क्या रक्षेन्द्र रावण के साथ अन्याय हुआ! क्योंकि ज्ञानाधिपति के त्याग को किसी ने खोजने की कोशिश ही नहीं की अमृतम रावण रहस्य विशेषांक में जाने दुर्लभ जानकारी

राहु-रावण संबंध
राहोर्नाम महान् तेजा रावणो राहुसन्निभः!
तमोभूतं प्रकाशाय साधकाय नमोऽस्तु ते!!— धूमेश्वर तंत्र
बाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड में लिखा गया
न जातु कामान्न भयान्न लोभात् ।
धर्मं त्यजेञ्जीवितस्यापि हेतु: ॥
- यानि-अर्थ: धन, भय या इच्छा के कारण कभी धर्म का त्याग न करें।
- बाल्मीकि रामायण के अनुसार परम शिव भक्त थे- महर्षि बाल्मीकि! वाल्मीकि जयंती पर सच्चा संदेश और शुभकामनाएं
४० सालों के निरंतर नियमित अध्ययन, अनुसंधान, लेखन, तीर्थ यात्राएँ, पर्वतों का प्रवास और प्रयास के फलस्वरूप ११०० पृष्ठों का रावण रहस्य विशेषांक तैयार हो सका!

- हमारा उद्देश्य किसी की आलोचना नहीं, अपितु सत्य उजागर करना है! पाठक गण अपना स्नेहिल आशीर्वाद और मार्गदर्शन देकर कृतार्थ करें!अशोक अमृतम
- करबद्ध प्रार्थना है कि बिना पढ़े और साक्ष्य के रावण को कलंकित या बदनाम न करें!रावण के ज्ञान और शिव उपासना को समझें — 👉 रावण को गाली देना बंद करें! क्योंकि दशानन भारत का पहला वैज्ञानिक था।
👉 रावण ने जो त्रेतायुग में लिखा, वही आज आधुनिक विज्ञान का मूल है। रावण की सच्चाई को युगों से छिपाया गया
रामो विग्रहवान् धर्मः — पर रावणो विग्रहवान् ज्ञानः!
राम धर्म का रूप हैं, रावण ज्ञान का स्वरूप
- रावण जिसे कथावाचकों ने राक्षस कहा, लेकिन बाल्मीकि रामायण आदि अन्य शास्त्रों ने ब्रह्मऋषि माना! इसीलिए किसी भी कथा या मंच पर वाल्मीकि रामायण का उदाहरण नहीं दिया जाता!
ध्यान से पढ़ें
सही नाम था दसराह और बना दिया दशहरा भारत के कथावाचक विद्वानों ने बड़ी चतुराई से विजयदशमी पर्व दसराह यानी दस दिशाओं का पूजन पर्व को दशहरा में बदलकर रावण दहन करना दिया!
- आज रावण दहन करने वालों का ऐश्वर्य भी दहन हो रहा है यही राहु का प्रकोप, कालसर्प दोष और कुदृष्टि है!
स्मरण रहे कि मुहूर्त चिन्तामणि के मुताबिक पंचमी और दशमी तिथि पूर्ण और विजयी तिथि कही जाती हैं! इन तिथियों में कोई भी कार्य आरंभ करने से कभी रुकता नहीं है और न कोई हानि होती है!
- वाल्मीकि रामायण को अगर ध्यान से पढ़ा जाए, तो कहीं भी रावण को नीच, दुष्ट या अधर्मी नहीं कहा गया। श्री दशानन ने कभी अनाचार, योनाचार या बलात्कार नहीं किया। सीता को छुआ तक नहीं, केवल अग्नि परीक्षा के समय यह सत्य स्वयं प्रकट हुआ। वाल्मीकि रामायण (उत्तरकाण्ड) में उल्लेख है
न सीतां स्पृष्टवान् रावणो धर्मपरायण!!
- अर्थात — रावण धर्मप्रिय था! सीता को कभी स्पर्श नहीं किया।

