रावण और अष्टलक्ष्मी का गुप्त सूत्र मंत्र महोदधि ग्रंथ में कहा गया है यः लक्ष्मी रहस्यम् जानाति, स न कदाचित् दरिद्र भवति। जो अष्टलक्ष्मी के रहस्य को जानता है, वह कभी निर्धन नहीं रहता।
- बिना लक्ष्य, उद्देश्य और मेहनत संकल्प के लक्ष्मी कभी आती नहीं है! काम से ही दाम मिलते हैं! टोने -टोटके से कभी ग़रीबी नहीं मिटती!
- अगर सिर्फ धन लक्ष्मी से ही काम चलता ,तो टॉपर लोग गरीब और सेठ लोग ज्ञानवान न होते! लक्ष्मी जी सिर्फ तिजोरी में नहीं! घर के व्यवहार में भी टिकती हैं!
- अष्टलक्ष्मी के रहस्य: जब रावण बना धन तंत्र का खोजी सम्राट
- श्रीदशनन का मानना था कि धन लक्ष्मी के बिना जीवन अधूरा है, पर विद्या और धैर्य लक्ष्मी के बिना वह स्थायी नहीं। धान्य लक्ष्मी भूख मिटाती हैं, पर आदि लक्ष्मी आत्मा को तृप्त करती हैं।
- विजया लक्ष्मी विजय देती हैं, पर गज लक्ष्मी बताती हैं कि विजय में विनम्रता होनी चाहिए। यही कारण है कि अष्टलक्ष्मी की उपासना को बहुआयामी समृद्धि का मार्ग कहा गया है। रावण सहिंता में अष्टलक्ष्मी पूजन का रहस्य गूढ़ संदेश छुपा है!
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
- हे महालक्ष्मी, आपको नमन है- आप ही धन, धैर्य, ज्ञान और विजय की अधिष्ठात्री हैं। हमारे जीवन को भी अपने आठों रूपों से समृद्ध कीजिए।
- अष्ट ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री आठ तरह की खोज रावण ने की थी-
- आप जानकार हेरान हो जाएँगे कि अष्टलक्ष्मी के रहस्यों को सर्वप्रथम रावण ने खोज था! मंत्र महोदधि, श्रीमहालक्ष्मी साधना आदि ग्रंथों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि धन-दौलत की इच्छा रखने वालों को कभी रावण की आलोचना नहीं करना चाहिए!
लक्ष्म्याः स्वरूपं रावणोऽवगच्छत्,
अष्टधा शक्तिं च परिमृज्य भूमौ।
निन्दां करोति यः तस्य न स्थिरा स्यात्,
श्रीशक्तिरूपा जननी स्वभावात्॥
- रावण ने अष्टलक्ष्मी की शक्ति को पृथ्वी की आठ धाराओं में देखा। जो इसका उपहास करता है, लक्ष्मी उससे दूर हो जाती है।
क्यों जुड़ा रावण का नाम अष्टलक्ष्मी से?
- रावण एक प्रकांड वेदज्ञ, तांत्रिक और ज्योतिषाचार्य था। उसने लक्ष्मी के आठ स्वरूपों को आठ दिशाओं और आठ प्रकार की ऊर्जाओं से जोड़ा। रावण केवल लंका का राजा और योद्धा ही नहीं, बल्कि धन–तंत्र और अष्टलक्ष्मी साधना का भी सबसे बड़ा जानकार था।
यः रावणं निन्दति न तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत्।
- जो व्यक्ति रावण की निंदा करता है, उसकी लक्ष्मी स्थिर नहीं रहती। रावण ने ही सर्वप्रथम अष्टलक्ष्मी तंत्र और बीज सूत्रों का गूढ़ रहस्य समझा और उन्हें राजदरबार में लागू किया इसीलिए लंका सोने की नगरी कही गई।
रावण के तांत्रिक रहस्य — बीज मंत्र और त्रिकोण🔺शक्ति
- रावण ने श्रीमहालक्ष्मी सिद्धि के लिए !!ह्रीं!! बीजमंत्र और त्रिकोण मंडल का प्रयोग किया। कहा जाता है कि वह स्नान, यज्ञ और ध्यान से पहले जल पर त्रिकोण बनाकर ह्रीं लिखता था, ताकि जल ऊर्जावान होकर अष्टलक्ष्मी को आकर्षित करे।
!!ह्रीं ह्रीं श्रीं नमोऽस्तु लक्ष्म्यै!!
- हे अष्टलक्ष्मी! इस बीज ध्वनि से आपकी ऊर्जा का आह्वान करता हूँ। यह वही प्रक्रिया है जो आज “वॉटर एनर्जी” और वाइब्रेशन थेरेपी के रूप में वैज्ञानिक अध्ययनों का हिस्सा भी बन चुकी है।
वैज्ञानिक ऊर्जा का सिद्धांत!
- आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी ऊर्जा के विभिन्न रूप आपस में रूपांतरित होते हैं। रावण का अष्टलक्ष्मी सिद्धांत इसी ऊर्जा संरक्षण के नियम से मेल खाता है:
- ज्ञान → धन बनता है
- साहस → अवसर बनते हैं
- पोषण → स्वास्थ्य बनता है
- विजय → स्थिरता लाती है यानि अष्टलक्ष्मी कोई केवल देवी रूप नहीं, बल्कि जीवन की ८ ऊर्जा व्यवस्थाएं हैं।
- अष्टलक्ष्मी का रूप रावण का सिद्धांत ऊर्जा का प्रतीक
- आदि लक्ष्मी धर्म की रक्षा कर आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ाती है!
- धान्य लक्ष्मी भूमि और अन्न देकर पोषण ऊर्जा दायिनी है!
