बहुत कम लोग जानते हैं कि लक्ष्मी और महालक्ष्मी में गहरा अंतर है।

  1. लक्ष्मी अस्थिर धन और महालक्ष्मी बनाम स्थिर समृद्धि का रहस्य
  2. साधारण लक्ष्मी को “चंचला” कहा गया है अर्थात वे अस्थिर स्वभाव की हैं, एक स्थान पर लंबे समय तक नहीं टिकतीं।
  3. जबकि महालक्ष्मी स्थिरता, वैभव, तेज और दिव्य समृद्धि की अधिष्ठात्री हैं! जहाँ उनका वास हो जाए, वहाँ धन केवल आता ही नहीं, बल्कि स्थाई रूप से टिकता भी है।

  1. प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि

चंचला लक्ष्मीर्नराणां, स्थिरा भवति महालक्ष्मीः। लक्ष्मी क्षणभंगुर होती हैं, पर महालक्ष्मी स्थिर और अक्षय होती हैं।

  1. अमृतम कालसर्प विशेषांक में बताया गया है कि दीपावली की रात महालक्ष्मी पूजन केवल धन नहीं, बल्कि स्थिर समृद्धि के लिए किया जाता है।
  2. अगर महालक्ष्मी अर्थात स्थाई धन दौलत की कामना है, तो वह कठिन परिश्रम, बुद्धि, विवेक, योग्य और से क्रम से कर्म करते हुए ही प्राप्त होगी।
  3. लक्ष्मी तंत्र,कशिव सहिंता ओर हरिवंशपुराण के अनुसार आप जानकार हैरान हो जायेंगे कि लक्ष्मी जी श्रीहरि विष्णु की पत्नी हैं और इन्हें ही चँचला कहते हैं।
  4. श्री महालक्ष्मी 24 घण्टे, 24 दिन, 24 महीने या 24 साल तक किसी के यहां स्थाई रूप से वास करती है।
  5. इस लेख बहुत अदभुत और रोचक जानकारी मिलेगी। लक्ष्मी और महालक्ष्मी दोनो देवियों में बहुत अंतर है...
  6. हमारे सदगुरु श्री श्री भवानी नंदन यति जी महाराज, महामंडलेश्वर, हथियाराम सिद्धपीठ, तिरुपति एवं बनारस बताते हैं कि लक्ष्मी श्रम से आती है, शर्म से नहीं।
  7. यदि महालक्ष्मी यानि स्थिर लक्ष्मी की कामना है, तो महादेव की पूजा उपासना करना जरूरी है।
  8. सदगुरु कहते हैं कि एक बार घर में महालक्ष्मी का आगमन हो गया, तो २ से ३ पीढ़ी तक आपका साथ नहीं छोड़ेगी और अगर आने वाली संतान योग एवं शिवभक्त है, तो सात जन्म तक भी महालक्ष्मी घर से नहीं जाती। यह सिद्ध शिव गुरुओं का वचन है कभी खाली नहीं जायेगा।
  9. सभी लक्ष्मी भक्त गाते हैं कि- सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता, जय लक्ष्मी माता..यह लक्ष्मी जी की आरती का अंतरा जगत प्रसिद्ध है।
  10. लक्ष गुणों की देवी महालक्ष्मी....मां आदिशक्ति का रूप है। माया रूपी जगत में महामाया ही मान मर्यादा बढ़ाती है।
  11. धन देने वाली महालक्ष्मी संसार को भौतिक सुख प्रदान करती है अर्थात वैभव, विलास, संपन्नता, अर्थ, द्रव्य, रत्न तथा धातुओं की अधिष्ठात्री देवी को महालक्ष्मी' कहते हैं।
  12. इस देवी के व्यापक प्रभाव क्षेत्र को देखकर ही कहा गया है, महालक्ष्मी के साथ लक्ष गुण रहते हैं।
  13. ब्रह्मांड का नियंत्रण करनेवाले पुरुषतत्त्व प्रतिरूपों अर्थात त्रिदेवों में विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है। उन्हीं जगतपालक विष्णु की शक्ति को महालक्ष्मी की संज्ञा दी गयी।
  14. लक्ष्मी और महालक्ष्मी में फर्क....वेद पुराण, उपनिषदों का गहराई से अध्ययन करें, तो दुनिया हैरान हो जाएगी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि श्रीहरि की पत्नी लक्ष्मी जी और महादेव की शक्ति महालक्ष्मी दोनो में एक विशेष अंतर यह है कि लक्ष्मी जी उपासना से अस्थाई धन आता है ओर खर्च होकर चला जाता है।

