शनि की जिससे भी ठनी वो महाधनी एक दिन कंगाल हो जाता है! इसलिए शनि, अपनी जनी यानी मेहरारू या पत्नी से कभी तनातनी न करें! जाने शनि, रही और रावण के रहस्य
विज्ञान और तंत्र का संगम
एक अद्वितीय वैज्ञानिक व उपनिषद से साभार विज्ञान, ऊर्जा और विवेक के तीन स्तंभ- शनि, राहु और रावण

- शनि Serotonin / धैर्य हार्मोन, संयम, अनुशासन, चेतना और स्थिरता का प्रेरक!
- राहु Pineal Gland अंतर्ज्ञान, जागरण संतुलन बनाये!
- रावण तंत्र-मस्तिष्क तरंग संतुलन ऊर्जा नियंत्रण करने वाला!
- रावण ने इन तीनों के मिलन से आकाशीय विज्ञान का सूत्र तैयार किया!
शनि = समय, राहु = चेतना, रावण = साधना।
समय और न्यूरो-एनर्जी के संचालक-शनिदेव
- धैर्य, निर्णय और नींद को नियंत्रित करने वाले शनि को केवल दंडदाता कह देना अज्ञान है।आधुनिक विज्ञान में शनि का प्रभाव मानव मस्तिष्क के Serotonin व Melatonin हार्मोन पर माना गया है! बृहदारण्यक उपनिषद् (4.4.5) अनुसार
यथाकर्म यथाश्रुतं भवति। जैसा कर्म, वैसा फल।
- शनि वही ब्रह्म-ऊर्जा हैं जो कर्म” को “फल में रूपांतरित करती है यानी ब्रह्मांडीय न्याय की जीवंत प्रणाली।
- शनि की गति धीमी है क्योंकि वे संतुलन के वैज्ञानिक हैं! हर भाव में वे स्थायित्व, अनुशासन और आत्मपरीक्षण का संचार करते हैं। इसलिए जब भी शनि गोचर में परिवर्तन करते हैं, व्यक्ति के जीवन में पुनर्जागरण अर्थात रीसेट शुरू होता है! जैसे कंप्यूटर में सिस्टम अपडेट।


Pineal Gland चेतना का ग्रह है- राहु
राहु कोई राक्षस नहीं, बल्कि अदृश्य आवेगों का प्रतीक है। माण्डूक्य उपनिषद् के अनुसार
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
- मन ही बंधन और मुक्ति दोनों का कारण है।वैज्ञानिक दृष्टि से राहु Pineal Gland (तीसरी आँख) को सक्रिय करता है, जो Intuition, Vision और Higher Consciousness का केंद्र है।
राहु का कार्य
- भ्रम तोड़ना और बुद्धि को विस्तृत करना है।इसलिए जब राहु और शनि साथ हों, तो यह Shadow to Shine योग बनाता है!
अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा के कारक राहु-शनि
राहुः शत्रुं न पश्यन्ति शनिना सह संस्थितः।
छायायुग्मं तु तद्विद्धि तत्त्वज्ञानप्रदं शुभम्॥
- अर्थात्-शनि और राहु साथ हों तो यह विनाश नहीं, बल्कि आत्मज्ञान का योग बनता है।

ब्रह्म विज्ञान का दशमुख योगी-श्री दशानन रक्षेन्द्र रावण
- रावण केवल लंकेश्वर नहीं, बल्कि आयुर्वेद और ग्रहतंत्र के वैज्ञानिक थे। उन्होंने रावण संहिता, कुमार तंत्र और रावणीय चिकित्सा में बताया कि राहु और शनि मनुष्य की आंतरिक चेतना को सक्रिय करने वाले ग्रह हैं।
रावणो रावणो नित्यं, ज्ञानविज्ञानसंयुतः।
शनि राहु समायुक्तो, कालतत्त्वं निरूपयेत्॥
- रावण सदा ज्ञान-विज्ञान से युक्त रहा; शनि और राहु के साथ मिलकर उसने काल-तत्व का रहस्य समझाया। महाकाली तंत्र में भी कहा गया है —
काले काले महाकाले, राहुशनि सहायताम्।
- जब समय कठिन हो, तब राहु और शनि महाकाली के साथ मिलकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
- १०० की एक बात यही है कि शनि पर उसकी माँ छाया और उसकी पत्नी यानी देशी भाषा में शनि की जनी का आशीर्वाद है! जिससे भी शनि ठनी वो कभी धनी नहीं बन पाया!