- धैर्य लक्ष्मी योद्धा मनोवृत्ति साहसिक ऊर्जा
- गज लक्ष्मी ऐश्वर्य और पशुधन भौतिक ऊर्जा
- संतान लक्ष्मी वंश वृद्धि जैविक ऊर्जा
- विजया लक्ष्मी युद्ध विजय प्रेरक ऊर्जा
- विद्या लक्ष्मी ज्ञान और विद्या मानसिक ऊर्जा
- धन लक्ष्मी भौतिक संपन्नता देकर आर्थिक ऊर्जा शक्ति में वृद्धि करती है!
- रावण ने ही सर्वप्रथम अष्टलक्ष्मी तंत्र और बीज सूत्रों का गूढ़ रहस्य समझा और उन्हें राजदरबार में लागू किया — इसीलिए लंका सोने की नगरी कही गई।
अष्टलक्ष्मी: समृद्धि के आठ रूप और संपन्नता का दिव्य रहस्य
- मात्र श्री महालक्ष्मी केवल धन की देवी नहीं, जीवन के हर आयाम की शक्ति हैं। आठ रूप, जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा गया है, यह दर्शाते हैं कि समृद्धि सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता, साहस, ज्ञान, अन्न, परिवार और विजय भी है। जो व्यक्ति इन रूपों की उपासना करता है, उसके जीवन में आर्थिक, मानसिक और आध्यात्मिक समृद्धि एक साथ बढ़ती है।
आदि लक्ष्मी -धर्म और मोक्ष की रक्षक
- आदि लक्ष्मी वह मूल शक्ति हैं जो साधक को धर्ममार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं और उसे मोक्ष के मार्ग में स्थिर करती हैं। वे साधक के भीतर की दिव्यता को जागृत करती हैं।
- धर्मो मूलं सर्वसुखस्य, आदिलक्ष्मीः तदाधारः। धर्म ही सभी सुखों का आधार है और आदि लक्ष्मी उसी धर्म की रक्षक हैं।
धान्य लक्ष्मी — अन्न और पोषण की अधिष्ठात्री
- जीवन में अन्न ही आधार है-धान्य लक्ष्मी हमें सिखाती हैं कि सच्ची समृद्धि वह है जहाँ कोई भूखा न रहे। उनका पूजन अन्न, कृषि और स्वास्थ्य में वृद्धि का प्रतीक है।
अन्नं ब्रह्मेति वदन्ति, धान्यलक्ष्मीः तद् स्वरूपिणी।
अन्न ही ब्रह्म है! धान्य लक्ष्मी उसी ब्रह्म स्वरूप में पोषण देती हैं।
धैर्य लक्ष्मी-साहस और पराक्रम की देवी
- जब जीवन कठिन हो, तो धैर्य लक्ष्मी आंतरिक शक्ति देती हैं। वे शस्त्र धारण कर साधक को प्रेरित करती हैं कि कोई भी बाधा अडिग साहस से पार की जा सकती है।
धैर्यं सर्व विजयस्य मूलं, लक्ष्मी तत्र स्थिरा भवेत्।
विजय का मूल धैर्य है और धैर्य में ही लक्ष्मी निवास करती हैं।
गज लक्ष्मी -पशुधन और ऐश्वर्य की देवी
- समुद्र मंथन से प्रकट हुईं गज लक्ष्मी को हाथियों ने अभिषेक किया। वे धन और वैभव के साथ संरक्षण और करुणा का संदेश देती है!
धनं न केवलं भोगाय, परोपकाराय गजलक्ष्मीः।
- धन का प्रयोग केवल उपभोग के लिए नहीं, दया और संरक्षण के लिए भी है।
संतान लक्ष्मी- परिवार और वंश की रक्षिका
- वे संतति, वंश और परिवार में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। उनका पूजन गृहस्थ जीवन में स्थिरता और प्रेम को बढ़ाता है!
कुटुम्बं समृद्ध्यते यस्य, सन्तानलक्ष्मीः तत्र स्थिता।
- जहाँ परिवार में प्रेम और वंश की वृद्धि होती है, वहाँ संतान लक्ष्मी का वास होता है।
विजया लक्ष्मी -सफलता और विजय की अधिष्ठात्री
- विजया लक्ष्मी कठिन संघर्षों में साधक को विजय और सकारात्मक परिणाम प्रदान करती हैं। युद्ध हो या प्रतियोगिता — उनका आशीर्वाद सफलता सुनिश्चित करता है।
विजया सर्वकार्येषु, लक्ष्मी विजयप्रदा भवेत्।
सभी कार्यों में विजय देने वाली शक्ति विजया लक्ष्मी हैं।
विद्या लक्ष्मी- ज्ञान और कला की देवी
- विद्या लक्ष्मी हमें सिखाती हैं! सच्ची और स्थायी समृद्धि केवल ज्ञान और कला से आती है। उनका पूजन अज्ञान और भ्रम का नाश करता है।
ज्ञानं सर्व समृद्धीनां बीजम्, विद्यालक्ष्मीः तदाधारम्।
- ज्ञान सभी समृद्धियों का बीज है और विद्या लक्ष्मी उसी की अधिष्ठात्री हैं।
धन लक्ष्मी- वैभव और भौतिक संपदा की देवी
- धन लक्ष्मी सोने-चाँदी और भौतिक वैभव की प्रतीक हैं। वे गृहस्थ जीवन में सम्पन्नता, प्रतिष्ठा और रौनक बढ़ाती हैं।
धनं यत्र धर्मे नियोज्यते, तत्र धनलक्ष्मीः स्थिरा भवेत्।
- जहाँ धन का उपयोग धर्म में होता है, वहाँ धन लक्ष्मी स्थिर रहती हैं।
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