अमृतम रावण रहस्य विशेषांक ४० वर्षों की सतत खोज ! रावण और राहु की रोचक कथा

🌑 रावण, राहु और Raahukey तेल — अंधकार से प्रकाश तक की यात्रा! जहाँ छाया गहराती है, वहीं ज्ञान का दीप जलता है!


  1. क्या आपने कभी सोचा है कि रावण, जो परम शिवभक्त, विद्वान और वैज्ञानिक था, फिर भी “राक्षस” क्यों कहलाया?
  2. क्यों रक्षेन्द्र रावण की विद्या, तप और विज्ञान आज भी रहस्य बने हुए हैं?
  3. क्योंकि रावण केवल रावण नहीं था — वह राहु के स्वाति नक्षत्र में जन्मा, कालसर्प-पितृदोष से प्रभावित एक असाधारण आत्मा था।

राहोः स्वात्यां गते जन्मं यो लभेत् स विशेषवान्।

अमृतत्वाभिलाषी स्यात् जगद्विज्ञानकर्तृकः॥— राहु तंत्र

  1. अर्थ — स्वाति नक्षत्र में राहु की दशा में जन्मा व्यक्ति अमरत्व की लालसा रखता है और संसार के लिए नए आविष्कार करता है।

🔹 रावण — महादेव का पुत्रवत् शिष्य

  1. भृगु और रावण संहिता में उल्लेख है कि श्री दशानन रावण का जन्म स्वाति नक्षत्र में हुआ था। यह वही नक्षत्र है, जिसे राहु नियंत्रित करता है।
  2. रावण का मन अनंत खोजों में डूबा रहता था। उसने विद्युत (लाइट) की खोज की, ग्रहों की गति का गणित लिखा और ध्वनि (शब्द) से यंत्रों को संचालित करने का रहस्य जाना।

स्वात्यां जातो दशग्रीवो विद्युत्तत्त्वं प्रबोधकः।

तेजोमयः सदा भूत्वा लोकानां विज्ञानदायकः॥

  1. रावण के भीतर विज्ञान और तंत्र, दोनों की ज्वाला जलती थी। वह केवल राजा नहीं था —वह राहु की ऊर्जा का प्रतीक था।


🔹 कालसर्प और पितृदोष का रहस्य

  1. रावण का जन्म “कालसर्प-पितृदोष” से प्रभावित योग में हुआ था। यानी सभी ग्रह राहु और केतु के बीच बँधे हुए थे।
  2. ऐसे जातक कर्मवीर, परंतु विवादग्रस्त होते हैं।वे संसार को बदलने की शक्ति रखते हैं,लेकिन उनके कार्यों को अक्सर गलत समझा जाता है।
  3. रावण निर्दोष होते हुए भी कलंकित हुआ। जैसे राहु अमृत पीकर भी ग्रहण कहलाया! वैसे ही रावण ज्ञानवान होकर भी “राक्षस” कहलाया।

कालसर्पे च जातस्य कर्मज्ञानं विवर्धते।

परं लोकोऽपि तं निन्देत् तस्य कर्मं महत्तरम्॥

🔹 तुलसीदास की भूल और वाल्मीकि की दृष्टि

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में रावण को असुर बताया। उनका उद्देश्य भक्तिभाव था, परंतु कथावाचकों ने इसका स्वरूप बदलकर रावण के प्रति गहरी घृणा पैदा कर दी! जबकि महर्षि वाल्मीकि की रामायण में रावण की विद्या, नीति और भक्ति की प्रशंसा है।

सः दशग्रीवो वेदज्ञो यः ब्रह्माणं स्तुतिं गतम्।

निन्द्यो न स धर्मज्ञः किंतु लोकदृष्ट्या दोषवान्॥

  1. अर्थात — रावण वेदज्ञ था, ब्रह्म की स्तुति करता था; वह धर्मात्मा था, दोष केवल लोक की दृष्टि में है।
  2. तुलसीदास की यह साहित्यिक भूल रावण को तो बदनाम कर गई, साथ ही आज की पीढ़ियों को राहु की छाया मानव चेतना पर भारी पड़ रही है!
  3. परंतु आज, भूल सुधारने का समय है —राहु की कृपा पुनः प्राप्त करने का समय।