- घनी आबादी वाले क्षेत्र को शनि क्षण भर में वीरान बना देते हैं! राहु से अग्नि की ख़ास दोस्ती है!
- परम शिव भक्त और महादेव के शिष्य महर्षि पिप्पलाद शनिदेव के गुरु हैं! इनका पूरा परिवार महात्यागी है! पिप्पलाद के पपीता महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियां दान कर दी थी, जिससे वज्र बनाकर देवताओं ने दानवों से युद्ध जीता था!
- शनि की कुदृष्टि से नरवर के राजा नाल कंगाल हो गए थे! जयपुर घराना राजा नल का ही वंशज है! राजा नल के बारे में विस्तार से जानने के लिए brainkey.in गूगल पर सर्च करें!
- राजा नल की पत्नी दमयन्ती दमोह की रहने वाली थी! मल्लेश्वरी, टपकेश्वर नाम से देश में सभी स्वयंभू शिवलिंग राजा नल की खोज है!
- शनि एक राशि में ढाई साल तक रहते हैं! गोचर में शनि जिस राशि में होते हैं उसकी एक राशि पहले और एक राशि आगे तक साढ़ेसाती होती है!
- जन्मपत्रिका में शनि जिस भी भाव में होते हैं, उससे समाधियों शुभदायक होते हैं यानी शनि यदि किसी भी राशि के धन स्थान पर हों, तो जातक के पास कभी पैसे की किल्लत नहीं आती!
शनि भय नहीं, वरदान हैं!
- शनिदेव और राहु जातक के जीवन को जीवंत कर देते हैं-शनि और राहु को लेकर जो भय फैला है, वह भ्रम है! जानिए कैसे महर्षि पिप्पलाद के शिष्य शनिदेव असल में न्याय, स्थिरता और आध्यात्मिक उन्नति के प्रतीक हैं।
सूर्य और छाया पुत्र
शनिश्चरः छायासुतः कर्मफलप्रदः सदा। (ब्रह्मवैवर्त पुराण)
- अर्थात् — शनिदेव छाया देवी के पुत्र हैं और सृष्टि में प्रत्येक जीव को उसके कर्मों का फल देने वाले देवता हैं।
- १०० की एक बात यही है —शनि पर उनकी माँ “छाया” का आशीर्वाद है, और पत्नी यानी शनि की जनी का संयम। शनि केवल मेहनत और नैतिकता से धन देते हैं, चालाकी या छल से नहीं।
राहु और शनि – अंधकार, अहंकार के नाशक
- शनि और राहु दोनों ही छाया ग्रह हैं, पर यह अंधकार नाशकारी नहीं, रूपांतरकारी है। राहु तांत्रिक ग्रंथ के अनुसार
राहुः शत्रुं न पश्यन्ति शनिना सह संस्थितः।
छायायुग्मं तु तद्विद्धि तत्त्वज्ञानप्रदं शुभम्॥
- जब राहु और शनि एक साथ हों, तो यह अशुभ नहीं, बल्कि आत्मज्ञान देने वाला योग बन जाता है। राहु जहाँ भ्रम देता है, वहीं शनि उसमें अनुशासन जोड़ देता है।
- राहु अग्नि का दर्प है, शनि धैर्य का रूप। दोनों मिलकर भीतर की अंधेरी गुफ़ाओं में प्रकाश पैदा करते हैं।
शिव उपासक महर्षि पिप्पलाद
- ज्ञान के मूर्तिमान स्वरूप शनि के गुरु हैं महर्षि पिप्पलाद जो स्वयं महादेव के शिष्य और ऋषि दधीचि के परिवार से हैं।पिप्पलाद का वंश त्याग का प्रतीक है! दधीचि ने अपनी हड्डियाँ दान दीं, जिससे वज्र बना और देवताओं ने असुरों पर विजय पाई।शिव महापुराण में लिखा है कि
पिप्पलादो महाभागः शनिनं शिक्षयन्नृणाम्।
धैर्यं संयममार्गं च, तेन लोकान् समुद्धरेत्॥
- अर्थात-गुरु पिप्पलाद ऋषि ने शनिदेव को संयम और धैर्य का मार्ग सिखाया, जिससे वे लोकों को उठाने वाले देव बने — गिराने वाले नहीं।
शनि का फल, वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय गणित
- शनि की वजह से इंसान के जीवन, कर्म और अनुशासन में वृद्धि होती है! सफलता धीरे पर स्थायी शनि की देन है!