  1. महादेव की शक्ति महालक्ष्मी...स्थिर समृद्धि, स्वर्ण, बैंक बैलेंस और ऐश्वर्य के लिए ईश्वरी की साधना करना लाभकारी होता है।
  2. ज्ञात हो कि दक्षिण भारत में भगवान शिव को ईश्वर तथा महालक्ष्मी को ईश्वरी कहकर संबोधित करते हैं।
  3. यहां जितने भी शिवालय हैं, वहां महालक्ष्मी ईश्वरी देवी में रूप में स्थापित हैं।
  4. गलत जानकारी फेलाने और भ्रम के कारण उत्तर भारत के अधिकांश लोग लक्ष्मी की साधना कर धन की तंगी से जूझते रहते हैं।
  5. विष्णु-पत्नी के रूप में लक्ष्मी उनके साथ सर्वत्र पूजित है। कहीं भी चित्रों में अथवा मूर्त्तियों में देखें तो हमें लक्ष्मी विष्णु अथवा लक्ष्मी-नारायण की युगल छवि दिखायी देगी। सही भी है कि जो देवता पालन करता है, उसकी शक्ति (पत्नी) अवश्य ही भौतिक वस्तुओं की पालन-पोषण में जो कुछ भी रोज उपयोग की वस्तुएं जैसे अन्न, वस्त्र, धन आदि प्रयुक्त होते हैं, वह सब लक्ष्मी की ही देन है।
  6. लक्ष्मी साधना के फल...उत्तर भारतीय अनुयायी विष्णु पत्नी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, तो धन तो आता है लेकिन रुकता या जुड़ता नहीं है। इन्हीं लक्ष्मी को शास्त्रों में चंचल या चंचला कहा गया है।
  7. महालक्ष्मी का श्रीयंत्र में निवास है...जबकि महालक्ष्मी को चिरस्थाई देवी बताया है। श्रीयंत्र में महालक्ष्मी का ही वास है। इनकी रक्षा के लिए
  8. सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, ६४ योगिनी, १६ मातृकाएं, दश महाविद्या, नव चंडीकाएं, अष्ट सिद्धियां, सप्तघृत मातृकाएं, कुलदेवी, काली आदि भोलेनाथ ने गणिकाओं के रूप में नियुक्त कर रखी हैं।
  9. ज्यादातर भक्तगण लक्ष्मी जी की आरती गाते हैं कि जो किसी ब्राह्मण द्वारा रचित है। जबकि महालक्ष्मी जी मूल आरती भाष्य व शास्त्रों में अनेक हैं।
  10. मां महालक्ष्मी की मूल संस्कृत आरती....
  11. महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि!
  12. हरि प्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे!!
  13. पद्मालये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं च सर्वदे!
  14. सर्वभूत हितार्थाय, वसु सृष्टिं सदा कुरुं!!
  15. महालक्ष्मी के अभाव में भौतिक- जगत का पालन अकल्पित हो जाता है। इस प्रसंग में यह भी स्मरण रखना चाहिए कि तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) उस व्यक्ति (साधक) पर विशेष कृपालु होते हैं, जो महादेव की शक्ति महालक्ष्मी की शक्तियों के साथ स्मरण करता है।
  16. वैसे, किसी भी देवी की साधना करके उसके देवता की और किसी भी देवता की साधना करके उसकी देवी की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है, तथापि सरलतम और संगत विधान यही माना जाता है कि अभीष्ट देवी-देवताओं की युगलरूप में आराधना करनी चाहिए। इसका प्रभाव विशेष रूप से अधिक और अनुकूल उपनिषदों में भी बताया है।
  17. परिश्रम से ही रत्न प्राप्ति....
  18. अतः स्थाई धन की इच्छा रखने वालों के लिए महालक्ष्मी के साथ महादेव का स्तवन-पूजन विशेष लाभकर माना जाता है।
  19. १४ रत्न और दरिद्रा या ज्येष्ठा...देवताओं और दैत्यों के संयुक्त रूप से किये गये प्रयास के फलस्वरूप 'समुद्र मंथन' की कथा लोक-विश्रुत है। उसी समुद्र मंथन में चौदह रत्न सागर से निकले थे।
  20. उन चौदह रत्नों में से एक रत्न लक्ष्मी की बड़ी बहिन ज्येष्ठा भी थी, जो घोर गरीबी की कारक है।
  21. रत्नों के बंटवारे में भोलेनाथ को विष मिला, जिसे पीकर नीलकंठ कहलाए।
  22. साथ में लक्ष्मी जी की ज्येष्ठ बहिन को भी महादेव को अपनी शरण में रखना पड़ा।
  23. सिद्ध शिव साधक बताते हैं कि महादेव की भक्ति करने वालों के यहां कभी भी शिवजी दरिद्रा यानि गरीबी को अपने भक्त के घर नहीं जाने देते, जिससे शिव साधक अनेक प्रेषणी, समस्याओं से बचा रहता है और एक दिन स्थाई संपत्ति का स्वामी बनकर प्रसिद्धि पाता है।
  24. भ्रम को तोड़े...
  25. वस्तुत: आदिदेव महादेव की आदिशक्ति ही समस्त संसार की स्वामिनी है और इस प्रकार वह अनेक रूपों में सांसारिक वस्तुओं की व्यवस्था करती रहती है।