🔹 राहु की अमरता की व्यथा

समुद्र मंथन के समय जब देवताओं ने राहु को अमृत न दिया, तो उसने शिव से प्रार्थना की —

अमृतं मम न दत्तं देवेभ्यो निहितं प्रभो।

किं मम भाग्यो दीनस्य? त्वं शरण्यः महेश्वर॥

  1. शिव प्रसन्न हुए, बोले —वत्स राहु, तेरे बिना सृष्टि अधूरी है। तू ग्रहों का छाया-विज्ञानी रहेगा और तुझे प्रतिदिन ९० मिनट का समय मिलेगा। यही समय राहुकाल कहलाया।दिन का वह भाग, जिसमें राहु की ऊर्जा जाग्रत होती है।

🔹 राहुकाल — जब छाया में प्रकाश जगता है

राहुकाल कोई डरने का समय नहीं, बल्कि आत्म-ज्ञान का क्षण है। इस काल में किया गया साधन, दीपदान या ध्यान मनुष्य को राहु की कृपा देता है।

राहुकाले दीपदानं तिलतेलेन यः करेत्।

सर्वदुःखविनाशाय सुखसंपद् प्रयच्छति॥— राहु तंत्रार्णव

  1. इसलिए शिव ने कहा था —राहुकाल में जो शिवलिंग पर जल, दूध, पंचामृत, इत्र या तेल अर्पित करता है, उसे राहु कभी पीड़ित नहीं करते।

🔹 अमृतम का Raahukey तेल — वही तांत्रिक सूत्र आधुनिक रूप में ऑनलाइन उपलब्ध है!

  1. प्राचीन ग्रंथों में जिस तेल का उल्लेख हुआ है —जिसमें तिल तेल, वंग भस्म, नाग भस्म, यशद भस्मऔर स्वर्ण मक्षिका भस्म सम्मिलित हो! वही परंपरा आज अमृतम ने पुनः जीवित की है Raahukey तेल के रूप में।
    यह तेल केवल त्वचा पर लगाने योग्य औषध नहीं, बल्कि एक तांत्रिक-वैज्ञानिक यंत्र है —जो राहु ग्रह की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक शक्ति में परिवर्तित करता है।

तिलादीनां समायोगः राहुकृपां प्रसाधयेत्।

योऽन्वयं रात्रिदिवसे दीपयेत् तस्य सिद्धयः॥

  1. राहु की तेल में जो सुगंध (नीलगिरी, शमी, कर्पूर) है, वह मस्तिष्क के वायु तत्व को स्थिर करती है और जब इसे दीपक में जलाया जाता है, तो वायुमंडल में निर्मित ionized particles राहु की तरंगों को संतुलित करते हैं।

🔹 राहु काल में Raahukey तेल का प्रयोग कैसे करें

  1. दीपदान के लिए: राहुकाल में पाँच दीपक जलाएं —प्रत्येक दीप में Raahukey तेल की कुछ बूँदें डालें। यह क्रिया राहु दोष, कालसर्प, पितृदोष को शांत करती है।

शिवलिंग अभिषेक से पहले: इस तेल से अपने हाथों को हल्का मसाज करें। इससे नाड़ियों की गति संतुलित होती है और ध्यान गहरा होता है।

  1. महालक्ष्मी व्रत या दीपावली पर: राहुकाल में इस तेल से दीपक जलाने पर दरिद्रता, रोग और भय दूर होते हैं।

ध्यान/योग से पहले:

  1. माथे और गले के पीछे Raahukey तेल की बूँदें लगाएँ — इससे “आज्ञा चक्र” और “विशुद्धि चक्र” सक्रिय होते हैं।

