अमृतम रावण रहस्य विशेषांक वैदिक, वैज्ञानिक जानकारी ४० वर्षों से एकत्रित की गई है! सब कुछ शास्त्रीय है
🔱 रावण का वैज्ञानिक-आध्यात्मिक रहस्य
- वैदिक ग्रंथों में वर्णित वंश, शिव-दीक्षा, वरदान और पतन का अद्भुत विश्लेषण)
राहु नक्षत्र में जन्मे रक्षेंद्र रावण: कालसर्प-पितृदोष के कारण एक गलत समझा गया महाज्ञानी जिसकी खोज पर पर्दा डाल दिया!

- रावण को सामान्यतः “राक्षस-राज” कहा जाता है, लेकिन यह केवल आधा सत्य है।वास्तव में वह शिव-दीक्षित ब्राह्मण, वैदिक वैज्ञानिक, अद्वितीय ज्योतिषी और रक्षेन्द्र (Rakṣendra) कहलाने योग्य महान व्यक्तित्व था।
- महाभारत, अनुशासन पर्व के अनुसार घमण्ड के कारण लोगों का सारा फण्ड, पैसा, प्रसिद्धि सब नष्ट हो जाता है! लेकिन रावण ज्ञानी था, अहंकारी नहीं!
- अहंकारो हि देवानां नाशायास्यति नित्यशः। अर्थात -अहंकार ही देवतुल्य पुरुषों के पतन का कारण बनता है।किंतु रावण अहंकारी नहीं, अपितु गर्वित ज्ञानयोगी था — जिसने ब्रह्म, शिव और सूर्य के रहस्यों पर अनोखा शोध किया।
रावण: शिव-दीक्षित आठ शिष्यों में से एक
- महादेव द्वारा पूरे ब्रह्माण्ड में अब तक केवल आठ जीवित प्राणियों को प्रत्यक्ष दीक्षा प्राप्त है —इनमें हैं: रावण, भगवान परशुराम, नंदी, महर्षि अगस्त्य, महर्षि पिप्पलाद, भृगु पुत्र शुक्राचार्य, भूतनाथ वेताल और दत्तात्रेय। इन्हीं में से एक “रावण” को स्वयं भगवान शंकर ने “रावण” नाम प्रदान किया।
- ‘राव’ धातु का अर्थ है “गर्जना करना” और ‘ण’ प्रत्यय द्वारा बना “रावण” — “जो अपने नाद से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को गुंजायमान कर दे।”शिवपुराण (रुद्रसंहिता) —
शिवस्य शब्दात् रावणो नामाभवत्।
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☀️ नाम का वैज्ञानिक अर्थ — “रा” और “वण”
- ‘रा’ का अर्थ है सूर्य (प्रकाश, चेतना) वण’ का अर्थ है वरण या ग्रहण करना। इस प्रकार रावण वह है —जो सूर्य-तत्त्व को आत्मसात कर ले, और सम्पूर्ण ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को अपने नियंत्रण में लाए।
रावण ने सूर्य, चन्द्र, राहु-केतु सहित सभी ग्रहों के प्रभावों का गहन अध्ययन किया। उसने रावण सहिंता, अर्क प्रकाश और ताण्डव रहस्य जैसे ग्रंथों में ग्रह-विज्ञान का वर्णन किया है।
🌿 वंश परंपरा — ब्रह्मा से पुलस्त्य तक
- ब्रह्मा के मानस-पुत्रों में से एक थे पुलस्त्य ऋषि, जो सृष्टि के “मानस-ऊर्जा तत्त्व” के प्रतिनिधि हैं।
- पुलस्त्य के पुत्र ऋषि विश्रवा (Vishravas) हुए — जिनकी वंश परंपरा में दैवी और आसुरी दोनों प्रवृत्तियाँ विद्यमान थीं। महाभारत, वन पर्व (274.14)
स जज्ञे विश्रवा नाम तस्यात्मार्धेन वै द्विजः।अर्थात् — पुलस्त्य ऋषि से विश्रवा मुनि का जन्म उनके आत्मांश से हुआ।
🌸 विश्रवा ऋषि की पत्नियाँ — दो दिशाओं की वंश परंपरा
प्रथम पत्नी इलविला (या देववर्णिनी) इनसे उत्पन्न हुआ कुबेर (वैश्रवण) — जो यक्षों के अधिपति बने। कुबेर धन के देवता माने गए, परंतु पूर्ण देवत्व प्राप्त नहीं कर सके। यक्ष जाति को “मानव और देव के मध्य स्थिति” कहा गया है।
शिवपुराण, रुद्रसंहिता यक्षत्वं तेन संप्राप्तो वैश्रवणो धनाध्यक्षः।
द्वितीय पत्नी कैकसी (या पुष्पोत्कटा)
इनसे उत्पन्न हुए — रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा। महाभारत, वन पर्व (275.7–8)
पुष्पोत्कटायां जज्ञाते द्वौ पुत्रौ राक्षसेश्वरौ।
कुम्भकर्णदशग्रीवौ बलेनाप्रतिमौ भुवि॥
मालिनी जनयामास पुत्रमेकं विभीषणम्॥
🪔 रक्षेन्द्र का जन्मस्थान — विषरिख (नोएडा क्षेत्र)
- वैदिक भूगोल के अनुसार ऋषि विश्रवा का आश्रम यमुना नदी के समीप विषरिख ग्राम में था, जो आज के नोएडा (NCR) क्षेत्र में स्थित है। यही स्थान रावण का जन्म और शिक्षाग्रहण स्थल माना गया है। स्थानीय परंपराओं में यह विश्वेश्रवा तीर्थ नाम से प्रसिद्ध है।
- 🔥 रावण का तप, वरदान और ब्रह्मज्ञान बाल्यावस्था से ही रावण असाधारण बुद्धिमान और तपस्वी था। उसने वर्षों तक तप कर ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया —रामायण, उत्तरकाण्ड (7.10.33)
देवानां दानवानां च गन्धर्वोरगरक्षसाम्।
नाहं भयमपास्यामि मनुष्येभ्यो विशेषतः॥
- अर्थात — देव, दानव, गंधर्व, नाग, राक्षस किसी से भय नहीं होगा; पर मनुष्य को मैंने गिना ही नहीं।
🛕 शिव-भक्ति और शिव-ताण्डव स्तोत्र की रचना
- रावण भगवान शिव का परम भक्त था। कैलास पर्वत उठाने की कथा वास्तव में महाकाली शक्ति-साधना का प्रतीक है। शिव ने जब उसे दबाया, तब रावण ने दसों मुखों से स्तुति की — जो बाद में शिव ताण्डव स्तोत्र के रूप में प्रसिद्ध हुई।
- नीचे चित्र में हस्तलिखित शिवतांडव स्तोत्र १३५ साल से भी पुराना है! इसे परम पूज्य श्री श्री श्याम मोहन मिश्रा (ऋतम) द्वारा हमारे पूज्य बाबा श्री श्री विश्वनाथ जी हलवाई को लिखकर दिया था! आज भी हमारे पूरे परिवार को रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र कंठस्थ है!

