अपने घर पर ही करें कालसर्प-पितृदोष की शांति का पक्का उपचार! रोज़ राहु काल में Raahukey Oil के पाँच दीपक जलायें, तो जीवन में असंभव कार्य भी संभव होने लगते हैं।
- Raahukey तेल से जलाया गया पाँच दीपक। राहु काल में यह नियम न केवल भाग्य को प्रबल करता है, बल्कि मन-जीवन में आत्मविश्वास और स्थिरता भी लाता है।

- राहु के प्रभाव को सकारात्मक दिशा में मोड़ने के लिए नक्षत्र सहिंता परम्परा में कई विशेष साधन बताए गए हैं। इनमें से एक अत्यंत प्रभावी और सरल विधि है — मिट्टी से बना ॐ और ह्रीं बीज मंत्र!
ह्रीं बीजं सर्वमङ्गल्यं, ह्रीं बीजं सर्वसिद्धिदम्।
ह्रीं बीजं सर्वदुःखघ्नं, ह्रीं बीजं राहुकृपाप्रदम्॥
भूमौ ह्रीं लिख्यते येन, तस्य भाग्यं न नश्यति।
राहुस्तं दर्शयेत् मार्गं, यत्र सिद्धिः स्वयमेव हि॥

क्यों मिट्टी और ह्रीं बीज? — तत्त्वनिष्ठ व्याख्या
- राहु का सम्बन्ध पृथ्वी (भूमि) और तमोगुण से जुड़ा माना जाता है। मिट्टी का उपयोग राहु-ऊर्जा को स्थूल रूप में धरातल पर स्थापित करने में मदद करता है — इसलिए मिट्टी से बना ॐ और ह्रीं का लेखन साधन के इरादों को दृढ़ बनाता है।
राहु अनुष्ठान — सामग्री सम्पूर्ण विधि (स्टेप-बाय-स्टेप)
- साफ़ नदी या गमले की मिट्टी — 1 छोटी मूँठ
- शुद्ध जल — कुछ बूँदें
- Raahukey तेल — 5 दीपक भरने के लिए (या शुद्ध घृत + राहु विशेष अर्क)
- दूब, धूप-अगरबत्ती, फूँक के लिए वातायन
- लाल वस्त्र का छोटा टुकड़ा (भूमि पर रखने हेतु)
- कपूर, और अगर संभव हो तो राहु पुष्प अर्पण हेतु!

समय व दिशा
- श्रेष्ठ समय: अमावस्या की रात्रि, शनिवार सूर्यास्त-आधारित समय, अथवा राहु-दोष सिद्ध अंत (भूमि व समय अनुसार)।
- दिशा: दक्षिणमुखी स्थान और पूर्व में दीपकम् रखें।
कालसर्प शांति पूजन विधि
- साफ़ स्थान पर लाल वस्त्र फैलाएँ।
- मिट्टी लेकर बीच में छोटे-से गोले बना कर उसे सपाट कर ॐ का आकार बनायें।
- मध्य में स्पष्ट और सुंदर अक्षरों में “ह्रीं” लिखें (देवनागरी/संस्कृत स्वरूप)।
- 🕉️ के चारों ओर समदूरी से पाँच दीपक रखें और प्रत्येक दीपक में Raahukey तेल भरें।
- दीपक जला कर पहले एक-एक दीपक को अर्पित करते हुए कहें: “ॐ ह्रीं राहवे नमः।”
- जप: कुल 108 बार “ॐ ह्रीं राहवे नमः” का जप करें (यदि 108 संभव न हो तो 27/54 भी करें)।
- जप के पश्चात ध्यान: दीपों के प्रकाश में 5–10 मिनट तक निगाह रखें और मन में अपने उद्देश्य का स्पष्ट संकल्प लें।
- अन्त में दीपक को विदा करें — तिलक अथवा अर्पण के बाद मिट्टी को उसी स्थान पर हल्का दान कर दिया जा सकता है (स्थान की पवित्रता के अनुसार)।
Raahukey तेल से दीपदान —

प्रमुख कारण और महत्ता
- Raahukey तेल में पारम्परिक रूप से ऐसे जड़ी-बूटियाँ और अर्क मिश्रित होते हैं जो राहु द्वारा उत्पन्न अशान्ति/अवरोधों को शांत करने में सहायक माने जाते हैं।
- दीपक का प्रकाश न केवल आभा बढ़ाता है बल्कि मन के तमस्यों को भी विभेदित कर सफलता के मार्ग खोलता है।
फायदे संभावित लाभ (साधारण संकेत)
- कार्यक्षेत्र में अचानक सकारात्मक बदलाव, अवसर और मान-सम्मान।
- मानसिक स्थिरता, भय में कमी और निर्णय-शक्ति में वृद्धि।
- आर्थिक मार्गों में सुधार; विरोधी परिस्थितियाँ कम होती दिखती हैं।
- जीवन-आभा (Aura) और प्रतिष्ठा में वृद्धि।
सावधानियाँ और नैतिक निर्देश
- किसी भी अनुष्ठान का उपयोग किसी पर बुरा प्रभाव डालने के लिए न करें। उद्देश्य शुद्ध, अहिंसक और मानवीय होना चाहिए।
- जड़ी-बूटियों और तेल के घटक यदि आपकी त्वचा/सांस पर एलर्जिक हों तो पहले परीक्षण करें।
- धार्मिक/कानूनी नियमों का उल्लंघन न करें — सार्वजनिक स्थान पर अनावश्यक शोर या आग से बचें।
- यदि आप चिकित्सकीय समस्या (मानसिक या शारीरिक) से जूझ रहे हैं, तो प्रमाणित चिकित्सक से सलाह लें; अनुष्ठान उपचार का विकल्प नहीं है, पर पूरक हो सकता है।
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1: क्या मैं घर के किसी भी मिट्टी से यह 🕉️ बना सकता/सकती हूँ?
A: हाँ, पर साफ व शुद्ध मिट्टी लें; अगर संभव हो तो नदी/गमला की अमृत मिट्टी प्राथमिकता दें।
Q2: कितनी बार यह अनुष्ठान करें?
A: प्रारम्भ में 7 या 11 शनिवार लगातार, फिर मासिक/आवश्यकतानुसार। परन्तु अनुशासित जप और निष्ठा प्रधान है।
Q3: Raahukey तेल नहीं मिले तो क्या करें?
Raahukey तेल विशेष तिथियों और मुहूर्त में ही तैयार किया जाता है! Raahukey में मिश्रित जड़ी बूटियों के काढ़ें से ख़ास दिन शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करने के बाद इसे विविध तेलों में पकाते हैं और राहु ग्रह की रस भस्म जैसे वंग, नाग, यशद, लौह, स्वर्ण मक्षिका आदि को राहु के नक्षत्र में मिलाकर तैयार करते हैं!
Raahukey Oil amrutam.co.in पर ऑनलाइन मिल जाता है और न मिले तो
- A: शुद्ध घृत व थोड़ा कपूर/चंदन, नैग भस्म, लौह भस्म और वंग मिलाकर भी दीप जलाया जा सकता है; पर Raahukey तेल के विशेष अर्क इसे प्रभावी बनाते हैं।
दीपो मेधासिद्धये, ह्रीं जपेभ्यः शुभप्रदा।
राहुतेलेन युक्तं, स्याद्यः कर्मफलवर्धनः॥


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