रावण मंदिर और राहु काल का अद्भुत रहस्य! राहु काल और रावण की शक्ति
- भारत में आज भी कई मंदिर ऐसे हैं जहां रावण का पूजन होता है न कि दहन।
- कारण? वह सिर्फ एक राजा नहीं, अद्वितीय शिवभक्त और ज्योतिष शास्त्र का महाज्ञानी था। रावण की शक्ति का गहरा संबंध राहु काल और विशेष रूप से राहु से भी जोड़ा जाता है!
रावण को राहु का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है कि राहु काल में रावण की आराधना से छिपी हुई शक्तियों और बाधा नाशक ऊर्जा का लाभ मिलता है।
- इस समय rahukey तेल का दीपक जलाने से लौ में शिवलिंग की आकृति प्रकट होती है! मानो रावण और राहु मिलकर शिव तत्व को जाग्रत कर रहे हों।
रावणं राहुं च पूज्यं, दीपे ह्रीं शिवरूपकम्।
कालदोषं न हन्तव्यम्, सुखं धनं च लभ्यते॥
- जो राहु काल में रावण और राहु की आराधना करता है, शिवरूप दीपक जलाता है, उसका कालदोष शांत होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
रावण मंदिरों में राहु काल की साधना नकारात्मकता को नष्ट कर शक्ति, धन और संरक्षण देती है।

- कालपी up में रावण का मंदिर है! जगन्नाथ पुरी के पीछे, नीचे की और तलघर में श्री राणेश्वर शिवलिंग स्थापित है!
- जगन्नाथ मंदिर से ८ किलोमीटर की दूरी पर लोकनाथेश्वर मंदिर की खोज रावण ने की थी यहाँ शिवलिंग हमेशा पानी में ही डूबा रहता है रावण के देश दुनिया अनेक मंदिर है जहाँ वे शिवलिंग रूप में विराजमान हैं!
- राहु ही रावण था जोड़ें जैसे राहु कलंकित है वैसे ही रावण को कलंकित कर दिया इसीलिए भारत की जनता हर चीज से परेशान मोहताज है!
- अंधभक्तों ने परम शिवभक्त रावण के बारे में न तो कुछ पढ़ा और न कोई खोज की! बस, बिना सोचे समझे जलाने लगे!
- रावण मंदिरों का अद्भुत रहस्य! जहां दशानन शिवरूप में विराजमान हैं
रावण राक्षस नहीं, अद्वितीय शिवभक्त और ज्ञान का महासागर था। यही कारण है कि आज भी भारत में कई स्थानों पर उसकी पूजा होती है न कि दहन।
- कालपी (उत्तर प्रदेश)- कहा जाता है कि यहीं पर रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी। मंदिर के नीचे के तलघर में जगन्नाथ पुरी के पीछे श्री राणेश्वर शिवलिंग स्थापित है।
- मान्यता है ऋषि व्यास की जन्म स्थली और जमुना का किनारा यह वही स्थान है जहां रावण ने कठोर तपस्या की थी। यहाँ शिवलिंग की पूजा करने पर नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और अद्भुत मानसिक शक्ति प्राप्त होती है।
लोकनाथेश्वर मंदिर (पुरी)
- यह मंदिर जगन्नाथ मंदिर से लगभग ८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है इस शिवलिंग की खोज स्वयं रावण ने की थी।विशेष बात ये है कि शिवलिंग सदा जलमग्न रहता है, जो रावण की भक्ति और शिव तत्व की गहराई को दर्शाता है।
रावणग्राम विदिशा (मध्य प्रदेश)
- रावंग्राम, विदिशा (मध्य प्रदेश) — रावण-विषयक प्रतिमा स्थापित है।
- यहाँ दशानन की 10 फुट ऊँची प्रतिमा स्थित है। दशहरा के दिन रावण की नाभि में रूई और तेल लगाया जाता है ताकि उसके प्रतीकात्मक दर्द को शांति मिले और गांव में खुशहाली आए। यहां पुतले का दहन नहीं! रावण का पूजन होता है।
मंदसौर (मध्य प्रदेश) मंदोदरी का मायका
- यह वही स्थान माना जाता है जहाँ रावण की पत्नी मंदोदरी का जन्म हुआ था। इसीलिए मंदसौर में रावण को दामाद मानकर उसका सम्मान किया जाता है। यहां रावण की मूर्ति स्थापित है और दशहरे पर उसकी पूजा की जाती है।
- कहते हैं की रावण के तेज बाल और तपस्या के कारण सूर्य देव ने भी अपनी तपन कम कर दी थी! इसीलिए मन्द- सौर यानी सौर का मतलब सूर्य ने अपनी गर्मी को कम कर दिया था! यहीं तालाब से निकले पशुपति नाथ का आठ मुखी शिवलिंग आठ पहर का प्रतीक स्थित है!