रावण – राहु का अवतार, ज्ञान का प्रतीक
- रावण का जन्म राहु के स्वाति नक्षत्र में हुआ यह नक्षत्र राहु के अधीन होता है। इसलिए जो लोग रावण का अपमान करते हैं, वे राहु के प्रकोप से कभी नहीं बच पाते। ९ ग्रहों में एक राहु अकेला ही मात्र धन प्रदाता ग्रह है!
- रावण को गाली देना, राहु को गाली देना है और राहु वही शक्ति है जो छाया को प्रकाश में ओर ग़रीबी को अमीरी में बदलती है!
रावणो रावणो नित्यं, ज्ञानविज्ञानसंयुतः।
राहोः सुतो महातेजाः, मोहान्धकारनाशकः॥ महाकाली तंत्र
- अर्थात -रावण सदा ज्ञान और विज्ञान से युक्त रहा! वह राहु का तेजस्वी अंश था, जो अंधकार (अज्ञान) को मिटाने आया था।
- रावण का विज्ञान और ज्योतिष- जो आज की तकनीक से भी आगे था! रावण संहिता में ग्रहों की स्थिति, राहु-केतु और तंत्र विज्ञान का वर्णन ऐसा है जिसे आज का खगोलशास्त्र भी मानता है।
- पुष्पक विमान से लेकर लौह धातु शोधन तक — रावण ही भारतीय एयरोनॉटिक्स का प्रथम ज्ञाता था। महाकाली तंत्र में लिखा है —
राहोः कालं विजानीयात्, तत्र योगं समाधिना।
- अर्थात — जो राहुकाल को जानकर ध्यान तथा दीपदान करता है, वही जीवन के रहस्यों पर विजय पाता है।
- क्यों आज लोग राहु और रावण दोनों से पीड़ित हैं! क्योंकि हमने रावण को नहीं, ज्ञान को गाली दी! ख़ुद के अहंकार को नहीं पहचाना। आज हमने रावण के ज्ञान को भी तिरस्कृत कर दिया। जो रावण की निंदा करते हैं, वे राहु ग्रह के अशुभ प्रभाव में फँस जाते हैं क्योंकि राहु और रावण दोनों ही माया और मोक्ष के द्वार हैं।
राहुतेलेन दीपं दद्यात्, रावणं च नमेत सः।
तमोगुणं विनिर्दह्य, ज्योतिर्मार्गं स गच्छति॥ राहु महातंत्र
- राहु काल में रोज़ राहु तेल से दीपदान कर रावण और शिवजी को प्रणाम करने वाला व्यक्ति अंधकार से प्रकाश की ओर जाता है!
निवेदन
- रावण की प्रतिष्ठा बहाल होनी चाहिए! रावण ब्राह्मण था! आयुर्वेदाचार्य था! शिवभक्त था और तंत्र का महागुरु था। वह “असुर” नहीं — “असुर्यः” था, अर्थात सूर्य से भी तेजस्वी ज्ञान का प्रतीक।
- रक्षेन्द्र रावण ज्ञान, अहंकार और शक्ति के संतुलन का प्रतीक बताया गया है।आइए इसे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से समझें
रावण का वैज्ञानिक अर्थ
वैज्ञानिक दृष्टि से, ध्वनि एक तरंग (wave) है, जो ऊर्जा का रूप है। रावण का प्रतीक इसलिए है – Sound Frequency और Cosmic Vibration का नियंत्रक।
रवण शब्द का व्युत्पत्ति- संस्कृत में रावण शब्द “रु धातु से बना है — जिसका अर्थ है गर्जना करना, ध्वनि उत्पन्न करना।
- अर्थात् रावण = जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कंपन और ध्वनि के माध्यम से ऊर्जा का संचार करे।यही ध्वनि-तत्व (Sound Element) नादब्रह्म कहलाता है — नाद ही ब्रह्म है।
रावण के दस सिरों का रहस्य
- रावण के दस मुख का अर्थ 10 दिशाएँ नहीं, बल्कि मानव मस्तिष्क की 10 प्रमुख चेतन परतें हैं।प्रत्येक सिर एक गुण का प्रतिनिधित्व करता है

१-काम (Desire)
२- क्रोध (Anger)
३- लोभ (Greed)
४- मोह (Attachment)
५- मद (Pride)
६-मात्सर्य (Jealousy)
७- बुद्धि (Intelligence)
८- विवेक (Discrimination)
९- संस्कार (Memory)
१०- अहंकार (Ego)
- महर्षि वाल्मीकि ने रावण को केवल विजेता नहीं, बल्कि “विज्ञान का मूर्त रूप” बताया। रावण के वंश में कोई छल या अधर्म नहीं, केवल ज्ञान, तप और अनुशासन था।
- वैज्ञानिक रूप से, यह Brain’s 10 Cognitive Layers का प्रतीक है, जो भावनात्मक और बौद्धिक नियंत्रण दर्शाता है।
रावण – एक खगोल वैज्ञानिक
- रावण रावण संहिता का रचयिता था, जिसमें ग्रहों की गति, ध्वनि और ऊर्जा के संबंध का वर्णन मिलता है। वह “राहु-केतु” और नाक्षत्रीय प्रभावों का प्रथम शोधकर्ता था।
शिवतांडव स्तोत्र में प्रयुक्त ध्वनियाँ -जटा, गले, लम्बिता!
- ये सभी सोनिक वेव्स और वाइब्रेशनल एनर्जी की भाषा हैं।
रावण का आध्यात्मिक अर्थ
- शिव का परिपूर्ण भक्त रावण केवल शक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि भक्ति और तांत्रिक साधना का चरम उदाहरण था। रावण
- ठं बीज मंत्र (धूम्र तत्त्व) शिव के क्रियाशील रूप धूमेश्वर से संबंधित है यही राहु का तांत्रिक स्वरूप है।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले!
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुंगमालिकाम्!! शिवताण्डवस्तोत्रम् (रावण रचित) यह श्लोक बताता है कि रावण की चेतना ब्रह्मांडीय लय में तल्लीन थी।



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