  26. यह आवश्यक नहीं है कि महालक्ष्मी की आराधना से ही धन की प्राप्ति हो। इनकी सहयोगी शक्तियां जैसे भैरवी, काली, चामुंडा, कंकाली, महाकाली, दक्षिणी और यक्षिणी- जैसी देवियां भी संतुष्ट होने पर भक्त को विपुल संपदा प्रदान कर देती हैं।
  27. समुद्र मंथन : श्रम का प्रतीक
  28. ऐसा लगता है कि समुद्र मंथनवाला वृतांतएक प्रतीकात्मक कथा है। समुद्र मंथन से चौदह रत्नों का निकलना वस्तुतः श्रम की ओर संकेत करता है। भाव यह है कि यदि मानव समुदाय जाति, धर्म, वर्ण और वर्गभेद को त्याग कर एक हो जाए, तो उसमें इतनी प्रचंड शक्ति है कि समुद्र को भी मथ सकता है।
  29. महासागर के अनंत गर्भ -में छिपी हुई संपदा को प्राप्त कर सकता है। देवता- दैत्य अपने सम्मिलित प्रयास से ही सागर की तलहटी में सुरक्षित १४ रत्नों को प्राप्त कर दरिद्रा को दूर भगा सकता है।
  30. इस कथानक पृष्ठभूमि मानव को श्रम की प्रेरणा देती है। भाव यह है कि जो व्यक्ति श्रम करेगा, वही की रत्न प्राप्त कर सकता है।
  31. विश्वव्यापी लक्ष्मी...
  32. महालक्ष्मी का प्रभाव क्षेत्र विश्वव्यापी है। जीवन के किसी भी क्षेत्र की ओर देखें, लक्ष्मी से विरत नहीं हो सकते। भोजन, वस्त्र, आवास, लोकाचार, सामाजिक नियमनिर्वाह, दान-पुण्य, अतिथि सेवा, देवाराधन, साधु-सत्कार, यज्ञ, तीर्थयात्रा, परोपकार, सेवासहायता सबका आधार धन है।
  33. - वैभव की दात्री है, उसकी कृपा प्राप्त लिए साधक को श्रमशील होना जरूरी है।
  34. - लक्ष्मी का प्रभाव क्षेत्र अति व्यापक है। चाहिए कि उसका विश्वव्यापी भाव है। जीवन के किसी भी क्षेत्र की ओर , लक्ष्मी से विरत नहीं हो सकते।
  35. भीजन, वस्त्र, आवास, लोकाचार, नियम- निर्वाह, दान-पुण्य, सेवा, देवाराधन, साधु-सत्कार, तीर्थयात्रा, परोपकार, सेवा-सहायता का आधार धन है। धन का ही दूसरा रूप महालक्ष्मी अर्थात उसकी कृपादृष्टि है।
  36. किसके पास रहती है - महालक्ष्मी...
  37. दान की महिमा इतनी अधिक है कि उसकी प्रशंसा में सैंकड़ों पृष्ठों का प्राचीन नाहित्य प्राप्त होता है।
  38. पशुओं को भोजन कराने से महालक्ष्मी की अथाह कृपा होने लगतती है। क्योंकि ये बिना झोली के फकीर होते हैं।
  39. परहित कार्य मानव के लिए इसीलिए आवश्यक बताये गये हैं कि ये सब पुण्य कार्य हैं। इनके द्वारा मनुष्य लोकहित करता है।
  40. अगर महालक्ष्मी रुष्ट हो जाए तो बड़े-बड़े भूपालों को क्षणभर में राह का भिखारी बना देती है।
  41. लक्ष्मी चंचला के अवगुण...आज यहां कल वहां राजा से से राजा होने की अगणित घटनाएं इस तथ्य का प्रमाण है कि विष्णु पत्नी लक्ष्मी सदा एक स्थान पर, एक व्यक्ति के समीप न रहकर, चलायमान रहती है। इसका एक सहज प्रमाण है- मुद्रा।
  42. मुद्रा अर्थात रुपये-पैसे का सिक्का, लक्ष्मी का साक्षात स्वरूप माना जाता है। अपने व्यावहारिक जीवन में हम देखते हैं कि अन्य वस्तुएं अपेक्षाकृत अधिक समय तक हमारे पास ठहरती हैं, जबकि मुद्रा हाथ में आती ही चली जाती है।
  43. चाहे जितनी अधिक आमदनी हो, पर हाथ में आयी हुई मुद्रा यथावत सुरक्षित न रहकर, तुरंत कहीं-न-कहीं चली जाती है।
  44. बैंक, बीमा, क्रय-विक्रय, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, प्रसाधन, मनोरंजन तथा ऐसे ही अन्य मार्गों से वह तुरंत हमारे हाथ से चल देती है।
  45. भले ही हम अपने को धन-संपन्न मानते रहें, पर वास्तविकता यह है कि लक्ष्मी का चांचल्य प्रतिक्षण हमें भ्रमित किये रहता है।
  46. यही कारण है कि आदि ग्रंथों में जहां लक्ष्मी पूजा का विधान मिलता है, वहां उसकी कृपा- अनुकूलता और स्थायित्व की याचना के भी संकेत दिये गये हैं।
  47. लक्ष्मी आती तो सभी के पास है, पर अधिकांश को अपनी माया से चौंधिया कर चली जाती है।
  48. लक्ष्मी अस्थिर होने के कारण ही उसे यह संज्ञा दी गयी है। वह कहीं स्थिर होकर नहीं रहती। राजा को रंक लक्ष्मी ही बनाती है, जबकि महालक्ष्मी व्यक्ति को रंक से राजा बनाने की क्षमता रखती है।