पंचम भाव में स्थित शनि
- बुद्धि और ध्यान में गहराई संतुलित निर्णय क्षमता प्रदान करते हैं! राहु-शनि युति भ्रम से ज्ञान की ओर यात्रा! आत्मसंयम की परीक्षा! शनि धन भाव में सत्कर्म से स्थायी धन दिलाता है! छल से हानि और बर्बादी निश्चित है!
- शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहते हैं। उनका प्रभाव धीमा पर गहरा होता है — जैसे लोहे को आग में तपाकर सोना बनाया जाए।
राजा नल की कथा – शनि का न्याय, न कि क्रोध
- नलोपाख्यान (महाभारत) में वर्णन है कि राजा नल महान, धर्मात्मा और न्यायप्रिय थे — परंतु शनि की दृष्टि से वे कंगाल हो गए। लेकिन यह दंड नहीं था — यह अनुभव की दीक्षा थी।
नल अहं त्वां परिक्ष्यन्ते, न दण्डं दातुमागतः।
(महाभारत, वन पर्व 72.31)
- अर्थात् — नल! मैं तुझे दंड देने नहीं, तेरा धैर्य परखने आया हूँ और जब नल ने धैर्य नहीं छोड़ा, तब शनि ने उन्हें धन, राज्य और गौरव सब लौटा दिया।
शनिदेव के 5 दुर्लभ रहस्य
- शनि का वाहन कौआ नहीं, विवेक है।
- कौआ केवल प्रतीक है सतर्कता का।
- शनि का रंग काला नहीं, गहन नील (इंडिगो) है।
- यह ध्यान और अंतर-जागृति का रंग है।
- शनि व तंत्र में मूलाधार से सहस्रार तक का सेतु हैं।
- नीचे से उठने वाली कुंडलिनी को स्थिर करते हैं।
- शनि का दिन शनिवार नहीं, संयमवार कहा गया है।
- राहु शनि के साथ हो तो यह ‘Shadow to Shine’ योग कहलाता है।
शनि अशुभ नहीं, शुभ हैं
शनैश्चरः शुभं दद्यात्, कर्मयोगं विचक्षणम्।
भयभीता न भवेयुः, धर्ममार्गे स्थिताः सदा॥
- भय नहीं, भरोसा रखो! धर्म और संयम के मार्ग पर चलने वाले को शनिदेव से कभी भय नहीं — बल्कि वरदान मिलता है।
शनि-राहु के कष्टों से मुक्ति का उपाय-
- रोज़ राहु काल में महादेव शिव का ध्यान करें! संभव हो, तो Raahukey तेल के ५ दीपक जलाकर पंचतत्व को अर्पित करें!
- शनि भय नहीं, कर्म का दर्पण हैं। राहु भ्रम नहीं, जागरण का माध्यम हैं। दोनों मिलकर हमारे भीतर छिपे प्रकाश को बाहर लाते हैं।
- शनिदेव हमें सिखाते हैं-धीरे चलो, लेकिन सच्चे चलो। शनि और राहु की मित्रता ही जीवन का संतुलन है! अंधकार और ज्ञान का एक अद्भुत संगम।
- रावण, राहु और शनि — तीनों ग्रहण के स्वामी, परंतु ज्ञान के ज्ञाता हैं-
- लोग रावण को केवल राक्षस, शनि राहु को क्रूर और बुरा मानते हैं, परंतु ये तीनों ही महाज्ञानी, शिवभक्त, आयुर्वेदाचार्य और ग्रहतंत्र के परम विशेषज्ञ थे। आज अधिकांश लोग दशानन को कलंकित करने के कारण राहु, कालसर्प तथा शनि की साढ़ेसाती से परेशान हैं!