जोधपुर (राजस्थान) चांदपोल क्षेत्र
- यहां रावण के मंदिर में कुछ विशेष समाज के लोग उसकी विशेष पूजा करते हैं। रावण को यहां महाज्ञानी और शिवभक्त माना जाता है।
- निम्नलिखित में में कुछ प्रमुख मंदिरों की जानकारी प्रस्तुत है जहाँ रावण की पूजा होती है। श्रीदशानन रावण की कृपा से लगभग इन सब जगह जाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है!
प्रमुख रावण-पूजित मंदिर
- डशनान मंदिर, कानपुर (उत्तर प्रदेश) — यहाँ रावण की पूजा होती है।
- रावण मंदिर, बिसरख (उत्तर प्रदेश) रावण का जन्मस्थान माना जाता है।
- काकीनाडा रावण मंदिर (आँध्र प्रदेश) रावण की शिवभक्ति को समर्पित।
रावणं भजते यः स्यात्, ज्ञानं तस्य अनंतकम्।
अधर्मेण यः प्रमान्ते, तमसा न तस्य भवति॥ (मंत्रमहोद्धि )
- अर्थात-जिसने भी रावण को ध्यानपूर्वक पूजित किया, उसके ज्ञान का अन्त नहीं। अधर्म में फँसे व्यक्ति में कभी तिमिर नहीं टिकता।
रावण सिद्धेश्वर स्वामी मंदिर कर्नाटक
- मंदिर परिसर में एक और ऐतिहासिक मंदिर स्थित है! सिद्धेश्वर स्वामी मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है। यहां की पत्थर की मूर्ति में भगवान शिव को अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्रदान करते हुए दर्शाया गया है। केवल शिवजी का यह मंदिर प्रतिदिन दर्शन के लिए खुला रहता है और भक्त बड़ी श्रद्धा से यहां पूजा करते हैं।
- हसनम्बा मंदिर के खुलने की अनोखी परंपरा इस मंदिर की सबसे रहस्यमय बात यह है कि देवी हसनम्बा मंदिर वर्ष में सिर्फ एक बार ही खुलता है।
- सन् 2017 में मंदिर 12 अक्टूबर को खोला गया था और 21 अक्टूबर 2017 को मंदिर बंद हुआ था। 2017 में भी मंदिर अश्विजा मास की पूर्णिमा के बाद वाले गुरुवार को खोला गया था और बाली पड्यमी (दीवाली के बाद का दिन) तक दर्शन चला था।यहाँ श्री दशानन रावण आस्था, अध्यात्म और धर्म का अद्भुत प्रतीक है!
- जब पूरा हासन जय दशानन, हर हर महादेव के नारे से गूंजता है, तब रावण केवल लंकापति नहीं होता वह ज्ञान, तपस्या और धर्म के उच्च शिखर पर विराजमान एक योगी और तांत्रिक रूप में पूजे जाते हैं।
रावण की तीर्थंकर जैसी तपस्या
- किंवदंती के अनुसार रावण ने कैलाश पर जाकर हजारों वर्ष तक महादेव की कठोर आराधना की थी। जिस एकाग्रता और आत्म-बल से उसने शिव को प्रसन्न किया, उसे तीर्थंकरों की तपस्या के समान माना गया है।
तपसा सिद्धिर्भवति, तपसा धर्मः प्रतिष्ठितः।
राहु और रावण का अद्भुत संबंध
- कुछ प्राचीन तांत्रिक और ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार राहु ही रावण का प्रतीक स्वरूप था! राहु और रावण दोनों कलंकित किए गए शक्तिशाली तत्व हैं। जिस तरह राहु को अशुभ कहकर लोग उसका तिरस्कार करते हैं, उसी तरह रावण को भी नकारात्मक बना दिया गया। परिणामस्वरूप आज भारत की जनता ऊर्जा और समृद्धि से वंचित, भयभीत और मोहताज जीवन जी रही है।
रावणं भजते यः स्यात्, ज्ञानं तस्य अनंतकम्।
राहुं यः पूजयेत् भक्त्या, शत्रुं न पश्यति चिरम्॥
- जो भी व्यक्ति राहु काल में रावण और राहु की आराधना करता है, वह ज्ञानवान बनता है और शत्रुओं से मुक्त रहता है।
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टि
- रावण ज्योतिष, वेद, आयुर्वेद, तंत्र और शिवभक्ति में पारंगत था। उसने 9 ग्रहों को नियंत्रित करने की विद्या में महारत हासिल की थी।रावण के मंदिरों में विशेष ऊर्जाएं महसूस की जाती हैं, जो मानसिक और ऊर्जात्मक संतुलन को बढ़ाती हैं।
- रावण कोई साधारण पात्र नहीं था। वह राहु की तरह रहस्यमय और ऊर्जा से भरा हुआ तत्व था।उसके मंदिरों का भ्रमण करने से भय नहीं, बल्कि शक्ति, ज्ञान और जागृति प्राप्त होती है।जिसे लोग शत्रु समझते हैं, वही कभी-कभी सबसे बड़ा गुरु होता है।
साभार — http://brainkey.in एवं amrutampatrika.com
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