राहुकाले तिलदीपः सर्वशांत्यै प्रयोज्यते।

पितृदोषं च हन्त्याशु रुद्रकृपा प्रवर्धते॥

🔹 वैज्ञानिक दृष्टि से Raahukey तेल का रहस्य

  1. आधुनिक विज्ञान के अनुसार तिल और कर्पूर में एंटीऑक्सीडेंट वॉलटाइल कम्पाउंड्स होते हैं, जो वातावरण में मौजूद नकारात्मक आयनों को संतुलित करते हैं।
  2. नीलगिरी मस्तिष्क की विद्युत-धाराओं को शांत करती है और शमी पत्ते एंटी-रेडिएशन गुणों से भरपूर हैं।

इसलिए जब Raahukey तेल जलता है, तो वातावरण में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शुद्धि होती है।यही कारण है कि तांत्रिक ग्रंथ इसे “राहु तैल दीपक” कहते हैं।

🔹 राहु नक्षत्रों के जातक आविष्कारक और अन्वेषक

  1. राहु के तीन प्रमुख नक्षत्र हैं —आद्रा, स्वाति और शतभिषा। इनमें जन्मे जातक अमरत्व की चाह रखते हैं, और इसी चाह में विश्व को कुछ न कुछ नया दे जाते हैं।
  2. आद्रा नक्षत्र: तूफ़ान और परिवर्तन का प्रतीक
  3. हिरण्यकश्यप, कंस जैसे विज्ञानप्रिय पर विद्रोही व्यक्तित्व।
  4. स्वाति नक्षत्र: स्वतंत्र वायु —
  5. रावण, महान वैज्ञानिक और तांत्रिक योगी।
  6. शतभिषा नक्षत्र: उपचार और गुप्त विज्ञान का स्रोत —
  7. आधुनिक चिकित्सा और खगोल के अन्वेषक।

आद्रा-स्वाति-शतभिषा जाताः स्युः विज्ञानिनः सदा।

ते सर्वे कालदुःखेषु मार्गं नवं प्रयच्छति॥

  1. इसी राहु-ऊर्जा ने दुनिया को कंप्यूटर, इंटरनेट, एआई, चैटजीपीटी, गूगल, इंस्टाग्राम जैसे आविष्कार दिए। यही वह ऊर्जा है जो अंधकार से नवाचार जन्म देती है।


🔹 रावण का पुनर्जन्म — हर वैज्ञानिक में

  1. रावण केवल एक व्यक्ति नहीं, एक विचार है। हर वह मन, जो नियम तोड़कर नया बनाता है, वह रावण है — महादेव का शिष्य। वह अमरता नहीं, अमर कार्य चाहता है।

न मरणं मम लक्ष्यं तु, कर्मणाम् अमरत्वमेव मे।

रावणोऽहं तु विज्ञानं यत्र चिरं जीवति॥

🔹 निष्कर्ष : छाया में छिपा प्रकाश

राहु का अंधकार भय नहीं, प्रेरणा है। स्वाति की वायु हमें बताती है —“स्वतंत्रता ही सृष्टि का पहला नियम है।”

रावण ने राहु की छाया में प्रकाश खोजा, और आज Raahukey तेल उसी रहस्य को आपके जीवन में उजागर करता है।

राहुकाले प्रदीप्तेन तैलेन शुद्धचित्तवान्।

पायेत् पापं विनाशं च, लभते ज्ञानमद्भुतम्॥


  1. जब आप राहुकाल में दीप जलाते हैं, तो वह केवल दीपक नहीं —आपके भीतर के रावण का पुनर्जन्म होता है, जो ज्ञान से संसार को आलोकित करता है।
  2. सारांश- मुख्य विषय: रावण, राहु, स्वाति नक्षत्र, कालसर्प योग, पितृदोष, तुलसीदास की भूल, राहु काल, Raahukey तेल।
  3. राहु के स्वाति नक्षत्र में जन्मे रावण थे प्रथम वैज्ञानिक।
  4. राहुकाल में Raahukey तेल से दीपदान करने से कालसर्प, पितृदोष और राहु पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

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