पंचतत्व और पंच महाभियोग क्या है! इससे स्वास्थ्य कैसे ठीक किया जा सकता है!

  1. अमृतम मासिक पत्रिका अंक : अप्रैल 2011 से साभार
  2. यह सृष्टि और शरीर पंचमहाभूतों अग्नि-जल,आकाश-पृथ्वी और वायु से निर्मित है! इन्हें ५ पाँच महाभूत भी कहते हैं! यह सभी पंचतत्व अमृत प्रदान करने वाले हैं।

  1. शरीर की शुद्धि के लिए इनके बीजमन्त्रों को जपने का विधान बताया गया है ताकि तन, मन, अन्र्तमन और आत्मा सदा पवित्र, प्रसिद्ध और प्रकाशमान रह सके। इन सभी तत्वों के शरीर रूपी संसार में अलग अलग कृत्य है।
  2. पृथ्वी तत्व का बीजमन्त्राक्षर लं है। इसके जपने से मूलाधार चक्र जाग्रत होकर स्थिरता, सत्यता प्राप्त होती है। मूलाधार चक्र के अधिदेवता श्री गणपति हैं।
  3. वं बीज मन्त्र जपने से शरीर में जलतत्व की पूर्ति व शुद्धि होती है जिससे पेशाब सम्बन्धी परेशानी नहीं होती, शरीर किडनी की खराबी, मधुमेह रोग से सुरक्षा, में रक्त उचित बहाव जल तत्व से संभव है क्योंकि जल का कार्य है बहना।
  4. जल रुका कि कीड़े पड़ने लगते हैं। शरीर का भी यही हाल है कि स्वाधिष्ठान चक्र सुप्तावस्था में गया नहीं कि मधुमेह जैसे खतरनाक रोग सताने लगते हैं। इस चक्र के देवता भगवान विष्णु हैं।

  1. रं बीज मन्त्र मणिचक्र को जागृत करने वाला महामन्त्र है जिसे राम-राम जपकर शरीर को दूषित कर लिया है इसीलिए शरीर एवं उदर की जठराग्नि, मंदाग्नि हो रही है। इसके सुप्त (सोते) ही अग्नितत्व क्षीण होकर उदर रोग उत्पन्न हो रहे हैं। भाग्य का नाश हो जाता है।
  2. हृदय को जागृत करने वाला यं बीजमन्त्र सुप्त होने के कारण हृदयाघात से आदमी चट-पट हो रहा है। हं बीजमन्त्र आत्मा, हृदय और मानसिक शक्ति प्रदाता है जिसके लगातार जपने से व्यक्ति शिवोहम् अर्थात् स्वयं शिव स्वरूप हो जाता है।
  3. आज का अमृत इन बीज मंत्रों में सम्माहित है। शिवपंचाक्षर मन्त्र !!ऊँ नमः शिवाय!! में पंचमहाभूतों का वास है। इसमें सत्यामृत भरा हुआ है। इसके लगातार जाप से संसार में बहुत कुछ अर्थात् सब कुछ पाया जा सकता है!

सृष्टि और शरीर- पंचमहाभूतों से निर्मित

ऋग्वेद और श्वेताश्वतर उपनिषद में वर्णित है कि

पृथिव्यापस्तेजोवायुराकाशा इति पंचमहाभूतानि

  1. अर्थात-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — ये पाँच तत्व इस सृष्टि और शरीर की आधारशिला हैं।हमारा शरीर इन्हीं तत्वों का चलायमान स्वरूप है। जब ये तत्व संतुलित रहते हैं, तब तन, मन और आत्मा दिव्य स्वास्थ्य एवं आनंद की अवस्था में रहते हैं।

पंचमहाभूतों के बीज मंत्र और रहस्य

1. पृथ्वी तत्व- बीजमंत्र “लं”

  1. यह मूलाधार चक्र को जाग्रत करता है। इससे स्थिरता, धैर्य और आत्मविश्वास बढ़ता है।अधिदेवता: श्री गणपति-वैज्ञानिक पक्ष: स्थिर कंपन (Grounding Vibration) शरीर में नर्वस सिस्टम को शांत करता है।

लं मूलाधारे गणपति प्रतिष्ठितो भूतलाधारकः।

  1. लं के जप से पृथ्वी तत्व स्थिर होता है और गणपति शक्ति सक्रिय होती है।

2. जल तत्व – बीजमंत्र: “वं”

  1. यह स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करता है। इससे मूत्राशय, किडनी, प्रजनन तंत्र स्वस्थ रहता है।अधिदेवता: भगवान विष्णु- वैज्ञानिक पक्ष: जल तत्व रक्त प्रवाह और शुद्धि नियंत्रित करता है।

