ था इन्होने भगवान शिव की घनघोर तपस्या के फलस्वरूप अभिमन्यु जैसा वीर पुत्र पाया, उत्तरा जीवन भर कार्तिकमास में, प्रतिदिन 1008 से बढ़ते क्रम में शिवालय में प्रातः शाम दीप प्रज्ज्वलित करती रही।

शहडोल mp का प्राचीन शिवालय

  1. विराटेश्वर का यह महाभारत कालीन शिवालय शहडोल म.प्र. के नजदीक स्थित है। विस्तार से बाद में किसी अंक में एक लेख दिया जायेगा। इसमें म.प्र. 36गढ़ के प्राचीन, स्वयंभू शिवालयों का विस्तृत वर्णन होगा।
  2. उत्सव कोई भी हो यह उल्लास का क्षण है। पितरों के ऋण से उऋण होने का एक अद्भुत उपाय है। और दीपावली जैसे उत्सव के लिए प्रत्येक सनातन धर्मी उत्सुक रहता है।
  3. उर्मिला लक्ष्मण की पत्नी सती रूप में पूजित है इस कारण इन्हें पितृ-मातृका भी कहा गया है इनका त्याग ग्रन्थों में उत्कीर्ण ही रह गया। ऐसे अनेको पितृ है जो हमारे स्मरण में भी नहीं हैं।

अमावस्या के पितृ गण

  1. शिवावतार अमावसु नामक पितृ के नाम पर अमावस्या तिथि का नामकरण हुआ। मरीचि के पुत्र अग्निष्वात इनकी पुत्री अच्छोदा ने पितरों को धरती पर लाने हेतु पूरे कार्तिक मास में इतने दीपदान किये कि सम्पूर्ण सृष्टि प्रकाशमयी हो गई।
  2. पृथ्वी लोक की प्रथम यह पितृ-मा‌का थी, जिसने सशरीर पितृलोक जाकर अमावसु पितृ को धरती पर लाकर भोजन कराया तथा वरदान मांगा कि प्रत्येक अमावस्या को जो भी शिवालय या घर के मन्दिर में दीपदान करेगा पितृगण उसके घर में प्रतिदिन वायु रूप में भोजन ग्रहण कर परिवार को स्नेहिल आत्मीय आशीर्वाद देते रहेंगे।

  1. पितरों पितृमातृकाओं की शान्ति मुक्ति हेतु दीपदान की खोज अच्छोदा नामक पितृमातृका ने ही की थी। उस दिन दीपावली की अमावस्या थी। तन्त्रालोक एवं पितृों की परलोक यात्रा नामक ग्रन्थ में विस्तार से वर्णन है।

उन्नति का उपाय

ऊपर उठे कि उत्सव हुआ, अपने को उठाना, उन्नति पाना, उद्देश्य की पूर्ति उत्सव ही है।

उजाड़ जीवन को उमंग एवं उत्साह से भरने तथा विशेष उन्नति, रोग-राग शोक दुःख से मुक्ति, सुख-समृद्धि के लिए-

  1. दीपावली पूजन में एक थाली भोजन पितृ देवों तथा सप्तऋषियों हेतु, एक थाली पितृमातृकाओं और एक थाली मातृ मातृकाओं, लोक मातृकाओं, नक्षत्र मातृकाओं, सप्तघृत मातृकाओं, षोडष मातृकाओं एवं सप्तविश्व मातृकाओं सहित इन सब मातृकाओं के लिए एक ही थाली इनमें श्वेत मिष्ठान, खीर, मालपुआ, पंचमेवा, उड़द मूंग की दाल के मगोड़े आदि सजाकर अर्पित कर महालक्ष्मी पूजन में अवश्य रखें।
  1. सत्ताइस दीपक जिसमें बारह दीपक घी के आटे के दीप में तथा शेष पन्द्रह दीपक अमृतम् Raahukey तेल अथवा तिल तेल में केशर, चन्दन, बादाम, जेतुन तैल मिलाकर मिट्टी के नये दीप में 3-3 घन्टे जलाकर छोड़े।

रात्रि बारह बजे से दो बजे के बीच एक थाली सहित भोजन कहीं चौराहे पर या पीपल, बरगद वृक्ष के नीचे नया दीप जलाकर छोड़े। दूसरी थाली छत पर दीप जलाकर छोड़े।

मातृकाओं वाली तीसरी थाली घर के मन्दिर में ही छोड़े। घर की थाली का भोजन प्रातः गाय को खिलावें सभी थालियों के साथ मिट्टी के पात्र में जल भरकर कुशा डालकर अवश्य रखें।

पितरों को जल और श्वेत मिष्ठान विशेष प्रिय होता है और सभी मातृकाओं को दीप ज्योति। हमारी माँ भी हमारे जीवन को सदैव प्रकाशित करने का प्रयास करती है।

माँ का त्याग और समर्पण अमूल्य है। इससे कोई भी प्राणी उऋण नहीं हो सकता। घर में माँ या महिलाऐं ही सम्पत्ति की वृद्धि और रक्षा करती हैं।

  1. अन्त में अपने पापों की क्षमा मागें। भगवान शिव और सूर्य से अपने परिवार सहित सभी के पितरों व मातृकाओं की आत्मा की परम शान्ति, मुक्ति की प्रार्थना करे ताकि पितरों को सूर्य लोक- शिवलोक में स्थान मिल सके।

आगे का आर्टिकल अमृतम पत्रिका के प्रिंट पेज पर देखें

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