साधु-संत- सन्यासी और महात्माओं का रहस्य क्या है
- मुण्डकोपनिषद् १.२.११ के अनुसार संन्यासी (Sannyāsī) कौन है? संन्यास का अर्थ है-
!!सर्वं न्यस्यति इति संन्यासी!!
- अर्थात् जो सब कुछ छोड़ देता है- देह, धन, परिवार, अहंकार, इच्छा और भय तक।
- परिक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायात्।नास्त्यकृतः कृतेन॥
- जब ज्ञानी मनुष्य देखता है कि कर्मों से आत्मसिद्धि नहीं होती, तब वह वैराग्य लेकर संन्यास ग्रहण करता है। संन्यासी वह है जिसकी मस्तिष्क तरंगें (EEG) अत्यंत स्थिर, अल्फ़ा व गामा वेव्स में होती हैं।
- वह बाहरी दुनिया के तनाव से मुक्त होकर parasympathetic nervous system को सक्रिय रखता है! जिससे शरीर में हार्मोनल संतुलन, प्रतिरक्षा शक्ति और मानसिक शांति बनी रहती है।
साधु (Sādhu)
- साधु शब्द साध धातु से बना है, जो साधना करता है। जिसने सबको साध लिया! दस इंद्रियाँ साधु के वश में होती हैं!
- साधते इति साधवः। जो व्यक्ति ईश्वर या आत्मा की साधना में रत है, वह साधु है। वह गृहस्थ भी हो सकता है। (गीता ९.३०):
अपि चेत्सुदुराचारो भक्तो मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥
- कोई पापी भी एकनिष्ठ भक्ति करता है तो वह साधु कहलाता है।
- साधु का ध्यान और जप थीटा वेव्स उत्पन्न करता है जो गहरे मानसिक विश्राम और सृजनशीलता से जुड़ा होता है
संत (Sant) की सत्ता
सत् का अर्थ सत्य, शुद्ध, परमात्मा। जो “सत्” यानी सत्य में स्थित हो गया वही “संत” है। (भागवत ११.११.२९):
संतस्ते सर्वभूतेषु स्नेहपूर्णा दयालवाः।
आत्मवत् सर्वभूतेषु समं पश्यन्ति योगिनः॥
- संत सब जीवों में ईश्वर का अंश देखकर दयालु होते हैं।
- संत का ऑक्सिटोसिन स्तर (compassion hormone) अत्यधिक होता है, जिससे वे स्वभाव से प्रेमपूर्ण और शांत होते हैं।
महात्मा (Mahātmā)
महान् आत्मा यस्य सः महात्मा
- अर्थात् जिसकी आत्मा व्यापक, स्वार्थरहित और सार्वभौमिक चेतना से जुड़ी हो। गीता (७.१९)
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥
- महात्मा की चेतना “यूनिवर्सल माइंड” से जुड़ी होती है। उनके ब्रेन न्यूरॉन्स “एम्पैथिक रेज़ोनेंस” में काम करते हैं — जैसे किसी का दर्द वे तुरंत महसूस कर लेते हैं।
अघोरी (Aghorī)
- अघोर का अर्थ है -जो घृणा, भय या द्वैत से रहित हो! कट्टर विचारधारा से बाहर सहज सरल! जल की तरह विचरल बहने वाला!
- अघोरी का मार्ग शिव के अघोर रूप से जुड़ा है! जहाँ मृत्यु, शव, या मल भी भय का नहीं बल्कि ब्रह्म का रूप है। अघोर मन्त्र:
ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः।
सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्ते रुद्र रूपेभ्यः॥
- अघोरी भय और विकर्षण की सीमा तोड़ता है इससे एमिग्डाला (amygdala) यानी भय केंद्र निष्क्रिय होता है। वह “भय-शून्य चेतना” में जीता है, जो मानसिक रोगों से पूरी मुक्ति है।
अवधूत (Avadhūta)
अव यानि ऊपर! धूत यानि झाड़ देना।
- जिसने संसार की सभी मर्यादाएँ, संस्कार, द्वैत, नियम झाड़ दिए हों वह अवधूत कहलाता है।
अवधूतगीता (१.२):
न मे बन्धो न मोक्षो मे भयमेवा न मे कुतः।
आत्मा चैतन्यमात्रोऽहं अवधूतः शान्त एव हि॥
- अवधूत की अवस्था “नो माइंड स्टेट” कहलाती है! जहाँ Default Mode Network (स्व-चिंतन क्षेत्र) शांत हो जाता है, केवल शुद्ध जागरूकता रह जाती है।
परमहंस (Paramahaṁsa)
- हंस अर्थात = विवेकी जीव, जो दूध से पानी अलग कर ले।परमहंस वह आत्मा जो परम सत्य और माया में भेद कर लेती है।(योगवासिष्ठ २.१८):

परमहंसो हि यो ज्ञानी ब्रह्मैवाहं न संशयः।
सर्वत्र समदृष्टिश्च सर्वेषां गुरुरेव सः॥
- परमहंस मस्तिष्क की गामा वेव्स (40Hz) में निरंतर स्थिर होता है। यह संयुक्त मस्तिष्क चेतना(whole-brain coherence) की स्थिति है, जहाँ व्यक्ति और ब्रह्म एक अनुभव होते हैं।
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