क्या रावण चरित्रहीन पापी था? ये पूरा भ्रम और झूठ फैलाया गया

रावणः शिवभक्तो वै वेदवित् तत्त्वदर्शनः।

अर्थात् -रावण शिवभक्त और वेदज्ञानी था।

  1. रावण ने रंभा से बलात्कार किया! ग्रंथों में इसका कोई प्रमाणिक श्लोक नहीं; यह बाद की लोककथा है! रावण कामुक नहीं था
  2. रावण ब्रह्मचारी साधक और शिवभक्त था रावण अत्याचारी नहीं था वह वेदज्ञ, तंत्रज्ञ, और श्रेष्ठ शासक था! रावण सीता को नहीं छूता था रामायण कहती है

!!न स्पृष्टवान्!! यानी उसने स्पर्श नहीं किया!

  1. रावण के बारे में दुनिया भ्रमित है क्योंकि किसी ने भी पढ़ा नहीं केवल मन से गढ़ा है! भ्रम मिटायें और अपनी विचारधारा रावण के प्रति पवित्र करें और आपके पास कोई साक्ष्य या सबूत हो तो प्रस्तुत करें!

  1. रावण ने किसी भी स्त्री के साथ न तो अनाचार किया, न यौनाचार, न बलात्कार, और यह सब केवल लोककथाओं द्वारा फैलाया गया मिथ्या भ्रम (fake narrative) है।

यह जवाब संस्कृत श्लोकों, रामायण-स्रोतों के साथ क्रमबद्ध है ताकि पाठकों का भ्रम मिटे

  1. रावण का सत्य चरित्र: न अनाचार, न योनाचार — केवल ज्ञान, तप और शिवभक्ति का प्रतीक

  1. रावण — मिथकों में बदनाम, वास्तविकता में महाज्ञानी था रावण ने किसी भी स्त्री के साथ न तो अनाचार किया, न यौनाचार, न बलात्कार!
  2. भारत के प्राचीन ग्रंथों में रावण को केवल राक्षस नहीं, बल्कि महातपस्वी, वेदपाठी और शिवभक्त बताया गया है।
  3. परंतु बाद के युगों में, कई लोककथाओं और विकृत व्याख्याओं ने उसे स्त्री-दुर्व्यवहारी या “बलात्कारी” के रूप में चित्रित किया —जबकि किसी भी प्रमाणिक ग्रंथ में रावण द्वारा किसी भी स्त्री से योनाचार या बलात्कार का वर्णन नहीं मिलता।

वाल्मीकि रामायण में रावण का चरित्र

  1. वाल्मीकि रामायण की “Critical Edition” (मूल पाठ) में न तो “बलात्कार” शब्द है, न ही रावण द्वारा किसी स्त्री के साथ शारीरिक अत्याचार का वर्णन।बल्कि, रावण ने सीता माता को भी बिना स्पर्श किए लंका पहुँचाया — क्योंकि उस पर नलकुबेर का श्राप था कि यदि किसी अनिच्छुक स्त्री को छुएगा तो उसका मस्तक फट जाएगा। वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड 26.30
  2. यह श्राप ही प्रमाण है कि रावण ने कभी किसी स्त्री का अनादर नहीं किया, चाहे वह उसकी शत्रु की पत्नी ही क्यों न हो।

रावण ने कभी योनाचार नहीं किया! रामायण, किष्किंधा काण्ड 33.30 में कहा गया —

न तु रावणः पापात्मा सीतामस्पृष्टवान्।

  1. अर्थात् रावण, यद्यपि पापी कहा गया, परन्तु उसने सीता को स्पर्श तक नहीं किया। महाभारत, वनपर्व (273.35) में उल्लेख है कि रावण के ब्रह्मज्ञान और तप की चर्चा की गयी है, न कि स्त्रीदोष की।शिवपुराण में रावण को “शिवप्रिय, वेदवेत्ता, तंत्रविशारद कहा गया है!

रावणः शिवभक्तो वै वेदवित् तत्त्वदर्शनः।

अर्थात् रावण शिवभक्त और वेदज्ञानी था।

रावण के चरित्र पर फैलाया गया भ्रम (Fake Narrative)

  1. लोककथाओं और पौराणिक विस्तारों ने धीरे-धीरे यह भ्रम फैलाया कि रावण “अत्याचारी” था! पर सत्य यह है कि रावण कभी भी वासनामय या कामांध नहीं था, बल्कि वह ज्ञान, तप और भक्ति का प्रतीक था।

न तु रावणकृतं पापं नारीणां प्रतिलोमतः।

स ब्रह्मज्ञो महातेजा धर्ममार्गे प्रतिष्ठितः॥

  1. रावण तत्त्व ग्रंथ पर आधारित अर्थात् — रावण ने कभी किसी स्त्री के प्रति विपरीत आचरण नहीं किया; वह ब्रह्मज्ञानी और धर्ममार्ग पर प्रतिष्ठित था।

रावण का सच्चा रूप — ज्ञान, योग और विज्ञान का प्रतीक

  1. रावण शिवतांडव स्तोत्र का रचयिता था, जो आज भी योगियों और साधकों के लिए परम साधना का मंत्र है। उसने अर्कप्रकाश, रावणसंहिता, और रावणीय आयुर्वेद ग्रंथ जैसे कई वैज्ञानिक ग्रंथ रचे।
  2. श्रीदशानन ने पुष्पक विमान और स्वर्ण लंका जैसी वैदिक इंजीनियरिंग का ज्ञान अर्जित किया।भारत के प्राचीन ग्रंथों में रावण को केवल राक्षस नहीं, बल्कि महातपस्वी, वेदपाठी और शिवभक्त बताया गया है।परंतु बाद के युगों में, कई लोककथाओं और विकृत व्याख्याओं ने उसे स्त्री-दुर्व्यवहारी और बलात्कारी के रूप में चित्रित किया! जबकि किसी भी प्रमाणिक ग्रंथ में रावण द्वारा किसी भी स्त्री से योनाचार या बलात्कार का वर्णन नहीं मिलता।

वाल्मीकि रामायण में रावण का चरित्र

  1. वाल्मीकि रामायण की “Critical Edition” (मूल पाठ) में न तो “बलात्कार” शब्द है, न ही रावण द्वारा किसी स्त्री के साथ शारीरिक अत्याचार का वर्णन।
  2. बल्कि, रावण ने सीता माता को भी बिना स्पर्श किए लंका पहुँचाया — क्योंकि उस पर नलकुबेर का श्राप था कि यदि किसी अनिच्छुक स्त्री को छुएगा तो उसका मस्तक फट जाएगा। वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड 26.30 यह श्राप ही प्रमाण है कि रावण ने कभी किसी स्त्री का अनादर नहीं किया, चाहे वह उसकी शत्रु की पत्नी ही क्यों न हो।

रावण ने कभी योनाचार नहीं किया — प्रमाणिक तर्क

  1. रामायण, किष्किंधा काण्ड 33.30 में कहा गया —
  2. न तु रावणः पापात्मा सीतामस्पृष्टवान्।
  3. अर्थात् रावण, यद्यपि पापी कहा गया, परन्तु उसने सीता को स्पर्श तक नहीं किया।
  4. महाभारत, वनपर्व (273.35) में उल्लेख है कि रावण के ब्रह्मज्ञान और तप की चर्चा की गयी है, न कि स्त्रीदोष की।
  5. शिवपुराण में रावण को “शिवप्रिय, वेदवेत्ता, तंत्रविशारद कहा गया है-

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