- लंकाधिपति रावण ने मंत्र महोदधि, रावण संहिता, कुमार तंत्र, रावणीय चिकित्सा और रावण तंत्र सार जैसे अनेक ग्रंथों में शनि और राहु के रहस्यों का विस्तार से वर्णन किया।
- शनिदेव — न्याय और समय के अधिपति- शनि यानी काल के नियामक। वे जो देते हैं, वह कर्म के अनुरूप होता है। बृहदारण्यक उपनिषद् (4.4.5) में कहा गया है —
यथाकर्म यथाश्रुतं भवति।
- अर्थात — मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है। शनि उसी कर्मफल के वितरण अधिकारी हैं। इसलिए डर नहीं, सम्मान और संयम शनिदेव का सबसे बड़ा पूजन है।
- विज्ञान और चेतना का अंधकारमय रहस्य है- राहु - राहु को छाया ग्रह कहा गया है, लेकिन यह मस्तिष्क के मस्तक भाग (Pineal Gland) से जुड़ा ग्रह है। माण्डूक्य उपनिषद् के अनुसार
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
- अर्थात मन ही बंधन और मोक्ष दोनों का कारण है।राहु मस्तिष्क के भ्रम और ज्ञान के बीच का सेतु है। जब राहु शुभ होता है, तो व्यक्ति वैज्ञानिक, दार्शनिक और ज्ञानी बनता है।
रावण और शनिदेव
- एक दुर्लभ कथा रावण संहिता तंत्र खंड में मिलती है जब रावण ने शनिदेव को लंका में बंदी बनाया, तब शनि ने कहा! हे दशमुख! मैं न्याय का प्रतीक हूँ, यदि तूने मुझे बाँधा, तो तेरा विवेक बंध जाएगा।
रावण ने शनि को मुक्त कर दिया और कहा- तुम न्याय हो, मैं ज्ञान। जब न्याय और ज्ञान मिलेंगे, तब ही विश्व संतुलित रहेगा।इसलिए रावण ने शनिदेव और राहु दोनों के तंत्रों को महाकाली उपासना के साथ जोड़ा।
रावणो रावणो नित्यं, ज्ञानविज्ञानसंयुतः।
शनि राहु समायुक्तो, कालतत्त्वं निरूपयेत्॥
- रावण सदा ज्ञान और विज्ञान से युक्त रहा; शनि और राहु के साथ मिलकर उसने कालतत्व (समय-सिद्धि) का निरूपण किया।
काले काले महाकाले, राहुशनि सहायताम्।
रावणं पालयेन्नित्यं, शिवकृपाप्रसादतः॥ महाकाली तंत्र
- जब काल कठिन हो, तब राहु और शनि महाकाली के साथ मिलकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
- शनि का प्रभाव Serotonin और Melatonin हार्मोन पर होता है — जो धैर्य और नींद को नियंत्रित करते हैं।
- राहु Pineal Gland और Third Eye Activation से संबंधित है — जो Intuition और Imagination बढ़ाता है।
- रावण का तंत्रज्ञान इन्हीं दो शक्तियों के संतुलन का अभ्यास है — तंत्र और विज्ञान का संगम।
- शनि और राहु डरने के ग्रह नहीं हैं — ये विवेक और विज्ञान के संरक्षक हैं। इसलिए भय नहीं, प्रयोग करो
- रावण ने इन ग्रहों के सूक्ष्म रहस्यों को महाकाली साधना से जोड़ा और यही कारण है कि लंका जैसे साम्राज्य को उन्होंने आकाशीय विज्ञान से आलोकित किया। रक्षेन्द्र रावण के रहस्य brainkey. in पर पढ़ें
शनि सिखाते हैं — धीरे चलो, पर सच्चे चलो।
राहु सिखाते हैं — सोचो, पर स्वतंत्र रहो।
रावण सिखाते हैं — ज्ञान को साधना से जोड़ो।
शनैश्चरः शुभं दद्यात्, कर्मयोगं विचक्षणम्।
- जो सत्य और संयम के मार्ग पर चलता है, उसके लिए शनि भय नहीं, वरदान हैं।
राहु काल में दीपदान का रहस्य (आयुर्वेदिक उपाय)
- प्राचीन तंत्रों में कहा गया है कि प्रतिदिन राहु काल में Raahukey तेल से ५ दीपक जलाने पर मन की अशांति, भ्रम और भय दूर होता है। यह दीपक पंचतत्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को संतुलित करता है।

🔮 निष्कर्ष: अंधकार नहीं, ऊर्जा है
शनि, राहु और रावण तीनों डर नहीं, दिशा हैं।
ये सिखाते हैं —
“भय नहीं, प्रयोग करो।
ज्ञान नहीं, अनुभव बनाओ।
और जीवन को ब्रह्म के विज्ञान से जोड़ो।
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