शिव ताण्डव स्तोत्र
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले।
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्॥

🏰 स्वर्ण लंका और पुष्पक विमान
- रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से लंका और पुष्पक विमान प्राप्त किए। कुछ ग्रंथों में इसे “अधिग्रहण” कहा गया है, किंतु वैदिक ग्रंथों में उल्लेख है कि रावण ने कुबेर की अनुमति से शासन किया। सुंदरकाण्ड (5-9-8)
पुष्पकं तत् विमानं च कुबेरात् प्रतिलब्धवान्।
रावण का पुष्पक विमान “मन-गति से चलने वाला यंत्र” था —यह वैदिक युग की साइको-एनर्जेटिक मशीन की अवधारणा मानी जाती है।
रावण के वैदिक ग्रंथ और आविष्कार
- शिव रांडव स्तोत्र — ताण्डव-ऊर्जा विज्ञान का प्रतीक।
- अर्क प्रकाश — सूर्य चिकित्सा व प्रकाश-ऊर्जा विज्ञान।
- मंत्रमहोदधि — दुर्लभ तांत्रिक और ग्रह साधना ग्रंथ।
- ताण्डव रहस्य — ब्रह्म-स्पंदन (Cosmic Vibration) का शास्त्र।
- रावण सहिंता — ग्रह, नाड़ी, कालसर्प और पितृदोष रहस्य।
रावण का जन्म नक्षत्र और ग्रहयोग
- भृगु संहिता, रावण संहिता, और सप्तऋषि नाड़ी सहिंता (वेदहीश्वरम कोइल, दक्षिण भारत) के अनुसार —रावण का जन्म राहु के स्वाति नक्षत्र में हुआ था।
- वह कालसर्प और पितृदोष से पीड़ित था, इसलिए उसका जीवन रहस्यमय और उथल-पुथल से भरा रहा।
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विश्लेषण
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