अमृतम रावण रहस्य विशेषांक ४० वर्षों का सतत संघर्ष, अध्ययन, अनुसंधान और प्रवास तीर्थ

🔱 भूमिका —

रावण : विज्ञान, विचार और विरुद्धता का विराट स्वरूप

  1. रावण का असली रहस्य! वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और मानव दृष्टिकोण से रावण केवल एक खलनायक नहीं, बल्कि ज्ञान, संगीत, ज्योतिष और आयुर्वेद का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक था।
  2. जानिए दशानन के भीतर छिपे विज्ञान और अध्यात्म के अद्भुत रहस्य। कथावाचकों ने अपनी रोज़ी- रोटी और प्रसिद्धि के लिए रावण के चरित्र को जानवरों से भी ज़्यादा बदत्तर कर डाला!
  3. रावण रहस्य विशेषांक १००००० शब्दों से ज़्यादा और ११०० पृष्ठों में पूर्ण होगा!

  1. राहु के नक्षत्र स्वाति में जन्मे रावण के विषय पर बिना पढ़े कुछ भी गंदा या ग़लत बोलना बहुत बड़ा अपराध है! राहुदेव कभी क्षमा नहीं करेंगे!
  2. रावण को गाली देने वाले शिवा तांडव स्तोत्र की ठीक से व्याख्या भी नहीं कर पाएंगे और सुनने वाले भी राहु के प्रकोप से नहीं बच पाएंगे!

दो शब्द शिवभक्त रावण के लिए

सार्वभौम सम्राट रावण के उदात्त, पांडित्यपूर्ण और अत्यंत जटिल चरित्र को उजागर करती यह बृहद् रचना मेरे चालीस वर्षों के सतत अध्ययन और साधना का परिणाम है।

  1. हालांकि अमृतम मासिक पत्रिका, ग्वालियर के अनेक अंकों में श्री दशानन रावण के बारे में बहुत से लेख प्रकाशित किये और इसी तर्क को पढ़कर हजारों पाठकों ने रावण रहस्य विशेषांक की माँग की!

मैंने रावण को न तो नायक माना, न खलनायक — बल्कि मनुष्य का सम्पूर्ण रूप समझा।

  1. रावण केवल लंका का राजा न मानो, कोई बात नहीं— वह आविष्कारक, ज्योतिषाचार्य, रसायनज्ञ और संगीतज्ञ था।

रावण के दस मुख केवल अहंकार नहीं, बल्कि दस दिशाओं का ज्ञान थे। उसकी चुप्पी में विज्ञान था, उसका क्रोध अनुशासन का रूपक और उसका पतन मनुष्य की सीमाओं का शाश्वत उदाहरण।

  1. यह रचना उसी रावण को पुनः मानव, वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टि से देखने का प्रयास है —जहाँ मिथक नहीं, तथ्य और मनोविज्ञान बोलेगा।
  2. मैंने प्रत्येक ग्रंथ, शिलालेख और पौराणिक साक्ष्य को आधुनिक विज्ञान, खगोलशास्त्र और तंत्र के दृष्टिकोण से परखा है —ताकि “रावण” एक पात्र नहीं, एक प्रतीक बन सके —जिससे मनुष्य स्वयं को पहचान सके।
  3. यह लेखन तभी सार्थक होगा जब यह आपकी पैनी दृष्टि में भी सत्य, विवेक और संवेदना के मानकों पर खरा उतरे।
  4. किसी भी सुझाव या भूल के प्रति मैं विनम्रतापूर्वक स्वागत करता हूँ —क्योंकि सत्य के मार्ग में हर प्रश्न ही नया प्रकाश है।

नैकं मुखं न च दशैव हि तस्य मूर्तेः,

रावणः लोकविज्ञानरूपमेव।

  1. —रावण केवल दसमुख नहीं, बल्कि दस ज्ञानधाराओं का प्रतीक है। रावण के गुरु महादेव की कृपा से १० इन्द्रियों को वश करने की सीधी रावण को प्राप्त थी!
  2. ये विषय विवाद के लिए नहीं है और न मेरा उद्देश्य किसी के आराध्य को दुख पहुंचाना है! फिर भी रह गई त्रुटियों के लिए मैं स्वयं उत्तरदायी नहीं —
  3. क्योंकि सत्य का लेखन सदैव अपूर्ण रहता है और रावण उस अधूरे सत्य की ही पूर्णता है।

अशोक गुप्ता

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