रावण द्वारा लगाया गए पेड़ पर सात रंग इंद्रधनुष की तरह होते हैं!
- आयुर्वेद, तंत्र-मन्त्र, ज्योतिष, कला जादू, भेषज्य विज्ञान, आकाशीय विद्या, सिद्धि समृद्धि, युद्ध ज्ञान आदि अनेक कला और रहस्यों का ज्ञात रावण को उत्तर भारत के कथावाचकों ने बुरी तरह बदनाम और कालकिंत कर दिया!
- अंधभक्तों ने भी कभी कोई खोज नहीं की न दिमाग दौड़ाया! जबकि रावण राहु का ही अवतार है! रावण को गाली देने वाले राहु से पीड़ित होकर बृहद हो जाते हैं!
रावण: शिवभक्त, वैद्य और वनस्पति वैज्ञानिक था
- वृक्ष सहिंता के अनुसार श्री दशानन ने क़रीब १००८ पेड़-पौधों की खोज की थी और अनेक जड़ी बूटियों के फायदे जाने! ऐसा ही लाखों साल पुराना विशाल वृक्ष आज भी पुलत्स्य आश्रम में खड़ा है
चमत्कारी और रहस्यमयी दुर्लभ पेड़ रावण अम्लिका (Adansonia digitata / Baobab tree)
इंद्रधनुषी सप्त रंगों से लबालब रहता है
- वैदिक-ऐतिहासिक, बल्कि वनस्पति-विज्ञान और तंत्रज्ञान दोनों दृष्टियों से अद्भुत है।
- रावण की वैज्ञानिक दृष्टि
- रावण ने केवल तप और तंत्र नहीं किए, बल्कि वनस्पति आनुवंशिकी (Plant Genetics) की समझ भी रखी। उन्होंने अफ्रीका के औषधीय पौधों को लंका में लगाया, ताकि उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी औषधीय संतुलन बना रहे। आज भी श्रीलंका के कुछ प्राचीन मंदिरों के पास इस वृक्ष के अवशेष मिलते हैं — जिन्हें रावण अम्लिका वृक्ष कहा जाता है।
रावण अम्लिका- वह वृक्ष जो रावण ने स्वयं लगाया था!
- लोग रावण को केवल लंका का राजा मानते हैं, परंतु भावप्रकाश निघण्टु, राजनिघण्टु और तंत्रसार ग्रंथों में उन्हें भेषज्य-तंत्र विशेषज्ञ यानी औषधीय विज्ञान का महागुरु बताया गया है।
- महर्षि पुलस्त्य (जो सप्तऋषियों में से एक थे) उनके गुरु और दादा थे। इन्हीं के तपस्थल पर रावण ने एक अद्भुत वृक्ष लगाया था! जो आज भी “रावण अम्लिका” के नाम से जाना जाता है।
रावण अम्लिका कौन-सा वृक्ष है?
- आयुर्वेद और वनस्पति विज्ञान दोनों के अनुसार यह वृक्ष Adansonia digitata है — जिसे पश्चिमी लोग Baobab Tree कहते हैं, पर भारत में इसे रावण अम्लिका या रावण की अमलतास कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति अफ्रीका मानी जाती है, पर लंका और दक्षिण भारत में इसके पौधे आज भी मिलते हैं।
इसका स्वरूप — धरती का अनोखा आकार
- तने की मोटाई: लगभग ३० फीट तक
- ऊँचाई: ६०–८० फीट तक
- आकार: नीचे से मोटा, ऊपर की ओर शंक्वाकार
- फल: लौकी जैसे, ९ से १२ इंच लंबे और ४ इंच व्यास
- गूदा: हल्का खट्टा, सफेद और पौष्टिक
- बीज: चमकीले, वृक्काकार (किडनी स्वरूप)
वैज्ञानिक रहस्य और औषधीय गुण
- रावण अम्लिका का गूदा विटामिन C का भंडार है, जिससे यह प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाता है और ज्वर निवारक माना गया है।इसके पत्ते अफ्रीकी जनजातियाँ इन्हें ज्वर, पसीना (स्वेद), और प्रवाहिका (डायरिया) में उपयोग करती हैं।
- कल्क (पत्तों का लेप) त्वचा रोग, पित्त और दाह में ठंडक देता है। फल का गूदा अतिसार, उल्टी (वमन), विषम ज्वर, और थकान में अत्यंत लाभकारी है। यह शीतवीर्य औषधि रूप में उपयोग किया जाता है! अर्थात् शरीर की अग्नि को संतुलित कर शांति और शीतलता प्रदान करती है।
आयुर्वेदिक संदर्भ श्लोक:
रावणाम्लिकया वृक्षा, शीतवीर्यं रसामृतम्।
दाहं पित्तं च संहन्ति, विषमज्वरनाशिनी॥
- अर्थात-रावण अम्लिका का रस अमृत के समान शीतल है, जो शरीर के दाह, पित्त और विषम ज्वर को शांत करता है।
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