लक्ष्मी तंत्र साधना ग्रंथ के अनुसार...मात्र महादेव की अर्धांगनी महालक्ष्मी ही स्थिर होकर वह उन्हीं के पास रहती है, जिन पर शिवजी का कृपा- भाव हो जाता है।

  1. अमृतम पत्रिका, चित्रगुप्त गंज, नई सड़क, ग्वालियर। संपादक..अशोक गुप्ता कालसर्प विशेषांक के लेखक

दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन का रहस्य

दीपावली केवल लक्ष्मीजी का दिन नहीं यह महालक्ष्मी, धनदाता और राहु ऊर्जा के संगम की रात है।

  1. गणेश धनदाता और राहु का प्रतीक माने जाते हैं। दीपावली की पूजा में राहु के स्वाति नक्षत्र का विशेष प्रभाव माना गया है। राहु ऊर्जा अदृश्य धन, संचित संपत्ति और अचानक होने वाले लाभों से जुड़ी मानी जाती है! इसीलिए दीपावली की रात राहु काल में तेल का दीपक जलाना प्राचीन तांत्रिक परंपरा का हिस्सा है।

दीपक जलाना क्यों जरूरी है-

दीपक में जलती लौ से उत्पन्न इन्फ्रारेड हीट वेव्स और नेगेटिव आयन्स वातावरण को शुद्ध करते हैं। राहु काल में तेल के दीपक की लौ मनोवैज्ञानिक रूप से अदृश्य संभावनाओं को सक्रिय करने का प्रतीक मानी जाती है। यही कारण है कि इसे धन वृद्धि और मानसिक एकाग्रता से जोड़ा गया है।

  1. दीपावली की पूजा विधि (राहु काल में महालक्ष्मी पूजन)
  2. घर के मुख्य द्वार पर 8 दीपक जलाएं (राहु दिशा — दक्षिण-पश्चिम की ओर)।
  3. दीपक में Rahukey Oil या तिल तेल का प्रयोग करें।
  4. पहले गणेश जी, फिर महालक्ष्मी और फिर राहु देव का ध्यान करें।
  5. “ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
  6. धन स्थिरता की प्रार्थना करें — केवल धन की नहीं, स्थायी समृद्धि की कामना करें।

ॐ ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।

स्थिरा भव गृहेषु मम नित्यं शुभदा भव।

राहु स्वाति नक्षत्रे दीपज्योतिः प्रबोध्यते॥

हे महालक्ष्मी! मेरे घर में स्थिर होकर निवास करें। दीपक की इस ज्योति से राहु स्वाति नक्षत्र की ऊर्जा जागृत होती है और धन का प्रवाह स्थिर बनता है।)

गुप्त तांत्रिक संकेत — रावण और महालक्ष्मी

प्राचीन तंत्र ग्रंथों में उल्लेख है कि रावण ने महालक्ष्मी सिद्धि का रहस्य स्वाति नक्षत्र में ही प्राप्त किया था।

वह रात जब लौ हवा में बिना बुझी स्थिर रहती है, उसे धन ज्योति रात्रि कहा जाता है। उसी ज्योति से रावण ने स्वर्ण नगरी की स्थापना की थी।

आधुनिक विज्ञान और ऊर्जा सिद्धांत

दीया जलाना केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, ऊर्जा का एक्टिवेशन पॉइंट है। स्वाति नक्षत्र के दौरान वायुमंडलीय प्रेशर और नमी का संतुलन ऐसा होता है कि लौ ज्यादा देर तक स्थिर रहती है। यह स्थिर लौ ही स्थिर समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।

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