वं विष्णुं स्मृत्वा शुद्धिर्भवति, रोगनाशकं।

  1. वं के जप से शरीर में जलतत्व शुद्ध होता है और रोग नष्ट होते हैं।

3. अग्नि तत्व -बीजमंत्र: “रं”

  1. यह मणिपूर चक्र को प्रज्वलित करता है। इसके जागरण से पाचन, जठराग्नि और आत्मबल प्रबल होता है। अधिदेवता: अग्निदेव! शरीर की metabolic energy को सक्रिय कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

रं अग्न्याधिपतिर्भवेत्, पचति सर्वमशुभं।

  1. रं के जप से शरीर की अग्नि सम हो जाती है और दोष जल जाते हैं। ये वही नाभि चक्र का बीज मंत्र है जिसे कथावाचकों ने राम नाम से अपभ्रंश कर दिया! (रं) बीजमंत्र को बोलना नहीं चाहिए अन्यथा सारी ऊर्जा, शक्ति दूषित होकर जीवन को कंगाल बना देती है! यही असली राम हैं! ये दशरथ पुत्र नहीं हैं!
  2. (रं) बीज मंत्र होने से नाभि के नीचे स्थित विष युक्त कुंड अमृतमय होने लगता है! सिद्धि का तरीका आगे किसी अंक में लिखेंगे!

4. वायु तत्व – बीजमंत्र: “यं”

  1. यह अनाहत चक्र (हृदय केंद्र) को जाग्रत करता है। इसके जप से प्रेम, करुणा और जीवन ऊर्जा बढ़ती है। अधिदेवता: वायु देव! हृदय की लय (Heart Rhythm) और ऑक्सीजन प्रवाह को संतुलित करता है।

यं वायुरात्मसंयुक्तं, प्राणं ददाति सर्वदा।

  1. यं के जप से हृदय शांत होता है और प्राण शक्ति बढ़ती है।

5. आकाश तत्व – बीजमंत्र: “हं”

  1. यह विशुद्धि चक्र को जाग्रत करता है। इसके माध्यम से विचार, वाणी और आत्मा का शुद्ध संचार होता है।अधिदेवता: शिव स्वयं हैं! ये बीजमन्त्र थायरॉयड ग्रंथि और न्यूरो सर्किट्स को शुद्ध रखता है।

हं शिवो हमस्मि नित्यं, शुद्धोऽहमिति भावना।

  1. हं जपने से मन ‘शिवोहम्’ की अनुभूति करता है- मैं वही हूँ जो शिव है।

शिव पंचाक्षर मंत्र !!ॐ नमः शिवाय!!

यह महामंत्र पंचमहाभूतों का सार है

  1. लं → पृथ्वी
  2. वं → जल
  3. रं → अग्नि
  4. यं → वायु
  5. हं → आकाश
  6. इसका निरंतर जप तन, मन और आत्मा में संतुलन लाता है।नियमित जप से alpha brain waves सक्रिय होती हैं, जिससे मानसिक शांति, प्रतिरोधक शक्ति और ऑक्सीजन स्तर बढ़ता है।

शिवो भूत्वा शिवं ध्यायेत्, पंचभूतसमन्वितम्।

देहं देवालयं मन्ये, जीवो देवः सनातनः॥

  1. जब मनुष्य पंचतत्वों को संतुलित करता है, तब वह स्वयं शिवस्वरूप बन जाता है। प्रकृति और परमात्मा दोनों हमारे भीतर ही हैं।
  2. पंचमहाभूतों के बीज मंत्र केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक ध्वनियाँ हैं, जो शरीर की तरंगों को संतुलित कर आत्मा से जोड़ती हैं। तत्वों की साधना ही अमृत है और अमृत ही परमात्मा का स्वरूप है। उपरोक्त पांचों बीजमन्त्रों के मनसा जाप हो तद्‌नुसार तत्व की प्राप्ति होती है।

पृथ्वी जल

  1. पृथ्वी का कार्य धारण करना। जलका कार्य एकत्रित करना, अम्रि का कार्य प्रकाशित करना! जल का कार्य अवयवों को स्थापित करना आकाল का कार्य अवकाश प्रदान करना।
  2. इस शरीर में जी ठोस ता है वह पुत्री तरल और इख्य तत्व जल है। उष्ण अर्थात गीतह अग्रि है। जो संसार चलाती है वह वायु है तथा सिद्ध है वहीं आकाश है।
  3. पैर से घुटने तक का भाग पृथ्वी तत्व का है। घुटने से गुदा मार्ग तक का भाग जल तत्व का है।
  4. गुदा से हृदय तक अङ्गि, हृदय से भौंठों तक जायु तथा मस्तक का भाग आकाश है।
  5. !!सत्यमेव जयते नानृतम्!! अर्थात- सत्य की विजय होती है! असत्य की नहीं! वेदों का यही उद्घोष है!

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